अशान्ति से शान्ति की ओर

July 1951

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री हेमचन्द्र गुप्त, दिल्ली)

अब से कोई 10 वर्ष पहले तक मैं गायत्री-साधना के विषय में नितान्त अनभिज्ञ था। परन्तु अखण्ड ज्योति में प्रकाशित गायत्री सम्बन्धी लेखों को पढ़कर हृदय में आकाँक्षा जोर पकड़ती गई कि हमें भी गायत्री-साधना अवश्य करनी चाहिए। एक ओर बात जिसने हमारी गायत्री-साधना को नियमित तथा सफलीभूत बनाया-इस साधना का और साधनाओं की अपेक्षा आडम्बर रहित होना था। विवेचना करने पर यही प्रतीत हुआ कि यह साधना अन्य साधनाओं की अपेक्षा धार्मिक बन्धन एवं नियमों से मुक्त तथा आडम्बर से रहित है और इस कारण सहज ही यह साधना मनुष्य के दैनिक जीवन का अंग बन सकती है। इन बातों से प्रेरित होकर गायत्री साधना आरम्भ कर दी और वास्तव में इस साधना को करते हुए कभी भी अपने दैनिक कार्यक्रम में किसी प्रकार की कठिनाई अथवा अड़चन अनुभव नहीं हुई।

इस साधना के करने के फलस्वरूप मेरे स्वभाव एवं आचरण में आश्चर्यजनक परिवर्तन स्वयमेव हो गया है। कलह आदि की बात दूर रही प्रत्येक संपर्क में आने वाले व्यक्ति के लिए हृदय में खुद ब खुद प्रेम, सहानुभूति, उदारता और सेवा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। एक प्रकार का ऐसा प्रभाव संपर्क में आने वाले व्यक्ति पर पड़ता है उसके आचरण से भी प्रेम, सहानुभूति, उदारता और सेवा के भाव टपकने लगते हैं हमारे घर में नीचे ऊपर लगभग आठ परिवार और रहते हैं। और उन सब में जरा-जरा सी बात पर प्रतिदिन समय कुसमय लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज होती रहती थी। परन्तु अब यह बहुत हद तक बन्द हो गई है। क्योंकि प्रत्येक परिवार हमारे अपने परिवार के शान्ति और प्रेम पूर्ण वातावरण को आदर्श बनाने लगा है। दूसरे, प्रत्येक परिवार इसी ओर देखता रहता है कि हमारी तो लड़ाई प्रत्येक से होती रहती है परन्तु इनकी (हमारी) किसी से नहीं होती। अतएव क्यों व्यर्थ में लड़ाई झगड़ा करें, इस प्रकार परोक्ष रूप से हमारी गायत्री साधना ने हमारे समस्त घर में शान्ति स्थापित कर दी है।

सन् 1949-50 में स्वयं हमारे परिवार पर कुछ अत्यन्त भीषण प्रहार नियति के पड़े। और उन प्रहारों के कारण एक बार भी भविष्य अत्यन्त अन्धकारमय दिखाई देने लगा था। परन्तु ऐसे समय में हमने आचार्य जी की सलाह से गायत्री अनुष्ठान किया और वेद-माता गायत्री की अनुकम्पा से हम उन विपत्तियों से मुक्त होना असम्भव और आश्चर्यजनक लगता था कि हमें अब भी सहसा यह विश्वास नहीं होता कि वास्तव में उन विपत्तियों से मुक्त हो चुके हैं।

इसी प्रकार का एक आश्चर्यजनक अनुभव गायत्री साधना का हमें हो चुका है। हमारे एक मित्र के दस वर्षीय पुत्र का दिमाग कुछ खराब था और इस दिमागी खराबी के कारण एक दिन वह बगैर किसी को कुछ बताए घर से कहीं निकल गया। हमारे मित्र ने काफी ढूँढ़ा परन्तु कहीं पता नहीं चला। इस प्रकार एकमात्र पुत्र के खो जाने से मित्र महोदय बहुत चिन्तित और दुःखी रहने लगे। एक दिन उनका इस बाबत जिकर मुझसे आया, मैंने उन्हें वेद माता गायत्री की शरण में जाने को कहा और उन्हें गायत्री मन्त्र याद कर दिन में तीन समय उसका जाप करने को कहा। मित्र महोदय को जाप करते तीन दिन ही हुए थे कि चौथे दिन उनके एक रिश्तेदार उनके लड़के को लिए हुए उनके घर पर पहुँचे और लड़के को मित्र महोदय को सौंप कर बोले कि इत्तफाक से बेइरादे मैं गुड़गाँव पहुँच गया था, वहाँ एक हलवाई की दुकान पर इसे बैठे देखा। हलवाई से कहकर मैं इसे आपके पास ले आया हूँ। खोए हुए पुत्र को पाकर मित्र महोदय आनन्द से गदगद हो गए और हमारे प्रति कृतज्ञ होने लगे कि हमने उन्हें ऐसे अमूल्य मंत्र की शिक्षा दी।

इस प्रकार मेरा तो अपना अनुभव यह पक्का हो चुका है कि गायत्री-साधना सर्वशक्ति मान साधना है और यह मनुष्य को अलौकिक गुणों से युक्त बना देती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118