मृत्यु के बाद जीवन

November 1941

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कुछ समय पूर्व आस्ट्रेलिया के पोर्ट जैकसन नगर में केन्द्रीय जेलखाना था। उसी कारागार में देश के अधिकाँश कैदी बंद रखे जाते थे। उन दिनों एक ऐसा कानून था कि जो कैदी जेल में सच्चरित्रता पूर्वक जीवन यापन करें उन्हें जेल से बाहर स्वतंत्र नौकरी करने की सुविधा रहेगी। बहुत से कैदी जिन्होंने जेल अधिकारियों को अपने व्यवहार से संतुष्ट कर लिया था, जेल से बाहर नौकरी करके अपना जीवन सुविधापूर्वक व्यतीत करते थे।

जेम्स नामक एक कैदी को भी यह सुविधा मिली थी। उसने उसी नगर के निवासी फिशर नामक जमींदार के यहाँ नौकरी कर ली। कैदी बोलचाल और व्यवहार में ऐसा निपुण था कि वह बहुत जल्द अपने मालिक का विश्वास-भाजक और प्रिय बन गया। फिशर उसी से अपना सारा कारोबार कराते, यहाँ तक कि रुपये का लेन देन भी उसी के हाथों होता।

कुछ दिन बाद फिशर का बाहर आना जाना बिलकुल बन्द हो गया। जेम्स ही सारा कारोबार करता। कोई उससे पूछता कि फिशर कहाँ है तो वह कह देता कि-परदेश जाने की तैयारी कर रहे हैं। थोड़े दिनों बाद उसने यह घोषित कर दिया कि फिशर जहाज द्वारा इंग्लैंड चले गये। फिशर के एक घनिष्ठ मित्र जान्सन ने जब यह समाचार सुना तो उसे बड़ा दुख हुआ। जान्सन पास के गाँव में ही रहता था और फिशर का इतना घनिष्ठ था कि वे उसके बिना पूरा साधारण से काम को भी न करते थे। फिर वे उसे सूचना तक दिये बिना इंग्लैंड चले गये यह बात जान्सन के कलेजे में काँटे की तरह चुभी। वह पहिले तो बहुत बड़बड़ाता रहा, पर आखिर उसने सोचा कि-ऐसा हो नहीं सकता। फिशर मुझ से सलाह लिये बिना विदेश नहीं जा सकते। वे किसी कारण कहीं छिपकर कुछ काम कर रहे होंगे। अवश्य ही वे आस्ट्रेलिया में मौजूद होंगे।

कई महीने बीत गये पर फिशर के बारे में कुछ समाचार विदित न हुआ। जान्सन, हाट के दिन उधर से ही आया जाया करते थे। एक दिन संध्या समय वे हाट से लौट रहे थे, अचानक उसने देखा कि फिशर अपने घर के पास तालाब के किनारे खड़े हुए हैं। उनका मुख मलीन हो रहा है और किसी गंभीर व्यथा के साथ तालाब की ओर उंगली का इशारा कर रहे हैं।

जान्सन को इससे कुछ भी अचम्भा नहीं हुआ क्योंकि वह जानता था कि फिशर कहीं बाहर हरगिज नहीं गये हैं। वह जल्दी-जल्दी मित्र के पास पहुँचने के लिये कदम बढ़ाने लगा ताकि उनके अज्ञातवास का सविस्तार कारण पूछे। लेकिन जैसे ही जान्सन वहाँ पहुँचा वह मूर्ति अदृश्य, जेम्स के पास जाकर पूछताछ की पर फिशर के संबंध में कुछ भी पता न चला। जान्सन बड़े असमंजस के साथ घर लौटा और अपनी पत्नी से सारा हाल कह दिया। वह समझता था कि मैंने प्रेतात्मा देखी है और शायद फिशर मर चुका हैं पर उसकी पत्नी ने उसे झिड़क दिया और कहा अँधेरे में कुछ भ्रम हुआ होगा। व्यर्थ के संदेह को मन में से दूर करो और चुपचाप चारपाई पर सो जाओ।

दूसरे हफ्ते हाट का दिन फिर आया। जान्सन फिर गया और उस दिन वह दिन छिपने से कुछ पूर्व ही लौट पड़ा। आज भी उसने देखा कि बिलकुल पहले दिन की भाँति फिशर उसी मुद्रा में खड़े हुए हैं। दो तीन बार उसने आँखें मल मलकर अपना भ्रम निवारण करना चाहा पर यह तो उसके चिर सखा फिशर ही खड़े थे। वेदना पूर्ण विषाद के साथ तालाब की ओर उनकी उंगली इशारा कर रही थी। जान्सन भय और आशंका से काँप उठा, उसका कलेजा धक-धक करने लगा। इतने में ही वह मूर्ति फिर अदृश्य हो गई।

घर पहुँच कर वह तमाम रात इसी घटना के सम्बन्ध में सोचता रहा। अब उसका विश्वास दृढ़ हो गया था फिशर का मृत शरीर इसी तालाब में गढ़ा होगा। प्रातःकाल होते ही जान्सन पुलिस के दफ्तर में पहुँचा और उसने सारी घटना कह सुनाई। पहले तो सब लोग उसकी बात को भ्रम समझ कर हँसी में टालने लगे, पर जब उसने बहुत आग्रह किया, तो पुलिस साथ चलने को तैयार हो गई। ढूँढ़ खोज की गई, तो कीचड़ में गढ़ी हुई फिशर की सड़ी गली लाश मिल गई। सन्देह में जेम्स गिरफ्तार कर लिया गया।

इस महत्वपूर्ण मुकदमे का जजों को फैसला करना था। जेम्स अपने को निर्दोष कहता था और उसके विरुद्ध कोई प्रामाणिक गवाही ऐसी न थी, जिससे उसे अपराधी सिद्ध किया जा सके। निदान जूरी ने एक युक्ति सोची, उन्होंने झूठ मूँठ यह फैसला सुना दिया कि जेम्स अपराधी है, उसे फाँसी दी जायगी। सजा सुनने के बाद जेम्स ने एक लम्बी साँस ली और कहा-”अब छिपाने से क्या लाभ। हाँ, मैंने ही धन के लोभ से अपने स्वामी की हत्या करके लाश को तालाब में गाढ़ दिया था।” इस स्वीकारोक्ति के आधार पर अदालत को उसके दोषी होने का विश्वास हो गया और उसे प्राणदण्ड का सच्चा हुक्म सुनाया गया।

उपरोक्त घटना माननीय जजों ने मुकदमें के फैसले में लिखी है और उसे भ्रम नहीं, वरन् यथार्थता के रूप में स्वीकार किया है। मानचेस्टर में ‘टू वर्ल्डस’ नामक पत्र में योगिनी एमा हार्डिंग ने इस विवरण को प्रकाशित कराया था। वह घटना बताती है कि मरने के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है और अपने भूतपूर्व जीवन के बहुत प्रसंगों के साथ घना सम्बन्ध रखता है।


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