लुँग-गोम-पा, सिद्धयोगी

November 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्रसिद्ध फ्रेंच परिव्राजक देवी श्रीमती अलेक्जेएंड्रा डैविड नील ने सिद्ध योगियों की बहुत खोज की है। वे ब्रसेल्स विश्वविद्यालय की प्रोफेसरी छोड़कर बौद्ध धर्म में दीक्षित हुईं और 12 वर्ष तक तिब्बत में रहकर लामा योगियों के साथ रहकर आध्यात्म विद्या का अभ्यास किया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लामा योगियों की असाधारण सिद्धियों का वर्णन करते हुए एक घटना का इस प्रकार उल्लेख किया है -

“उत्तरी तिब्बत के छंग था पठार में मेरी एक लुँग गोम पा योगी से भेंट हुई। मैं अपने पुत्र और सेवकों के साथ उस पठार को पार कर रही थी। इतने में मुझे एक छोटी काली चीज़ बहुत दूर से अपनी ओर दौड़ती हुई दिखाई दी। दुरबीन लगाकर देखा तो एक मनुष्य आकृति दिखाई दी। इस सघन वन में यात्री का दिखाई देना एक आश्चर्य की बात थी। सोचा, शायद कोई यात्री भटककर इधर आ निकला होगा, चलो इसे भी साथ ले चलें। शंका निवारण के लिये मैंने अपनी दुरबीन सेवक को दी और ध्यानपूर्वक देखने का आदेश किया। वह बोला-’लामा लुँग-गोम छीग पा” अर्थात् यह तो लामा सिद्ध योगी के समान दिखाई देता है। मैंने ऐसे सिद्धों की करामातों के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। किन्तु आँखों से देखने के थोड़े ही अवसर मिले थे। मैं द्रुतवेग से अपनी ओर आते हुए उस योगी को ध्यानपूर्वक देखने लगी और सोचने लगी कि जब यह पास आवेंगे तो उन से कुछ बातें करूंगी और फोटो खीचूँगी।

सेवक ने मेरी उत्सुकता को पहचान लिया और कहा-’देवीजी, आप इस योगी को भूलकर भी न छेड़ना, ऐसा करने से प्राणों पर संकट आ सकता हैं।” मैंने उसकी बात मान ली और जरा हटकर खड़ी हो गई। जब वह हमारे पास से गुजरा तो मैंने देखा कि उस सिद्धयोगी की आंखें अधखुली थीं और आकाश में किसी ऊँचे पदार्थ को स्थिर दृष्टि से देखता था। वह रेलगाड़ी की तेजी से दौड़ रहा था। ऐसा प्रतीत होता था मानो उसका शरीर एक गेंद है, जो बार-बार जमीन में लगती और जोर से उछलती हुई आगे चली जा रही है। वह धुनी हुई रुई की तरह हलका लगता था। बाँए हाथ में वस्त्र और दाहिने हाथ में ‘फेर्वा (अभिमंत्रित छुरी) लिए हुए था यह छुरी उसे छड़ी की तरह जमीन छूने पर सहारा देती जाती थी। कुछ ही क्षणों में वह इतनी दूर निकल गया कि फिर मैं उसे दुरबीन की सहायता से भी न देख सकी।

आगे थेबगिपाई क्षेत्र पर जाकर अपने साथियों से मैंने उस दृश्य का वर्णन किया तो उन्होंने बताया कि लुँग-गोम-पा’ सिद्धयोगी रुई की तरह हलके बन जाने और हवा की तरह दौड़ने में पूर्ण दक्ष होते हैं। उन्हें और भी अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118