अन्तः स्थल की टेर

November 1941

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(श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर)

मनुष्य की सबको श्रेष्ठ प्रार्थना यह है कि वह असत्य से सत्य की ओर बढ़े, अँधेरे से उजाले की दिशा में अग्रसर हो, मृत्यु से अमरत्व की तरफ पग बढ़ावे। यह दुर्बलों के उपयुक्त प्रार्थना नहीं है। वह तो मनुष्य के परम कल्याण का आह्वान है। वह उसे कष्ट और वेदनाओं में से पूर्णता की ओर पुकार रहा है। वह मनुष्य की अन्तरात्मा में से रुद्र की स्फूर्ति व्यक्त करता है और उसे सत्य के विकट मार्ग पर आरुढ़ करता है।

तमसो मा ज्योतिर्गमय

असतो मा सद्गमय

मृत्योमा∙मृतं गमय


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