(पं॰ राधेश्याम शर्मा पोस्टमास्टर, जबलपुर)
जब से मैंने गायत्री माता की शरण ली तब से मेरा जीवन उत्तरोत्तर उन्नतिशील दृष्टिगोचर होता है। पहले की अपेक्षा मुझे अपने स्वभाव में पर्याप्त परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। क्रोध व मिथ्या भाषण से घृणा हो गई है। मेरा स्वतः मन बुरे विचारों की ओर तनिक नहीं जाता। आशाजनक परिवर्तन हो गया है।
मेरा अटल विश्वास है कि वेदमाता की शरण लेने वाला दुखी नहीं सकता। मनः शान्ति व ईश्वर प्राप्ति को सुगम मार्ग वेदमाता की शरण है। जो वेदमाता का आसरा रखे उसको ईश्वर प्राप्ति होती है यह निश्चित है। जीवन का महान उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति माता की शरण से भली-भाँति पूर्ण हो सकता है। प्रधान उद्देश्य के अतिरिक्त अन्य संकट भी माता की कृपा से दूर होते हैं। मेरी अवस्था 27 वर्ष की है इतनी छोटी अवस्था में इतना प्रत्यक्ष मेरा अनुभव है कि जब से मैंने गायत्री साधना की, लाभ के अतिरिक्त हानि नहीं हुई।
जब से मैंने गायत्री माता की शरण ली, सबसे डॉक्टर वैद्य के लिये मुझे एक पाई औषधोपचार के लिये नहीं खर्चना पड़ा मामूली स्वास्थ्य जब बिगड़ा तो अपने आप ठीक हुआ। इसके पूर्व डाक्टरों के बिल इतने देने पड़ते थे कि कभी तो वेतन का चतुर्थांश उनको अर्पण करना पड़ता था व कभी कभी तो अर्ध वेतन तक की बाजी लग जाती थी। यही हाल मेरी पत्नी का था। एक अनुष्ठान सवा लक्ष का उन्होंने भी ज्यों ही किया त्यों ही प्रारम्भ करते ही बीमारियाँ रफ होने लगी और अनुष्ठान पूर्ण होते ही सब रोगों से मुक्ति मिल गई। और तब से वे भी पूर्ण रीति से आरोग्य हैं। कभी कभी अस्वस्थता हो भी तो अपने आप ठीक होती है। डाक्टरों की आवश्यकता नहीं पड़ी। मेरा काल तक एक समय टल गया मैं फाल्गुन शुक पूर्णिमा के रोज रात्रि को 2 बजे के करीब जब होलिका दहन हुआ तब अकेला नंगे पैर आ रहा था। उस समय मानसिक जप महामन्त्र का कर रहा था। एक काला सर्प ढाई हाथ लम्बा मेरे दोनों पैरों के बीच से निकल गया मैं खड़ा रहा व जप मानसिक चालू रखा व सर्प जब पूरा निकल गया तब वहाँ से भगवती को प्रणाम करके आगे घर की ओर बढ़ा। मुझे मृत्यु के मुख से भगवती ने बचाया। माता मेरी क्षणक्षण में रक्षा करती हैं। उपरोक्त उदाहरण तो उदाहरण मात्र है। कितनी बार सहायता मिली इसका वर्णन करने में असमर्थ हूँ। अनेकों कठिनाइयों के समय दयामयी माता ने मेरी सहायता की है।