किसी ढालू पहाड़ के ऊपर से एक पत्थर को नीचे गिराइए। वह पहिले धीरे-धीरे लुढ़केगा और फिर आकर्षण शक्ति की तीव्रता के कारण हर क्षण दूने-चौगुने वेग से गिरने लगेगा। जैसे पहले सैकिंड में सोलह फीट गिरा था, दूसरे सैकिंड में अड़तालीस फीट तीसरे में अस्सी फीट पाँचवें में 144 और दसवें में यह वेग तीन सौ चार फीट प्रति सैकिंड के हिसाब से हो जायेगा और आगे जितनी देर लगेगी, उतनी ही तेजी बढ़ती जायेगी।
ठीक यही नियम हमारे स्वभाव पर लागू होता है। जब हम पतन के पथ पर कदम बढ़ाते हैं, तो पहले धीरे-धीरे खिसकते हैं, थोड़ी बुराई कर लेने से कुछ हर्ज नहीं। इसे कोई न जान सकेगा और न हमारी कोई बड़ी हानि होगी। “किन्तु असल में ऐसा सोचना मूर्खता है। पतन के मार्ग में ऐसी आकर्षण शक्ति है कि वह वेग को दिन दूना, रात चौगुना करती जाती है। एक छोटा-सा कुविचार बढ़ते-बढ़ते हमारे जीवन को पतन के गहरे गर्त में डाल सकता है।
इसलिए सावधान रहिए। पतन के पथ पर एक कदम भी आगे मत बढ़िये वरना पीछे संभलना कठिन हो जायेगा। तीर को छूटने से पहले ही रोक लीजिए, वरना पीछे पछताना ही हाथ लगेगा। यदि आज छोटा-सा कुविचार मन में उठे, तो उसे आज ही, इसी क्षण ही, कुचल दीजिए।