रामकृष्ण परमंहस के उपदेश

November 1941

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लुहार अपनी धोंकनी को निरंतर इसलिये धोंकता रहता है कि उसकी भट्टी की आग ठीक प्रकार जलती रहे। बुद्धिमान मनुष्य सत्पुरुषों के सत्संग इसलिए करता है कि उसका विवेक सदैव दीप्तिमान रहे।

गिर्द्ध ऊँचे आकाश की स्वच्छ वायु में उड़ता हैं, परन्तु उसकी आंखें सड़े हुए मृत माँस को ढूँढ़ती रहती हैं। पाखंडी मनुष्य बातें तो आत्मज्ञान की बहुत करते हैं, पर मन उनका स्वार्थ साधन में लगा रहता है।

तोता वैसे तो ‘सीता रात-सीता राम’ रटता रहता है पर जब बिल्ली उसे पकड़ लेती है, तो सीता राम भूल कर ‘टें टें’ करने लगता है। बकवादी मनुष्य रोज-रोज बहुत ज्ञान विज्ञान की बातें करते हैं, पर जब परीक्षा का समय आता है, तो अपनी बुरी आदतों को ही प्रकट करते हैं।

काजल की कोठरी में कितनी ही सावधानी के साथ रहिए, पर कहीं न कहीं दाग लग ही जायेगा। इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों के साथ रहने से मन में कुछ न कुछ दुर्भाव पैदा हो ही जाते हैं।

दर्पण के ऊपर मिट्टी चिपकी हो तो उसके ऊपर सूर्य की किरणें न चमकेंगी, जिसका हृदय कलुषित है, उसे ईश्वरीय सत्ता का आभास न मिलेगा।

लोहे की कील मिट्टी में तो आसानी से गड़ जाती है, पर पत्थर में नहीं गड़ती। सदुपदेश सज्जनों पर तो प्रभाव करते हैं, पर दुष्टों पर उनका असर नहीं होता।

लोहा जब तक गरम रहता है, तब तक लाल रहता है और जब ठंडा पड़ जाता है, तो उसका रंग काला हो जाता है। सत्पुरुषों के सत्संग से मनुष्य उज्ज्वल रहते हैं, परन्तु अकेले पड़ जाने पर मलीनता आ जाती है।


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