मजबूत रस्सी बाँधो

November 1941

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(श्री पी. जगन्नाथ नायडू. नागपुर)

एक किसान के खेत में एक गाय नित्य चर जाती थी। दुखी होकर किसान ने एक दिन उस गाय को पकड़ लिया और लेकर राज दरबार में पहुँचा। जब फरियादियों की पुकार हुई तो उस किसान ने अर्जी दी कि यह गाय नित्य मेरा खेत चर जाती है। हाकिम ने उस गाय को बँधवा लिया और उस गाय के मालिक को सिपाहियों द्वारा बुलवाया। जब वह आया तो हाकिम ने पूछा कि अपनी गाय को इस तरह चरने के लिये क्यों छोड़ देते हो?

गाय के मालिक ने कहा-महाराज मेरा दोष नहीं है। यह गाय बहुत ही सीधी थी कभी किसी का खेत नहीं खाती थी पर मेरे पड़ौसी की गाय को चोरी की आदत है, उसी ने मेरी गाय को भी अपने जैसा बना लिया है। हाकिम ने पड़ोसी को भी बुलाया और पूछा के तुमने ऐसी चोर गाय क्यों रखी है जो दूसरी गायों को भी चोर बनाती है? इस प्रश्न के उत्तर में उस पड़ोसी ने विनीत भाव से कहा - भगवन्, इसमें मेरा भी दोष नहीं है। पहले मेरी गाय बहुत ही सुशील थी पर जब से नया ग्वाला उसे चराने ले जाने लगा है तब से इसमें यह चोरी की लत पड़ी है। हाकिम ने हुक्म दिया कि अच्छा उस ग्वाले को पकड़ लाओ। ग्वाला आया उस से पूछा गया कि तूने किस तरह इस गाय को चोरी करना सिखाया? ग्वाले ने उत्तर दिया कि श्रीमान् ! मेरी अधीनता में चरने वाले सब पशु कुछ दिन पूर्व तक बड़े ईमानदार थे, भूलकर भी किसी के खेत में मुंह न डालते थे पर जब से मोती धीवर की गाय मेरे झुण्ड में आई है तब से ही सब गायें बिगड़ी हैं, उसी के दुस्स्वभाव ने सारे झुण्ड को चोर बना दिया है।

हाकिम ने सोचा तब तो मोती धीवर का ही कसूर है। सिपाही आज्ञा पाते ही मोती को बाँधकर कचहरी में ले आये। हाकिम ने भौंह तिरछी करते हुए कहा - क्यों रे ! तूने गाय को चोरी करना किस प्रकार सिखाया? मोती के पाँव काँप रहे थे, उसने डरते-डरते कहा हुजूर ! मैंने चोरी करना नहीं सिखाया। कुछ दिनों तक कमजोर रस्सी से इसे बाँधता रहा उस रस्सी को यह झट तोड़ जाती थी और पास के खेतों में चर आती थी। उसी टूटी हुई कमजोर रस्सी को जोड़-जाड़ कर फिर इसे बाँधता लेकिन दूसरे दिन यह फिर तोड़ जाती। कई दिन यह क्रम चलता रहा, बस, तभी से यह पक्की चोर बन गई है।

दोष मामूली सा था इसलिये सब को डाट फटकार कर और आगे से ऐसा न करने की चेतावनी देकर किसान, गाय का मालिक, पड़ौसी, ग्वाला और मोती को छोड़ दिया गया। पर हाकिम को स्वयं सन्तोष न हुआ उसने चोरी की जड़ जानने के लिये और सारे मामले पर गम्भीरता पूर्वक विचार करने के लिये बड़े-बड़े न्याय अधिकारियों की एक सभा बुलाई। सभा में बहुत समय तक तर्क-वितर्क और विचार-विनिमय की धूम रही पीछे यही तय किया गया कि-झुण्ड की सारी गायों को चोर बना देने का दोष कमजोर रस्सी बाँधने पर है। यदि मोती मजबूत रस्सी से गाय को बाँधता तो चोरी का इतना प्रचार होने के कारण राज्य में जो अशान्ति उत्पन्न हुई है वह न होती।

लोग अपने मनकों कमजोर रस्सी से बाँधते हैं वह उसे तुड़वा कर हरियाली चरने चल देता है, कुछ दिनों में उसकी आदत मजबूत हो जाती है और पक्का चोर बन जाता है। एक चोर अपनी बुरी बात और बहुतों को सिखाता है, इस प्रकार बुराई की बेल फैलती है और संसार में अशान्ति का साम्राज्य छा जाता है। दुनिया को दुखों से बचाने का उपाय यह है कि हम लोग अपने मन को धर्म की मजबूत रस्सी से बाँधे, इधर उधर न भटकने दें।


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