खुद भी मदद कीजिए।

November 1941

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अमेरिका में एक बार एक बड़ा युद्ध हो रहा था, सेना कहीं बाहर जा रही थी। रास्ते में एक बड़ा शहतीर इस प्रकार पड़ा हुआ मिला कि उससे निकलने में बड़ी रुकावट होती थी, इसलिये इस बात की जरूरत हुई कि इस शहतीर को रास्ते में से हटा कर एक तरफ डाल दिया जाये।

सेना के अधिनायक ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि इसे उठाओ और एक तरफ फेंक दो। सिपाही आज्ञा का पालन करने लगे, परन्तु शहतीर बहुत भारी था इसलिये वह उठ नहीं रहा था। अधिनायक दूर खड़ा चिल्ला रहा था- नालायकों, इसे उठाओ ! हरामखोरी मत करो, मुर्दे की तरह हाथ मत चलाओ।

इस प्रकार के कटु शब्दों के प्रयोग से सिपाहियों में कोई नवीन उत्साह नहीं आ रहा था और शहतीर की समस्या हल नहीं हो रही थी। इतने में एक मामूली से आदमी ने अधिनायक के पास आकर विनम्र शब्दों में कहा-यदि आप स्वयं भी इन सिपाहियों के साथ जुट जावें तो यह काम आसानी से हो सकता है। अधिनायक ने झुँझला कर कहा ‘तू देखता नहीं, मैं कमाण्डर हूँ। मेरा काम हुक्म देना है, कुली का काम करना नहीं।’ उस व्यक्ति ने अपनी गलती पर क्षमा माँगी और खुद सिपाहियों के साथ जुट गया और उन्हें उत्साह दिला कर तथा उठाने की युक्तियाँ काम में लाकर उस शहतीर को उठा कर अलग पटकवा दिया। जो कार्य बहुत समय से नहीं हो रहा था, वह जरा सी देर में हो गया।

उस मामूली पोशाक वाले आदमी ने फिर जाकर अधिनायक के सम्मुख अभिवादन किया और कहा-यदि कभी फिर ऐसी कठिनाई आया करे तो आप मुझे बुला भेजा करें, मैं स्वयं मदद करके कठिन कामों को आसान कर दिया करूंगा। कमाण्डर ने उपेक्षा से मौंहे चढ़ाते हुए कहा-’तेरा क्या नाम है और कहाँ रहता है?’ उस आदमी ने नम्रता से कहा-महोदय ! मुझे जार्ज वाशिंगटन कहते हैं और इस देश के राष्ट्रपति के पते पर सूचना देने से वह मुझे मिल सकती है।

अमेरिका के प्रेसीडेण्ट जाँर्ज वाशिंगटन को अपने सामने खड़ा देखकर कमाण्डर के होश गुम हो गये, पैरों तले से जमीन खिसकने लगी। उसने गिड़गिड़ा कर अपने अपराध के लिये क्षमा माँगी और भविष्य में खुद भी सिपाहियों के कामों में मदद देने की प्रतिज्ञा की।

हम अपने कामों को दूसरों पर टालते हैं और जब वे पूरा नहीं कर पाते तो झुँझलाते हैं। क्या ही अच्छा हो यदि अपने साथियों के काम में थोड़ी सहायता की जाये और उन्हें सरलता का मार्ग बताया जाये। इस प्रकार कठिन कार्य आसानी से हल हो सकते हैं।


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