सत्य केवल एक है।

May 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सत्य केवल एक है, अनेक नहीं। हाँ, उस तक पहुँचने के द्वार जरूर अनेक हो सकते हैं। लेकिन जो द्वार के आकर्षण में उलझकर उसी के मोह में पड़ जाता है, वह द्वार पर ही ठहर जाता है। ऐसे में सत्य की समीपता उसके लिए कभी भी सुलभ नहीं होती हैं।

हालाँकि सत्य हर कहीं है। जो कुछ भी है सभी कुछ सत्य है। उसकी अभिव्यक्तियाँ अनंत है। वह तो सौंदर्य की ही भाँति है। सौंदर्य अगणित रूपों में प्रकट होता है, पर इससे क्या वह भिन्न भिन्न हो जाता है। जो रात्रि में तारों में झलकता है, जो सूर्य में प्रकाश बन चमकता है, जो फूलों में सुगंध बनकर महकता है, जो हरे भरे पहाड़ों से झरनों के रूप में झरता है, जो हृदय में भाव बन उमगता है और जो आँखों में प्रेम बनकर प्रकट होता है, वह भला क्या अलग-अलग है? हाँ, इनके रूप अलग-अलग हो सकते हैं। पर इन सभी में जो एकता स्थापित है, जो सबका सार है, वह तो एक ही है।

ऐसे ही जो शब्द बाँधे जाते हैं, उन्हें तो सत्य से वंचित रहना ही पड़ेगा। अब ये शब्द संस्कृत के हों या फिर अरबी के, हिब्रु के हों या फिर लैटिन के, शब्द तो शब्द ही हैं। सत्य उनकी लिखावट में नहीं, उनमें निहित भावों में हैं। जो भावों में पैठते हैं और गहराई से पैठते हैं, वे सत्य पा ही लेते हैं कि अपने साररूप में हर कहीं एक ही सत्य विद्यमान है। जो इस सचाई को जानते हैं, वे राह के अवरोधों को भी सीढ़ियां बना लेते हैं और जो नहीं जानते उनके लिए सीढ़ियाँ भी अवरोध बन जाती हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles