गायत्री द्वारा सुसंतति की प्राप्ति

July 1951

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(पं॰ श्रीकृष्ण शुक्ल, देहली)

गायत्री का आश्रय लेने से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। कोई वस्तु ऐसी नहीं जिसे गायत्री साधक प्राप्त न कर सके। अनुभवी लोगों ने ऐसा ही कहा है उसकी पुष्टि में अनेकों प्रमाण उपलब्ध हैं। जिनने श्रद्धा और विश्वासपूर्वक माता का अंचल पकड़ा है उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ा। वेद माता की कृपा से जब मनुष्य के अन्तःकरण में सतोगुण का प्रकाश होता है तो शारीरिक बीमारियाँ तथा स्वभाव और विचारों की बुराइयाँ आप ही दूर हो जाती है। उन्नति और सुख शान्ति के मार्ग में यह बुराइयाँ ही रोड़ा अटकाती हैं, जब माता की कृपा से उनका निवारण हो जाता है तो कोई भी अभाव कष्ट या दुःख शेष नहीं रह जाता।

अपना मेरा निज का अनुभव बड़ा उत्साह वर्धक है। कुछ वर्ष पूर्व मेरा स्वभाव बड़ा क्रोधी था। जरा सी बात पर लड़ बैठता था। मस्तिष्क में बुरे-बुरे विचार उठते रहते थे। चित्त में हर घड़ी अशान्ति और भ्रान्ति रहती थी। जब से गायत्री माता का पाठ मैंने पकड़ा है तब से उन दोष दुर्गुणों का सफाया हो गया। अब मुझमें पुराना एक भी अवगुण नहीं है। हर तरह से शान्ति अनुभव करता हूँ। कई वर्ष से मैंने नौकरी छोड़ दी है, फिर भी नौकरी की अपेक्षा कहीं अधिक घर बैठे अपने स्वतंत्र व्यवसाय से कमा लेता हूँ।

मेरे एक मित्र को गायत्री महिमा का बड़ा ही आनन्ददायक चमत्कार मिला है। दिल्ली में ही नई सड़क पर पं॰ बुद्धराम भट्ट, की दुकान है। आपको 45 वर्ष तक कोई सन्तान नहीं हुई थी इसमें पति-पत्नी दोनों ही दुखी रहते थे। पर ईश्वर की इच्छा और भाग्य की प्रबलता समझ कर सन्तोष कर लेते थे। कुछ समय पूर्व उन्होंने गायत्री महिमा का परिचय प्राप्त किया और भक्ति पूर्वक माता की आराधना करने लगे। इस आराधना का लाभ यह हुआ कि अब उनके एक पुत्र हुआ है। निराशा के अन्धकार में आशा की यह एक नवीन किरण प्रकाशित हुई है। बच्चा बड़ा स्वस्थ, सुन्दर और होनहार है, उसमें कई दैवी गुण दिखाई पड़ते हैं। बच्चे का चित्र साथ में दिया जा रहा है।

ऐसी ही एक माता की कृपा इसी वर्ष वृन्दावन में हुई। संयुक्त प्रान्तीय आर्य प्रतिनिधि सभा के गुरु कुल में रसायन विभाग के कार्यकर्ता पं॰ सुदामा जी सुयोग्य सज्जन हैं। चौदह वर्ष से आपके यहाँ कोई बालक नहीं जन्मा था। पंडित इसी साल 14 वर्ष पश्चात् एक पुत्र का जन्म हुआ है। वंश चलने और घर के किवाड़ खुले रहने की जो चिन्ता थी वह सहज ही दूर हो गई। पं॰ सुदामा जी का तब से गायत्री पर और भी अधिक विश्वास बढ़ गया है।

ऐसी घटनाएं एक दो नहीं अनेकों हैं जिनको कन्याएं ही कन्याएं होती हैं या कोई सन्तान नहीं हैं उन्हें मनोवांछित सन्तान मिलने की अनेक घटनाएं अखण्ड ज्योति सम्पादक को मालूम हैं। पूर्व काल में पुत्रेष्टि यज्ञ गायत्री मंत्र से ही होते थे। राजा दशरथ ने जो पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। वही गायत्री के मंत्र से ही हुआ था। राजा दलीप ने गुरु वशिष्ठ के आश्रम में रहकर नंदनी गाय की सेवा और गायत्री की उपासना करके ही सन्तान पाई थी, कुन्ती ने कुमारी अवस्था में गायत्री द्वारा सूर्य के तेज धारण करके कर्ण को जन्म दिया था।

गायत्री अपने भक्तों की अनेक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। सन्तान सम्बन्धी बाधाओं को भी वह दूर करती हैं। कुपात्र अवज्ञाकारी, दुर्गुणी, सन्तान के विचार और स्वभाव में परिवर्तन होकर उनके सौम्य बनने के चमत्कार भी माता की कृपा से अनेक बार होते हैं। कितने ही कुसंग में पड़े हुए, जिद्दी, चोर, दुराचारी, अवज्ञाकारी, आलसी एवं मंद बुद्धि बालकों में आशाजनक परिवर्तन गायत्री की कृपा से होता देखा गया है।

जिन्हें सन्तान सम्बन्धी असन्तोष है, संतान नहीं होती, होकर मर जाती है, कन्याएं ही कन्याएं होती हैं, बालक रोगी कमजोर और कुरूप होते हैं, वे गायत्री उपासना करके देखें उन्हें मनोवाँछित लाभ होगा माता-पिता गायत्री का आश्रय लेकर इच्छानुकूल सन्तान उत्पन्न कर सकते हैं ऐसे अनेक उदाहरण अनेक बार देखे गये हैं।


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