दुष्ट मनुष्यों के मन ऐसे हैं जैसे कुत्ते की पूँछ उसे बार बार सीधा कीजिये, फिर भी टेढ़े होने की आदत न छूटेगी।
पुल के नीचे एक और से पानी आता है दूसरी ओर चला जाता है वह उसमें से एक चुल्लू भी
अपने पास नहीं रखता। स्वार्थी पुरुष सदुपदेशों को इस कान से सुनते हैं और उस कान से निकाल देते हैं।
जब जोर की आँधी चलती है तो वायु के वेग से हिलते हुए पेड़ पहचाने नहीं जाते कि यह पीपल है या गूलर। जब मनुष्य के हृदय में ज्ञान का तूफान होता है तो उसके प्राण मात्र एक ही जाति के दिखाई पड़ते हैं, ऊँच-नीच का भेद उसे दृष्टिगोचर नहीं होता।