(ठा. रामकरण सिंह जी, जफरापुर)
दिन में शाम तक कोई भी समय निश्चित कर ठीक कर लो उसी समय बिस्तर पर चित्त हो जाओ सारे शरीर को ढीला कर दोनों हाथ पेडू पर रखो, चित्त एकाग्र करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेटते समय यह समझो कि हमारे मृत इष्ट मित्र हमारे पास बैठे हैं, इस प्रकार शक्ति विकास का प्रयत्न करने पर कई-कई बड़े-बड़े गोल प्रकाश के धब्बे दिखाई देते हैं, कोई दृश्य भी दीखता है, अभ्यासी को पहले पहल नींद सी आने लगती है, कभी-कभी स्वर्गस्थ मित्र नींद लाते हैं, जिससे उन्हें अपना कार्य करने में आसानी होती है, ऐसी नींद में या ऐसी नींद से जागने के बाद यदि आप को कोई दृश्य दिखाई दे तो उसे स्वप्न न कहो या कोई विशेष दृश्य भी दीखे तो उसे भ्रम न कहो जो कुछ दीखे वह सब नोट करके रखते जाओ और अपने स्वर्गस्थ मित्र का उपकार मानते जाओ। यह अभ्यास का समय बिल्कुल फुर्सत का होना चाहिये। जिससे अभ्यासी को अभ्यास कराने में कोई बाधा नहीं आवे। सोने का यदि कोई अलग कमरा हो तो वह सबसे अच्छा होगा एक बार एक दुःखिनी माता अपनी बच्ची का संदेश पाने के लिये एक महापुरुष के पास गई तब उसे जो संदेश मिलना था वह तो मिला ही साथ ही साथ योगी ने उसे ऊपर लिखे प्रकार से अभ्यास करने को कहा वह स्त्री उक्त विधि से अभ्यास करने लगी दो तीन बार अभ्यास करने के बाद ही उस कमरे की दीवार पर कुछ आवाज आने लगी बाद में धुन्ध सा दीखने लगा चन्द हफ्तों के बाद उसको लड़की की तरह की आवाज ‘माँ’ इस प्रकार पुकारती हुई सुनाई दी और मालूम हुआ कि किसी ने गले में हाथ डाला है। अब यह स्त्री अभ्यास से अपनी लड़की से वार्तालाप करने लगी है, किन्तु यह लड़की प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देती, अदृश्य आवाज़ से बोलती है। उपर्युक्त क्रिया ज्यादा से ज्यादा हफ्ते में तीन बार और प्रति बार एक घंटा भर करनी चाहिये। कभी-कभी आपके पार्थिव शरीर में से सूक्ष्म शरीर निकल कर बाहर के दृश्यों को देखता है।