अनेक समस्याओं का एक हल

July 1951

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(श्री श्यामबिहारी सिंह जी, बम्बई)

मेरा मन सदा से पराये दुख में दुखित होने वाला रहा है। हृदय में यही भावना निरन्तर उठती रहती है किसी प्रकार दुखियों के दुख दूर हों और सब लोग सुखपूर्वक जीवनयापन करें। इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर मेरे कार्यक्रमों का निर्धारण होता है।

जब मैंने देखा कि सामाजिक कुरीतियों के कारण हमारे निर्धन वर्ग को बहुत सा पैसा व्यर्थ बर्बाद करने को विवश होना पड़ता है और आवश्यक कार्यों के लिए धन न रहने से जीवन की उन्नति एवं सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है तो मैं उन रूढ़ियों के प्रति विद्रोही हो गया। अछूतों और स्त्रियों के प्रति हमारा समाज कितना अनुदार, अन्यायी और हृदयहीन है यह देखकर भी मेरे हृदय में चोट लगी और मैं आर्यसमाज भी हो गया। आर्य समाज के लिए मैंने अपने जीवन का एक बड़ा भाग लगाया है। राजनीतिक कुचक्रों ने भारत को किस प्रकार दीन हीन बनाया बात जब समझ में आई तो महात्मा गाँधी के आदर्शानुसार काँग्रेस में भाग लेने लगा। जनता के लाखों निवारण करने के लिए जो भी उपाय समझ में आये उनका पूरी ईमानदारी से उपयोग किया। शिक्षा प्रचार खादी, सफाई समाज सुधार, नशा निवारण आदि रचनात्मक कार्यों में ही मेरा अधिकाँश समय व्यतीत होता है। अपनी शक्ति मतलब है, पर सेवा की अभिलाषा ऐसी रहती है कि अपना सब कुछ होम कर भी यदि पीड़ित बन्धुओं की भलाई बन सके तो वह अवश्य ही होनी चाहिए।

अब मेरी आयु चालीस वर्ष से अधिक हो चली है। अनेक संस्थाओं का सदस्य और कार्यकर्ता रहा हूँ। राष्ट्र निर्माण, लोक सेवा, समाज सुधार की अनेक प्रवृत्तियों की वास्तविक स्थिति की भी भली प्रकार जानकारी हैं। संस्थाओं द्वारा जितना प्रचार होता है उतना कार्य नहीं द्वारा जितना प्रचार होता है उतना कार्य नहीं होता इसका दुःख होना एक ईमानदार आदमी के लिए स्वाभाविक है। संस्थाएं सदुद्देश्यों के लिए स्थापित होती हैं पर उनमें कार्यकर्ता अच्छे एवं ईमानदार न होने से कोई सन्तोषजनक कार्य नहीं हो पाता।

जनता के कष्टों के अनेक कारण हैं। बीमारी अशिक्षा, वस्तुओं का अभाव, फूट आदि कारणों के निवारण के लिए अस्पताल, स्कूल, उद्योग, संगठन आदि के आयोजन हो रहे हैं परन्तु यह सब प्रयत्न निष्फल जाते दिखाई पड़ते हैं। कारण यह है कि चरित्र बल की बड़ी कमी है आन्तरिक पवित्रता, उच्च भावना, प्रेम, त्याग, संयम, ईमानदारी आदि आत्मिक गुणों की कमी होने से अन्य साधनों द्वारा सुख उत्पन्न करने के प्रयास से सफल नहीं हो पाते। अच्छी-अच्छी योजनाएं भ्रष्ट चरित्र के कारण निरुपयोगी हो जाती है सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार फैल रहा है। और उसके कारण इतने प्रकार की नई कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं जिनका समाधान करना न सरकार के बस की बात है और न संस्थाओं के बस की। मैं इन सब समस्याओं पर एकान्त में बैठकर बहुत सोचता हूँ, और उस उपाय को प्राप्त करने का प्रयत्न करता हूँ जिससे लोगों में गुप्त मन में घुस बैठी हुई अनैतिकता दूर हो। चरित्र किसी राष्ट्र या समाज का वास्तविक धन होता है। जहाँ यह धन होगा वहाँ आत्ममय सम्पत्तियाँ रहेंगी और सब कठिनाइयाँ दूर हो जायगी। आज अनेक प्रकार की राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक, शारीरिक गुत्थियाँ उलझी हुई हैं। इन सबका एकमात्र हल यह है कि लोग अधिक ईमानदार बनें। जब तक लोगों की मनोवृत्ति स्वार्थपूर्ण, दूसरों के स्वत्वों को हड़पने की बनी रहेगी तब तक एक भी गुत्थी का सुलझाना सम्भव नहीं है। भूसी कूटने से जैसे हाथ में छाले पड़ने के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता वैसे ही आन्तरिक अनैतिकता का सुधार किये बिना अन्य उपायों से किसी भी क्षेत्र में सुख शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती।

अन्तःकरणों की पवित्रता कानून व्याख्यान, लेख, रेडियो आदि से स्थापित नहीं की जा सकती। इसके लिए आध्यात्मिक श्रद्धा और धार्मिक संस्कारों की आवश्यकता है। यह कार्य गायत्री महामंत्र के आधार पर सबसे सुगम तरीके से हो सकता है। गायत्री के 24 अक्षरों में जो 24 शिक्षाएँ भरी हुई हैं वे मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने वाली हैं। इन शिक्षाओं को ईश्वरीय वाणी मानना और उस वाणी को अन्तःभूमि में गहराई तक जाने के लिए उपासना करना, यह एक ऐसा कार्यक्रम जो है मानव हृदय में एक दिव्य परिवर्तन करता है। यही वह महान तत्व है जिसके अभाव में आज सरकार के संस्थाओं के तथा लोक सेवकों के हाथ पाँव फूल रहे हैं। यदि लोगों में थोड़ा चरित्र बल बढ़े तो अनेकों पर्वत जैसी दीखने वाली समस्याएं चुटकी बजाते हल हो सकती हैं।

अब मैंने गायत्री महातत्व का प्रचार करना आरम्भ किया है क्यों कि यह विश्वास करने योग्य बात है कि गायत्री मंत्र सात्विकता बढ़ाने का वैज्ञानिक एवं धार्मिक आधार है। गायत्री की ईश्वरीय वाली को जब लोग सुनने लगेंगे तभी दुखियों के विविध कष्टों का निवारण होगा और तभी मेरी अन्तरात्मा को शान्ति मिलेगी।


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