असभ्य की सभ्यता

November 1941

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उस वन्य प्रदेश में जहाँ तहाँ झोपड़ियाँ बनाकर हब्शी लोग रहते थे। क्योंकि आधुनिक सभ्यता में अल्प बुद्धि वाले, जीने योग्य नहीं समझे जाते। बढ़ी हुई बुद्धि वाले लोग उनका पाशविक शोषण करते हैं और उनके स्वार्थ में वे जरा भी बाधक हुए तो चींटी की तरह कुचल दिये जाते हैं। उन दिनों स्पेन के गोरे चमड़े वाले हब्शियों के साथ बड़ी निर्दयता का बर्ताव करते थे। इसलिए बेचारे हब्शी अपने कुटुम्ब सहित जन शून्य जंगलों में रह रहे थे लेकिन यहाँ भी उन्हें त्राण न था। शिकारी लोग इधर से निकलते। काला हिरन न मिलता तो उसकी झुँझलाहट काले हब्शी पर निकालते। गोली ठण्डी करने के लिए कोई तो चाहिए।

ऐसी ही घटना उस दिन भी घटी। एक स्पेनिश शिकारी को जब उस जंगल में कोई पशु हाथ न लगा तो उधर से निकलते हुए एक दश वर्षीय हब्शी बालक पर ही निशाना साधा एक ही गोली में छोटा सा बालक भूमि पर लेट गया-जिस पाँव में गोली लगी थी उसमें से रक्त का एक फुहारा छूट निकला।

प्रतिशोध-मनुष्य का स्वभाव है। हब्शियों को पता चला तो उन्होंने बदला लेने के लिये उस शिकारी का पीछा किया। जालिम, और कुछ नहीं एक प्रकार का कायर है। दूसरों को सताने में वह वीर बनता है, पर अपने ऊपर जब आती है तो दीनता की हद कर देता है। शिकारी ने देखा कि उसका पीछा बड़ी तीव्रता से किया जा रहा है और वह जंगल में से जीता न निकल सकेगा तो वह एक हब्शी की झोपड़ी की तरफ दौड़ा। उस खेत पर एक कृष्ण काय पुरुष खड़ा हुआ था। हत्यारा उसके पैरों पर चोटने लगा-”मुझे बचा लीजिये, मेरे प्राणों की रक्षा कीजिये, आप न बचाओगे तो मेरी जान चली जायेगी।” उस असभ्य व्यक्ति ने कारण जानने की कुछ आवश्यकता न समझी और झट से एक कोठरी में छिपा दिया।

कुछ देर बाद उसकी तलाश करते हुए अन्य हब्शी उधर आये। साथ में बालक की लाश थी। कृष्ण काय असभ्य ने जाना कि मेरे घर में छिपा हुआ हत्यारा मेरे पुत्र का ही घातक है। इकलौते पुत्र के मृत शरीर पर पिता ने खून के आँसू टपका दिये। पर उसकी जुबान बन्द थी। पूछने वालों ने उस हत्यारे के ऊपर आने के सम्बन्ध में पूछा तो उसने अनभिज्ञता सूचक सिर हिला दिया। पीछा करने वाले लाश को पिता को सुपुर्द करके आगे बढ़ गये।

भगवान भास्कर इस पापी दुनिया पर से अपनी सुनहरी किरणें हटा कर चल दिये थे, रात्रि ने अपनी चादर तानना आरम्भ कर दिया था। हब्शी ने उस कोठरी में जाकर हत्यारे को निकाला और अपने घोड़े पर उसे बिठाते हुए कहा-” जा, अधर्मी हत्यारे, मेरी आँखों के आगे से चला जा। इस लाश को देख, मेरे ही इकलौते पुत्र को तूने मारा है। तेरा पाप दण्ड देने योग्य है, पर मैं शरणागत की रक्षा करना ही कर्तव्य समझता हूँ। मेरे इस तेज घोड़े पर बैठ कर रातों रात यहाँ से चला जा। ऐसा न हो कि कोई, हब्शी तुझे देखले और टुकड़े टुकड़े कर डाले। मैं बदला नहीं लेता और अपना इन्साफ परमात्मा पर छोड़ता हूँ।

घोड़े पर बैठ कर वह स्पेनिश चला गया और पुत्र की लाश को गोद में धरे हुए पिता आँसू बहाता रहा। रात के तारे टिमटिमाते हुए इधर उधर

झाँक रहे थे मानों वे असभ्य की सभ्यता और सभ्य की असभ्यता पर आश्चर्य प्रकट कर रहे हों।


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