सुख शाँति की दिव्य धारा

July 1951

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(श्री विश्वनाथ दीक्षित, विष्णुपुर)

हमारे बाबा श्री भगवान दीक्षित, बिठूर वाले महाराज खोडेराव के शिष्य थे। बहुत रोज तक उनके कोई सन्तान न हुई तो उनने महाराज जी की कृपा से गायत्री का अनुग्रह प्राप्त किया और उनके दो पुत्र हुए उन्हीं में से एक हमारे पिता गुरुदीन जी थे।

पिता जी अध्यापक थे। काकूपुर के सुप्रसिद्ध वेदपाठी विद्वान पं॰ अयोध्याप्रसाद जी से उनने सस्वर यजुर्वेद पढ़ा था। पिता जी का नित्य नियम था कि प्रातःकाल 3 बजे उठकर गंगा स्नान करते और गायत्री उपासना में तल्लीन हो जाते। अपने हाथ छै छटाँक जौ के आटे की रोटी बनाकर एक समय भोजन करना, तख्त पर सोना, खड़ाऊं पहनना, गंगाजल पीना जैसे अनेक संयम नियमों को वे पालन करते रहे।

उनका ब्रह्म तेज ऐसा था कि अफसर भी उठकर अपने हाथ से उन्हें कुर्सी देते थे। जीवन भर किसी ने उनका गंगातट से हटाकर तबादला नहीं किया। मुसलमान और अंग्रेज अफसर तक उनकी प्रतिष्ठा करते थे। एक अंग्रेज अफसर जो अपने बुरे स्वभाव के लिए बदनाम था एक दिन स्कूल का मुआइना करने आया पिता जी जप पर बैठे थे। अंग्रेज लौट गया। दूसरे समय आकर उसने अच्छा मुआइना लिखा और स्कूल के समय में भजन करने के लिए कोई शिकायत न की।

सर्विस में तीन साल बाकी थे तभी उनने इस्तीफा देकर भजन करना आरम्भ कर दिया था। अपने जीवन के अन्तिम अध्याय में माघ सुदी 12 को उन्होंने संन्यास लिया और फागुन सुदी 2 को गौ माता के सामने कुर्सी पर बैठ कर खुले मैदान में ब्रह्म जप करते हुए प्राण त्याग दिया उनके आशीर्वाद से अनेकों का कल्याण हुआ, उनके प्रेरणा से अनेक दुख लोग सज्जन बने, अनेक विपत्ति ग्रस्तों के संकट छूटे और अनेकों की मनोकामनाएं पूर्ण हुई। गृहस्थ आश्रम में वे रहते थे, परन्तु आवरण में वे संन्यासी के समान थे। माया ममता उन्हें छू भी न गई थी। पिता जी गायत्री के अनन्य उपासक थे। ब्राह्मण के लिए गायत्री को अनिवार्य मानते थे और कहते थे कि वेद माता का आश्रय लेकर साधारण गृहस्थ भी परम गति को प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अपनी सन्तान (हम लोगों) को छोटेपन से ही गायत्री की शिक्षा दी जिस पर कि हम श्रद्धापूर्वक चल रहे हैं।

पिता जी के पुण्य प्रताप से हम सभी लोग सुखी हैं। मैंने तीन बार सवा लाख के अनुष्ठान किये हैं जिनसे समय-समय पर कई प्रयोजन सफल हुए दो कन्याओं के विवाह बड़ी आसानी से जमाने को देखते हुए सस्ते रेट पर समृद्ध घरों में हो गये। समयानुसार बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हल हो जाती हैं और संदेहास्पद कार्य पूरे हो जाते हैं। करीब आठ दस साल से प्रणाम की स्पष्ट ध्वनि सुनाई पड़ने लगी है। आशा चक्र में स्फुरण तथा प्रकाश की मात्रा बढ़ रही है। चित्त में बड़ी शान्ति रहती है। यह सब गायत्री की ही कृपा है।


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