(श्री अग्रसोची)
मनुष्य जाति को भविष्य जानने की बड़ी उत्सुकता रहती है। हर कोई जानना चाहता है कि भविष्य में क्या होगा। जड़ प्रकृति एक ही नियम पर निर्धारित है और वह अपने प्रेरक की इच्छानुसार घूमती रहती है। इसलिये ज्योतिष शास्त्र ग्रहण, वर्षा नक्षत्रों का उदय अस्त होना, भूकम्प अकाल आदि का तो निर्णय कर लेता है, परन्तु चैतन्य मनुष्यों के समाज के बारे में कोई निश्चित भविष्यवाणी करना असम्भव है। क्योंकि जीव चैतन्य और स्वतन्त्र है उसे अपना भविष्य बनाने की पूरी पूरी आजादी प्राप्त है। लोग चाहें तो आये हुए सतयुग को शताब्दियों के लिये दूर हटा सकते हैं।
फिर भी हम भविष्य के बारे में सोचते हैं और उस कल्पना में अधिकाँश बातें ठीक भी होती हैं। आज के विचार और कार्यों के आधार पर कल की बात बता देना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। जो विद्यार्थी मन लगाकर पढ़ता है उसके लिये यह भविष्यवाणी कर देना कुछ कठिन नहीं है कि वह परीक्षा में पास होगा और होता भी यही है यदि कोई विशेष कठिनाई आकर उपस्थित न हो जाये तो प्रायः वह पास ही होगा। भविष्य की कल्पना पर आज का काम करते हैं और आज के कामों से भविष्य का अन्दाज करते हैं। चाहे सौ फीसदी यह अनुमान ठीक न बैठे तो भी अधिकाँश में यह ठीक ही बैठता है। कल हम पर क्या बीतेगी, इसका अनुमान आज के कार्यों के आधार पर सभी विचारक और विद्वान् लगाते हैं। एक दार्शनिक का कथन है कि भविष्य के बारे में सोच विचार करते रहना मनुष्य जाति की अनिवार्य आवश्यकता है।
आइए, हम मनुष्य जाति का भविष्य जानने के लिए आज की स्थिति का सिंहावलोकन करें। क्योंकि वर्तमान के आधार पर ही भविष्य का निर्माण होता है। जन-समाज में यह एक धारणा फैली हुई है कि युद्ध के बाद शान्ति होती है। इसलिए यह समझ लिया जाता है कि लड़ाई के बाद लोग अपनी मूर्खता समझ जायेँगे और शान्ति से रहने लगेंगे। परन्तु अनुभव से यह धारणा गलत साबित हुई है। सन् 14 से 19 तक महायुद्ध हुआ। उसके बाद यह समझा गया कि अब बहुत दिनों तक सुख-शान्ति का राज रहेगा। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। जनता की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, वरन् स्वार्थ और शोषण का दौर पहिले से भी अधिक चलने लगा। दो दशाब्दियाँ ही बीतने पाई थीं कि युद्ध पहले से भी अधिक प्रचण्ड रूप धारण करके प्रकट हो गया। हमारा अनुमान है कि ऐसी सैकड़ों लड़ाइयाँ भी मानव जाति का सुन्दर भविष्य निर्माण न कर सकेंगी। जर्मनी सोचता है कि मेरे साथ गत युद्ध में न्याय नहीं हुआ। उसका प्रतिशोध कुछ ही दिनों बाद फूट पड़ा। सत्ताधारियों ने संसार की अधिकाँश निरीह जनता को पददलित शोषित और गुलाम बना लिया है। अरबों जिह्वाएं कुछ कहना चाहती है पर उनकी जबान पर ताला और सीने पर छुरा तना हुआ है। मानव की अन्तरात्मा को, उसकी प्रकृति-दत्त स्वाधीनता को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। क्या आप सोचते हैं कि अगणित हृदयों की मन मसोस कर दबाई हुई आकांक्षाएं यों ही दबी रहेंगी? नहीं ऐसा न होगा शोषण से शान्ति का नहीं विद्रोह का सूत्रपात होगा और उस विद्रोह की लपलपाती हुई चामुण्डा अपनी रक्त पिपासा तृप्त करती रहेगी।
युद्ध से युद्ध का अन्त नहीं होगा हिंसा से शान्ति का आविर्भाव नहीं होगा। आज हम देखते हैं कि संसार इस सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। वह अपनी महत्वाकाक्षों पर दूसरों के हितों को बलिदान करने पर तुला हुआ है। लोगों के हृदय में स्वार्थ की भट्टी धाँय-धाँय करके जल रही है, क्या छोटा क्या बड़ा, क्या अमीर क्या गरीब अपने तुच्छ स्वार्थ से आगे की बात नहीं सोचता। दया धर्म, प्रेम और मानवता का दर्शन होना कठिन हो रहा है। जब तक इस दुबु दुर्बुद्धि में अन्तर न आवेगा तब तक सुख शान्ति का साम्राज्य स्थापित न होगा। आज मनुष्य जाति धर्म को छोड़कर अधर्म की ओर अग्रसर हो रही है। इसके कडुए फल तो भोगने ही पड़ेंगे। इस दृष्टिकोण से विचार करने पर यह भविष्यवाणी करना अनुचित न होगा कि-”सतयुग अभी दूर है।”