बहुत से मनुष्य ऐसी शिकायत करते सुने जाते हैं, हम अकेले हैं, हमसे कोई प्रेम नहीं करता, पैसा न होने की वजह से संसार में कोई हमारा नहीं है। उन्हें समझना चाहिये कि दूसरों के साथ अच्छे संबंध होने का कारण पैसा नहीं वरन् निष्कपट प्रेम है। आप अपने को पवित्र बनाइये, दूसरों से निस्वार्थ प्रेम रखिए, उनकी भलाई में प्रवृत्त रहिए फिर देखिए, कि कितने साथी हो जाते हैं और वे आप पर प्राण तक देने को तैयार रहते हैं। उदासीन और शत्रुओं से वह घिरा रहेगा, जो स्वार्थी है। चूँकि स्वार्थ स्वयं मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, लालची आदमी का स्वार्थ विभिन्न रूप धारण करके उसके सामने नाचता रहता है पीला चश्मा पहनने वाले को जैसे सब चीजें पीली दीखती हैं, वैसे ही स्वार्थी मनुष्य को सब लोग शत्रु या उदासीन दीखते हैं। उदारता, सहानुभूति और निस्वार्थता ऐसे बढ़िया रक्षक हैं, जैसे जल में नाव। गहरे जल के ऊपर भी नाव में बैठ कर हम सुखपूर्वक सैर करते रह सकते हैं, फिर क्या निस्वार्थ हृदय होने पर दुर्जनों का भी प्रेम प्राप्त कर लेना सम्भव नहीं है?