बुरे दिनों का आगमन

November 1941

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(ऋषि तिरुबल्लुर)

उसके भाग्य में निस्संदेह दुःख लिखा है, जो अपने मन को शुभ कार्यों में नहीं लगाना चाहता। कहते हैं कि होनी बड़ी प्रबल है, यदि ऐसा न होता तो यह जानते हुए भी कि बुरे कर्मों का बुरा फल होता हैं, लोग क्यों पाप कर्मों में प्रवृत्त होते? जब किसी के बुरे दिन आते हैं, तो वह भलाई करना छोड़ देता है और बुराई को समेटता फिरता है। यद्यपि उसने हजारों बार यह देखा और सुना होता हैं कि बुराई से बढ़ कर और कोई विपत्ति नहीं है, तो भी वह उसे ही अपनाता है। भवितव्यता इसे ही तो कहते है।

जिसके बुरे दिन आते हैं, जिस पर दुर्भाग्य का प्रकोप होता है, वह आलसी बनता है और अप्रसन्न एवं उदास रहने लगता है। बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग से हटा कर प्रमाद की ओर झुकाता है। ऐसा करते करते वह अपन सर्वस्व खोकर दुःखों के कीचड़ में फँस जाता है। जिस पर भाग्य लक्ष्मी प्रसन्न होती है, उसे उत्साह प्रदान करती है, वह अपने कार्य में तन्मयता के साथ जुटने लगता है। उसकी बुद्धि कुमार्ग को छोड़कर सुमार्ग को ग्रहण करती है।

इसे हम भाग्य ही, भवितव्यता ही कहेंगे, जब कि इस बात को खूब अच्छी तरह जानते हुए भी कि बुरे कर्म का फल बुरा और अच्छे का अच्छा होता, नेकी के कार्यों को छोड़कर बदी करना स्वीकार करते हैं।


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