-’जिस प्रकार पुष्पों का सार शहद’ दूध का सार घृत है उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री कामधेनु के समान है। गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है। जो गायत्री को छोड़कर अन्य उपासनाएं करता है वह पकवान छोड़कर भिक्षा माँगने वाले के समान मूर्ख है। वाम्य सफलता तथा तप की वृद्धि के लिए गायत्री से श्रेष्ठ और कुछ नहीं है।
-महर्षि व्यास