(श्री डाह्याभाई रामचन्द्र मेहता, अहमदाबाद)
संसार में दो शक्तियाँ हैं एक दैवी दूसरी आसुरी। इन दोनों का अलग प्रभाव अलग कार्य क्षेत्र है। दैवी को अपनाने वालों के विचार भाव, स्वभाव, गुण, कर्म में सात्विकता बढ़ती है जिसके कारण उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूसरी के साथ सद् व्यवहार करने के कारण प्रत्युत्तर में दूसरों की ओर से भी उन्हें प्रेम, सहयोग, आदर एवं यश प्राप्त होता है। (1) भावना की पवित्रता (2) सद्गुणों का बाहुल्य (3) कर्त्तव्य परायणता (4) दूसरों से मधुर सम्बन्ध यह चार बातें भूलोक की दैवी सम्पदाएं हैं इन्हें प्राप्त करने वालों का जीवन निश्चय ही सुख शाँति से ओत प्रोत हो जाता है, भले ही आर्थिक दृष्टि उन्हें साधारण श्रेणी का ही रहना पड़े।
इसके विपरीत आसुरी शक्यों को अपनाने वालों में इन्द्रिय भागों की लिप्सा, धन संचय का लोभ, स्वार्थपरता, असंयम आदि अनेक दुर्गुण पैदा हो जाता हैं जिनके कारण उनके गुण, कर्म, स्वभाव अत्यंत विकृत निन्दनीय एवं कष्टकारक होते हैं। स्वयं दिन रात अशान्ति की भट्टी में जलते रहते हैं, और दूसरों को अपना विरोधी, निन्दक असहयोगी, बनाते जाते हैं। ऐसे लोग अपने अनुचित कार्यों से बहुधा धन सम्पत्ति जमा कर लेते हैं और उसमें अपने बड़प्पन का अनुभव करते हैं पर इस आत्म वंचना से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। उनका खुद का आत्मा अपराधी जैसा सशंकित रहता है और किसी भी हार्दिक प्रेम न पा सकने के कारण उनके हृदय की कली कभी भी विकसित नहीं हो पाती। आसुरी शक्ति से आसुरी सम्वृत्तियाँ शीघ्र ही बढ़ जाती हैं पर शोथ रोग से मोटे हुए आदमी की तरह उनका वह वैभव और बड़प्पन केवल अशांति और नारकीय दुखों को ही उत्पन्न करता है।
आज मनुष्य जाति की सभी गुत्थियाँ बुरी तरह उलझी हुई हैं। हर आदमी अपने को दीन दुःखी, अभाव ग्रस्त, संत्रस्त, असहाय, अनुभव करता है और अपने को चारों ओर से आपत्तियों से घिरा हुआ अनुभव करता है। यही बात प्रत्येक जाति एवं देश की है। हर जाति अपने को खतरे में समझती है, हर राष्ट्र अपने को शत्रुओं से घिरा अनुभव करता है। हर व्यक्ति को अपने बारे में अनेक डर सता रहे हैं। कितनी ही संस्थाएं और सरकारें इस व्यापक उलझन को दूर करने के लिए एड़ी से चोटी तक का पसीना एक कर रही हैं परन्तु परिणाम कुछ नहीं निकल रहा है व्यक्तिगत और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कठोर कानून, नियंत्रण, पुलिस, फौज आदि के सभी शस्त्र काम में लाये जा रहे हैं पर बुराइयों में रत्ती भर भी कमी नहीं हो रही है वरन् दिन-दिन और बढ़ती जाती है, और नये-नये रूपों में प्रकट हो रही है।
संसार के समस्त संकटों का एक मात्र कारण आसुरी शक्तियों की वृद्धि है। लोगों के मस्तिष्क पर आसुरी माया ने कब्जा कर रखा है। फलस्वरूप लोलुपता, स्वार्थ परता, संकीर्णता से प्रेरित उनके विचार, आयोजन, व्यवहार एवं कार्य सभी ऐसे होते हैं जो अपने लिए तथा दूसरों के लिए केवल कष्टकारक ही बनते हैं इस रोग का एक मात्र उपाय वह है कि लोगों की मनोभूमि को भोग स्वार्थ और अहंकार की असुरता के चंगुल से छुड़ाया जाय और उसके स्थान पर संयम, सेवा एवं सद्भावना की दैवी सत्ता को स्थापित किया जाय। समस्त कठिनाइयों की एक ही कुँजी है। इस एक ही उपाय को अपनाकर विश्व व्यापी अनेक संकटों में त्राण प्राप्त किया जा सकता है।
गायत्री आन्दोलन, असुरता के विरुद्ध दैवी युद्ध का शंखनाद है। इस रणभेरी को इसलिये बजाया जा रहा है कि दैवी शक्ति में श्रद्धा रखने वाली आत्माएं एक मोर्चे के नीचे संगठित हो जाए। आत्मबल के अस्त्र-शस्त्र को सुसज्जित करें, तप और साधना द्वारा अपनी योग्यता और क्षमता को इतना परिपुष्ट कर लें कि विकराल दांतों वाली असुरता से सफलतापूर्वक संघर्ष किया जा सके। हर युद्ध का एक झंडा, एक उद्देश्य, एक लक्ष्य होता है। इस दैवी महाभारत की, परम पुनीत सात्विकता की, प्रतीक ध्वजा गायत्री है। विश्व मानव के अन्तः प्रदेश पर दैवी शक्ति का चक्रवर्ती शासन स्थापित करना इसका लक्ष्य है। तीर, तलवार, के हथियार नहीं इस युद्ध के सैनिकों को आत्मबल, उज्ज्वल चरित्र, तपश्चर्या त्याग, संयम और ईश्वर विश्वास के अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होना पड़ेगा।
‘अखण्ड ज्योति’ द्वारा प्रज्वलित की गई गायत्री आन्दोलन की मशाल, वर्तमान विश्वव्यापी अशान्ति के विरुद्ध एक दैवी चुनौती है। यह प्रचण्ड शक्तिशाली मानसिक क्रान्ति की एक महान् योजना है। मुझे भारत के भाग्याकाश में उज्ज्वल ऊषा की तरह यह प्रकाश रेखा चमकती दिखाई दे रही है। एक ओर जहाँ संहार के लिए परमाणु बम बन रहें हैं, वहाँ नव निर्माण के लिए गायत्री गंगा की कल-कल ध्वनि भी हो रही है। दुष्कृतों के विनाश और सुकृतों के परित्राणाय भगवान यह लीला रच रहे हैं समस्त मानवता के उद्धार में प्रभु प्रेरणा का जो यह सजीव चित्र सामने उपस्थित हो रहा है उसे मैं भक्ति भावना के साथ प्रणाम करता हूँ। और विश्वास करता हूँ कि रोते, सिसकते, भूले, भटके, दीन दुखी, गन्दे मैले, अपने बालक-मनुष्य को माता की गोदी में शान्ति मिलेगी।
बोलो माता गायत्री की जय।