नारी प्रतिष्ठा का पुण्य आन्दोलन

July 1951

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(श्रीमती गोमती देवी शर्मा, अध्यापिका)

भारतीय धर्म में नारी की असाधारण महत्ता है। क्योंकि मानव जाति की उद्गम गंगोत्री नारी ही है। ऋषियों ने नारी को प्रत्यक्ष देवताओं में गिना है और उसके प्रति पूज्य भावना रखने का मनुष्य मात्र को उपदेश दिया है। बेटी, बहिन और माता के तीनों ही रूप में नारी को भारतीय पुरुष सदा से दैवी भावनाओं के साथ सिर झुकाता रहा है।

यह पूज्य भावना ही हिन्दू जाति की वह श्रेष्ठता थी जिसके कारण वह संसार का सिरमौर रहा। भगवान मनु ने स्पष्ट शब्दों में कहा था “जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। और जहाँ वे तिरष्कृत होती हैं वहाँ (उन्नति के) सब प्रयत्न निष्फल होते हैं।”

विकार पूर्ण वासना की, दूषित दृष्टि की, यहाँ सदा से निन्दा की जाती रही है। ‘रमणी’ नारी का घृणित और विकृत रूप है। स्त्री की जहाँ शंकराचार्य प्रभृति महात्माओं ने निन्दा की है, उससे दूर रहने का आदेश किया है, वह रमणी रूप ही है। माता के रूप में भगवती आद्य शक्ति की स्वयं शंकराचार्य जी ने भी अत्यन्त भावना पूर्ण स्तुति की है।

आज लोगों की आँखों में कीचड़ भर गई है वे वस्तु स्थिति को नहीं देख पर रहे। रमणी और कामना की विषैली प्रतिमूर्ति बनाकर नारी को देखा जा रहा है, आज सिनेमा, नाटक, उपन्यास, चित्र, संगीत, कला आदि में स्त्री को विलास सामग्री के रूप उपस्थित किया जा रहा है। तरुणी, नवयौवना, अर्ध नग्न, विलासिनी, विकार ग्रस्त, भाव भंगिमा वाली नारी का आज पुरुष समाज चिन्तन करता है उससे इन्द्रिय सुख की ही कामना करता है बेटी को वात्सल्य, बहिन का सौहार्द, माता की आराधना, लोग भूलते से जा रहे हैं।

इस दूषित दृष्टि का कितना दुष्परिणाम होता है इसे आज का मन्द बुद्धि जन समाज नहीं समझता। प्राचीन काल के ऋषि मुनि समझते थे। शारीरिक निरोगता, बलिष्ठता, दीर्घ जीवन, मानसिक संतुलन, पारिवारिक सुव्यवस्था, सुसंतति, पारस्परिक विश्वास, रक्त शुद्धि, पितृ भक्ति, पवित्रता, आदि लाभों से मनुष्य जाति तभी लाभान्वित हो सकती है। जब दृष्टि में पवित्रता हो आत्मिक लाभ तो इस तत्व के बिना हो ही नहीं सकता। नारी जैसे पूजनीय परम पवित्र तत्व के प्रति कुविचारों की दोष दृष्टि रहेगी तो उसका यह आध्यात्मिक तिरस्कार समाज का नाश कर देगा उसे पतन के गर्त में गिरने से कोई बचा न सकेगा। भगवान मनु का वचन असत्य नहीं हो सकता कि ‘यदि नारी का तिरस्कार होगा तो (उन्नति के) सब प्रयत्न निष्फल होंगे।’

अखण्ड ज्योति द्वारा गायत्री प्रचार का जो आन्दोलन चलाया जा रहा है, उसमें मुझे सर्वोत्कृष्ट लाभ यह पड़ दिखाई पड़ता है कि ईश्वर की, नारी (गायत्री) के रूप में आराधना करने के स्त्री जाति के प्रति पवित्रता, आदर और श्रद्धा की भावना का जन समाज में विकास होगा। गायत्री उपासनाओं में कुमारी कन्याओं की पूजा होती है। ध्यान और पूजन में अमित सौंदर्य की प्रति मूर्ति गायत्री के प्रति मातृभावना स्थापित करनी पड़ती है। इस प्रकार मनुष्य नारी के जिन पुत्री, बहिन और माता के निर्मल स्वरूपों को भूलता जाता है उनको पुनः हृदयंगम कर सकेगा।

मेरी गायत्री आन्दोलन के प्रति बड़ी श्रद्धा है। शक्ति भर इस पुण्य कार्य में भाग लेती हूँ। मेरा विश्वास है कि आचार्य जी का यह प्रयत्न भारतीय नारी जाति के लिए वैसा ही उन्नायक सिद्ध होगा जैसा कि पूज्य बापू का हरिजन आन्दोलन करोड़ों भूल मानवों में प्राण संसार करने वाला सिद्ध हुआ। मैं उस सुन्दर भविष्य का आशाजनक स्वप्न देखती हूँ जब कि पुरुषों के हृदय में नारी के प्रति पुण्य भावनाएँ रहेगी और फलस्वरूप यह भारत भूमि सम्पूर्ण सुख साधनों से परिपूर्ण होकर देव भूमि बनेगी। भगवान करे यह गायत्री आन्दोलन सफल हो।


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