(श्री बृजमोहन प्रसाद गुप्ता, हजारीबाग)
मैं सुसम्पन्न परिवार में पैदा हुआ हूँ। अच्छा जमा हुआ व्यापार और सुसंगठित परिवार है इतना होने पर भी मेरे 27 वर्ष अशान्ति और क्लेश में ही व्यतीत हुए।
माता जी बचपन में ही स्वर्ग सिधार गई थी। अधिक स्नेह करने वाले चाचाजी भी अधिक समय तक जीवित न रहे। सुव्यवस्थित मानसिक विकास न होने के कारण शुद्ध विचारधारा भी प्राप्त न हो सकी। आठवीं कक्षा से पढ़ाई छोड़ बैठा। विमाता के प्रति मेरे मन में बड़े दुर्भाव थे। उनकी साधारण सी बातों में मुझे शत्रुता की गन्ध आती थी। उनके हाथ का भोजन तक न करता था। गृह कलह बढ़ने लगा। मुझे अपना सारा परिवार शत्रुवत् प्रतीत होता था। एक बार तो आत्म हत्या तक करने का निश्चय कर लिया था।
दुर्बुद्धि, अनेक बुराइयाँ साथ लेकर आती है। मुझे भाँग, अफीम, सिगरेट आदि की नशेबाजी और वेश्यागमन की बुरी बातें भी बन गई। सिर में चक्कर आने की बीमारी पैदा हो गई। दुकान पर मन न लगता था। खेती-बाड़ी की देखभाल करने की जो जिम्मेदारी ऊपर डाली गई थी वह भी पूरी न हुई। पिता जी पत्नी तथा स्वजन सम्बन्धी सभी मुझसे असंतुष्ट थे। इन परिस्थितियों में रहकर मैं स्वयं भी भारी आन्तरिक जलन में जलता रहता था।
यही स्थिति यदि इसी प्रकार आगे बढ़ती रहती तो न जाने दुर्दशा का अन्त कहाँ जाकर होता पर ईश्वर को कुछ दूसरी ही बात मंजूर थी। पटना के एक होटल में आचार्य श्रीराम शर्मा लिखित ‘गायत्री के अनुभव’ पुस्तक रखी हुई मिली, उसे पढ़ने लगा। पढ़कर बड़ा प्रभावित हुआ और अन्य गायत्री-ग्रन्थ मँगाये तथा आचार्य जी पत्र व्यवहार करके उपासना आरम्भ कर दी।
गायत्री साधना को अपनाये हुए लगभग एक वर्ष हुआ है कि मेरे जीवन का कायाकल्प ही हो गया। सद्बुद्धि का आश्चर्यजनक विकास हुआ। नशेबाजी वेश्यागमन आदि की सभी बुराइयाँ छूट गई। पिताजी तथा विमाता से मेरी पूर्ण सद्भावना है, फल स्वरूप उनका वात्सल्य भी पर्याप्त मात्रा में मिल रहा है। राजसिक, तामसिक आहार छोड़कर सात्विक आहार अपना लेने से स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। घर में तम्बाकू का व्यवसाय होता है वह मुझे नहीं रुचा। इसलिए शुद्ध घी का व्यापार करने की ठानी। पूँजी की कठिनाई भी माता की कृपा से दूर हो गई अब मैं उस सात्विक व्यापार को स्वतन्त्र रूप से चलाता हूँ और सन्तोषजनक आमदनी कर लेता हूँ तथा अपने व्यवस्थित जीवन की सब पर छाया डालता हूँ। सभी स्वजन सम्बन्धी इतनी जल्दी इतना अधिक मुझमें परिवर्तन देख कर आश्चर्य करते हैं। मैं उन्हें बताता हूँ कि गायत्री की महिमा अपार है उस महाशक्ति की कृपा से हर एक को साँसारिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार के लाभ मिल सकते हैं। सुना है कि किन्हीं औषधियों से शारीरिक काया कल्प होता है। मानसिक काया कल्प की अचूक औषधि तो मुझे मिल गई है, वह है -गायत्री।