(पं॰ वासुदेव कृष्ण जोशी काव्यतीर्थ, चूरु)
शेखावाटी नामक प्रान्त में लक्ष्मणगढ़ नामक एक अच्छा कस्बा है। इस स्थान में यहीं के निवासी स्वर्गीय पं॰ विश्वनाथ जी गोस्वामी प्रसिद्ध गायत्री उपासक हो चुके हैं इनका जन्म करीब सं॰ 1927 में हुआ था। और स्वर्गवास सं॰ 1987 में 60 साल की अवस्था के आस-पास ये संसार से प्रयाण कर चुके थे। इनका जन्म मारवाड़ी सारस्वत ब्राह्मण समाज में हुआ था। दो विवाह किये थे। दोनों ही स्त्री गुजर गई तब इन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया और इन्होंने ऊनी वस्त्र धारण किये। आमरण ऊनी वस्त्र ही धारण करते रहे और एकाहारी तथा भूमि शायी रहे। इन्होंने अपनी उम्र में गायत्री माता के 3 पुरश्चरण किये थे।
दो तो पूर्ण रूप किये और तीसरे चालू पुरश्चरण में ही स्वर्गवास हो गया। जब दो पुरश्चरण पूरे हो चुके और तीसरा चालू किया था तभी से जब ये संध्यावंदन करके एकासन पर बैठ गायत्री भगवती की माला फेरने लग जाते तभी एक काला नाग सर्प बड़ा लम्बा चौड़ा फन ऊपर उठाकर के करीब इनके आसन से 2-3 फुट पर आकर बैठ जाता था। जब अपनी नियम माला पूर्ण करके उठते और विसर्जन का मंत्र पढ़ देते तो सर्प चला जाता। यह दृश्य उनके कई भक्तों और साथियों ने देखा है। गोस्वामी जी महाराज सर्प के इतनी नजदीक या जाने पर भी तनिक भी विचलित नहीं होते थे और अपनी शक्ति गम्भीर मुद्रा में ध्यान किये रहते थे। बहुत सम्भव है कि वह सर्प गायत्री माता के ही रूप में हो और उनको दर्शन देने आता रहा हो।
गोस्वामी जी महाराज के आशीर्वाद से सीकर के एक भक्त बीदावत का परिवार तो बड़ा समृद्धिशाली तथा वैभव सम्पन्न हो गया जो पहले एक साधारण परिवार था। अब यह परिवार गोस्वामी जी की समाधि पर छोटे बालकों का मुण्डन संस्कार व प्रसाद वगैरह बराबर करता है और उनको अपने देव की तरह मानता है संकट के समय गोस्वामी जी मनौती व प्रसाद बोला जाता है और श्रद्धा एवं विश्वास के साथ फल मिलता है। इसके अलावा अन्य सैकड़ों व्यक्तियों ने गोस्वामी जी से लाभ उठाया। अब उनका जप स्थान गुँसाई जी की बगीची के नाम से मशहूर है और उनकी स्वर्गवास तिथि पर लक्ष्मणगढ़ के बहुत से व्यक्ति दर्शनार्थ जाते हैं आप 12 वर्ष तक तो दूध और फलों पर ही आश्रित रहे। आप वास्तव में बड़े त्यागी और तपस्यानिष्ठ ब्राह्मण थे। गायत्री की साधना से उनको वचन सिद्धि प्राप्त हो गई थी तभी तो वीदावत का परिवार इनके आशीर्वाद से करीब बीस लाख के सम्पत्ति का मालिक है।
इस प्रदेश के आपत्ति ग्रस्त अन्य कई सज्जनों ने भी काफी लाभ उठाया है। इनके दत्तक पुत्र पं ज्वालादत्त जी उसी बगीची में रहते हैं ये कुछ पढ़े लिखे भी नहीं हैं तथा कोई विशेष पूजा पाठ वगैरह भी नहीं करते हैं फिर भी इनके पिता जी के आशीर्वाद स्वरूप खूब आनन्द करते हैं।
गोस्वामी जी ने जिस प्रकार गायत्री माता की उपासना करके स्वयं आत्म कल्याण करते हुए अनेकों दूसरों का भी भला किया उसी प्रकार अन्य व्यक्ति भी श्रद्धापूर्वक साधना करके लाभ उठा सकते हैं। गायत्री सर्व शक्तिमान है उसकी शरण में जाने वाला साधक सब प्रकार की सफलता प्राप्त करता है। उसे किसी बात की कमी नहीं रहती।