दुष्टात्माओं का आक्रमण निष्फल

July 1951

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(श्री दिलेराम पटेल, लोइर्सी)

दुर्भाग्य का कुछ ऐसा कुचक्र है कि मेरे पाँच बालक अब तब मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। बालक जन्मते हैं, हँस खेल कर मोह बढ़ाते हैं और कुछ ही दिन में वियोग की पीड़ा देकर चले जाते हैं। अपने कलेजे के टुकड़ों को कराल काल की क्रूर डाढ़ों में पिसते देखकर माता के हृदय पर कितना बड़ा आघात बैठता है, इसे भुक्त भोगी ही जानते हैं।

बालक के बिना माता की गोद और पिता का आँगन सूना रहता है। हम लोग भी इस सूने मन से दुःखी थे। इस दुखदायी दुर्भाग्य के कारण की तलाश की गई। मालूम हुआ कि कोई दुष्ट आत्मा पीछे लगी हुई है और वह अपनी पैशाचिक शक्ति से इन बालकों का भरण कर जाती है।

काफी समय तक अनेक प्रकार के उपचार किये जाते रहे पर कोई सफल न हो सका। सभी प्रयत्न निष्फल चले गये। एक दिन एक सत्पुरुष ने गायत्री की महिमा समझाते हुए बताया कि गायत्री से बड़ा रक्षक और दूसरा नहीं। वेदमाता जिसकी रक्षा करती है उसका कोई बाल बाँका नहीं कर सकता।

पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भावना के साथ मैं माता की उपासना करने लगा। भगवान ने एक बालक और दिया जिसे पाकर प्रसन्नता की सीमा न रही। साथ ही यह भय भी था कि इस बालक का भी कोई अनिष्ट न हो जाय भय और आशंका से दिल धड़कता रहता, पर गायत्री माता का ध्यान करके कुछ साहस बंधता।

एक दिन रात्रि के समय मेरी पत्नि कुछ अर्ध तंद्रित अवस्था में बच्चे के साथ सो रही थी। उसे अनुभव हुआ किसी भयंकर राक्षस ने आकर बच्चे के अंग-अंग तलवार से काट डाले हैं। ठीक उसी समय मैं भी पास की चारपाई पर पड़ा यह स्वप्न देख रहा था कि एक एक बड़ी फौज घर में घुस आई है और मेरे गले को तलवार से काट रहा है। मैं भय से थर-थर काँपने लगा, मुँह से जोर-जोर से ॐ भूर्भुवः स्वः निकलने लगा। उधर पत्नी की भी घिग्घी बँध गई, वह बच्चे से बेतहाशा लिपट गई और भर्राई आवाज में चिल्लाने लगी-’मेरा बच्चा टुकड़े -टुकड़े हो गया।’

हड़बड़ा कर हम दोनों उठ बैठे। अधखुली आंखों से दिखाई दिया कि एक परम सुन्दरी कन्या हाथ में फर्सा लिए आकाश में हमारी रक्षा के लिए आई हुई है उसके दर्शन करते ही हमारी हिचकी बँध गई, आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और कातर होकर जोर-जोर से माता को पुकारा।

कुछ देर ऐसी ही भयंकर स्थिति बनी रही। जब धीरज बँधा तो बच्चे को टटोल कर देखा। वह चैन से था। पत्नी तो मुझसे भी बहुत पीछे तक अधीर रही, उसका कंठ सूख गया था। मुख से स्पष्ट शब्द भी न कहे जाते थे। हम दोनों बार-बार बच्चे को उलट पलट कर देखते थे, यद्यपि वह ठीक था पर फिर भी मन न मानता था और यही भय लगता था कि कोई अनिष्ट न हो गया हो। उस रात नींद आई। हम दोनों पति-पत्नी बच्चे के लिए जागते रहे।

पीछे मालूम हुआ कि उस रात्रि एक दुष्ट आत्मा का प्राण घातक आक्रमण किया था और यदि माता ने रक्षा न की होती तो इस वर्तमान बालक को खिलाने के सौभाग्य से भी हमें वंचित होना पड़ता। जगज्जननी सबसे बड़ी रक्षक हैं, दुष्टों के सारे प्रयत्नों को वे निष्फल कर सकती हैं। उनकी शरण में अपना सब परिवार सुरक्षित रहेगा। ऐसा विश्वास दृढ़ होता जाता है और गायत्री उपासना में दिन-दिन चित्त अधिक बढ़ता जाता है।


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