तान्त्रिक का व्यर्थ प्रयास

November 1941

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(श्री मंगल चंद भंडारी)

किसी घने जंगल में एक बड़ा भारी तान्त्रिक चिरकाल से महाकाल की साधना कर रहा था। उसने बहुत-सी अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त कर ली थीं और पूर्ण सिद्ध बनने के लिए घोर तप में प्रवृत्त था।

एक दिन वह अपनी गुफा में पड़ा हुआ सुस्ता रहा था, वह वहाँ हुई चीजों से मनोरंजन करने लगा। इतने में एक चूहा उधर से फुदकता हुआ आ निकला। तान्त्रिक को उसके मनोभाव जानने में क्षण भर की भी देर न लगी, वह बिल्ली से डर कर यहाँ भाग आया था और कहीं छिपने की बात सोच रहा था। योगीराज की मौज आई कि लाओ इस बेचारे का डर दूर कर दें, उन्होंने एक फूँक मारी, तो चूहा अपना शरीर बदल कर बिल्ली बन गया। अब तो म्याऊँ म्याऊँ करता वहीं रहने लगा।

बहुत दिन के बाद तान्त्रिक को एक बार फिर फुरसत मिली। वह यों ही बैठा हुआ था कि देखा-बिल्ली थर-थर काँप रही हैं। बेचारी को कुत्तों ने धर दबाया था। तान्त्रिक से न रहा गया, उसने चुटकी बजा कर बिल्ली को कुत्ता कर दिया, ताकि फिर डरने का अवसर न आवे। कुत्ता कुछ देर तक दुम हिलाता हुआ कृतज्ञता प्रकट करता रहा।

लेकिन फिर भी उसे चैन नहीं था। गुंडा से बाहर निकलता कि जंगली चीते उसका पीछा करते। डर के मारे वह फिर गुफा का कोना कुरेदने लगा। तान्त्रिक कुछ झुँझलाया तो सही, पर एक अवसर और दिया, पीठ पर हाथ फेर कर उसे चीता बना दिया और कह दिया-’जा अब निधड़क घूम फिर।’

लेकिन डर भी बड़ी बेढब चीज़ है। उसके लिए आसमान से विपत्ति आ खड़ी होती है। बहेलियों का झुण्ड चीते पकड़ने के लिये उस जंगल में आ टपका। बेचारे चीते का कलेजा धक-धक करने लगा। पिछली टाँगों में मुँह छिपाकर उसी गुफा के एक कोने में जान बचाने के लिए वह पड़ा रहा, डर तो उसका पीछा छोड़ता ही न था।

इस बार तान्त्रिक तप पर से अँगड़ाई लेता हुआ उठा, तो उसका पैर चीते की दुम पर पड़ा। उसने चौंक कर देखा कि क्या है-”अहा, यह तो चीते राम बैठे हुए हैं, महाशय जी को डर से छुटकारा नहीं, मन का भय इनके लिए साक्षात् भय बुला लाता है।” तान्त्रिक ने खोपड़ी घुमाई, तो उसमें से एक विचार टपक पड़ा-”जिसका हृदय जैसा है, वह वैसी ही परिस्थितियों में रहेगा। दूसरों के कन्धों पर खड़ा होकर कोई बड़ा हो भी जाये, तो इससे कुछ लाभ न होगा। अपने आप उपार्जित की हुई शक्ति ही वास्तविक और स्थायी शक्ति है। केवल दूसरों की सहायता से किसी का भला नहीं हो सकता।

योगी ने कमण्डल उठाया और एक चुल्लू जल उस चीते के ऊपर फेंक दिया। वह चूहा बन कर बिल की तलाश में फिर फुदकने लगा। तान्त्रिक जमहाई लेता हुआ, इधर-उधर टहल रहा था और इस बात का अनुभव कर रहा था कि उन्नति का एक ही मार्ग हो सकता है ‘अपने पैरों पर आप खड़े होना।”


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