काश! विस्मृति स्मृति में बदल जाए

May 2001

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भौतिकी के छात्र जानते हैं कि संसार में जितना भी पदार्थ विश्व संरचना के आदि में था, वह सदा सर्वदा यथावत ही बना रहता है; न घटता है, न बढ़ता है। मात्र उसका रूपांतरण होता रहता है। ठोस, द्रव, गैस के रूप में उसका परिवर्तनक्रम सतत चलता रहता है और नया बनने, पुराना बिगड़ने की सृष्टि प्रक्रिया अपने चित्र विचित्र रूप दिखाती, विश्व वसुधा की शोभा बढ़ाती है।

ठीक यही बात विचार संपदा के सम्बन्ध में भी लागू होती है। मनुष्य के सम्मुख कुछ मूलभूत प्रश्न हैं, कुछ सीमित इच्छाएँ आवश्यकताएँ है। सोचने, खोजने, समाधान निकालने के भी कुछ गिने चुने तरीके हैं। दैत्य और देव दो विचार पद्धतियाँ उनमें से प्रमुख है। एक वर्ग अन्यमनस्कों, अन्य संतोषियों का भी है, जिन्हें आलसी, प्रमादी, पिछड़े वर्ग जाता है। वे दबाव पड़ने पर ही कुछ सोचते और रहे हैं। इसी छोटी सी परिधि में मानवीय चिंतन और गतिविधि का गतिचक्र अपनी धुरी पर परिभ्रमण करता है। समय, सार नए तर्क, तथ्य, प्रकार, उदाहरण के कारण ताप बढ़ते घटते रहते हैं। मन क्षेत्र को जीवन का उद्गम उद्भव समझा जाना मनुष्य जैसा भी कुछ है, जैसा भी कुछ होने वाला है सब कुछ उसकी विचार संपदा का प्रतिफल है। चिंतन को यदि जीवनचर्या में सर्वोपरि स्थान मिले, उसे न तो अनुचित कहा जाना चाहिए और न अत्युक्ति। भगवान के बाद आदमी की इच्छा आवश्यकता मनःक्षेत्र जायेगी है। वही से उपलब्धियों का उपाय खोजा जाता है।

संसार पर्यटन में नया उपार्जन करने के लिए कि पुराना कचरा बुहारा जाता रहे। मल त्याग न करने पर आहार पेट में कैसे चलें? स्मृति का महत्व ही होता है। जिनकी स्मरण शक्ति तीव्र होती है, उन्हें और विभूतियाँ हथियाने की जरूरत अधिक होती है। और उसकी इच्छा सभी करते हैं।

स्मृति विस्मृति की सामान्य प्रक्रिया के मध्य कई बार ऐसी आवश्यकता पड़ती है कि किन्हीं बहुमूल्य विचार संपदाओं को विस्मृति के गर्त में उबारकर फिर से किया जाए और उस पुरातन का भी सामयिक लाभ लिया जाए, किंतु कठिनाई तब आती है, जब विस्मृति के उपयोगी स्मृतियों को खोज निकालना और क्षण भर प्रयत्न करने पर भी संभव नहीं होता।

सामान्य जीवन में भी लेन−देन में भूल पड़ने से कठिनाई होती है। उपयोगी व्यक्तियों का अत्यंत जाने से आवश्यकता पड़ने पर उस सूत्र के सहारे महत्वपूर्ण काम कर सकना संभव था, उसका मंच समाप्त हो जाती है। असामान्य जीवन इससे अरोग्य मानवीय अचेतन में प्रसुप्त विस्मृतियों का इतना भी डर भरा पड़ा है कि उसे एक छोटा मोटा ब्रह्मांड भी बना सकता है। जिस प्रकार कोई पदार्थ नष्ट नहीं होता उसी प्रकार मानसिक उपार्जन भी किसी न किसी रूप में उधम बना रहता है। इस अर्जित संपदा में से आवश्यकता है कुछ उपयोगी खोजा और बनाया जा सके निश्चित ही सामान्य न रहकर असामान्य स्तर कर सकेगा।

वंशानुक्रम की परंपरा में मनुष्य को पूर्वजों का तथा पीढ़ियों का संचित उत्तराधिकार उपलब्ध होता है। जन्माँतरों में जो सीखा गया था, वह भी पूर्णतः नहीं हो जाता। घटनाएँ इस जन्म की उस जन्म की। मनःसंस्थान में सुरक्षित रहती है। पर इसलिए प्रकृति उन्हें प्रसुप्त बनाकर स्थान भर है। मुरदे को जमीन में गाढ़ देने पर वह भी और जगत् भी नहीं घेरता। इतने पर भी उस अस्तित्व किसी न किसी रूप में चिरकाल तक है। ठीक इसी प्रकार सार्थक और निरर्थक विपुल भंडार मनुष्य के सीमित मनःसंस्थान में जमा रहता है।

प्रश्न यह है कि इन विस्मृतियों अतः के उपयोगी है, उन्हें किस तरह स्मृति के क्रम में लाया जाए यदि ऐसा है तो उत्तराधिकार से और जनम जन्माँतर जो समय -समय पर अर्जित होता रहा है, इतना अधिक लाभ उठाया जा सकता है कि मनुष्य सामान्य न रहे, देवमानवों की पंक्ति में जा बैठे, सिद्ध पुरुष कहा जाने लगे।

विस्मृति को स्मृति के रूप में बदला जा सकना संभव है। गरमी में दूब सूख जाती है, पर वर्षा होते ही उसे हरी होने में देर नहीं लगती। ठीक इसी प्रकार गुम गई स्मृति संपदा को फिर से जीवित जाग्रत बनाया और उसका समुचित लाभ उठाया जा सकता है। इस तथ्य को अब वैज्ञानिक समर्थन प्राप्त होने लगा है। अब नए सिरे से यह सोचा जाने लगा है कि नया ज्ञान प्राप्त करने को ही पर्याप्त क्यों माना जाए और क्यों न विस्मृत बहुमूल्य को पुनर्जागृत करके विलक्षण बना जाए। इस आकाँक्षा को उत्तेजित करने में विज्ञान की नवीनतम शोधें बहुत सहायक सिद्ध हो रही है।

स्मृति एक जटिल प्रक्रिया तंत्र है, जिसे जानने के लिए न्यूरोएनाटोमिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, मॉलीक्यूलर बायोलॉजिस्ट एवं बायोकेमिस्ट वर्ग ने अनेकों प्रयास किए है। इन विभिन्न तथ्यों में से निष्कर्ष यह निकाला गया है कि स्मृति दो प्रकार की होती है, (1) क्षतिणक स्मृति, जो कुछ ही क्षणों तक याद रहती है जैसे, टेलीफोन डायरेक्टरी में नंबर देखने के बाद डायल घुमाने तक याद रहना। फिर आदमी सामान्यतया उसे भूल जाता है, बशर्ते वह नंबर नियमित अभ्यास में न हो।

(2) दीर्घकालीन स्मृति, जो संचित बनी रहती है और समय आने पर कुरेदबीन करने पर उभर आती है। मस्तिष्कीय ज्ञान तंतुओं में विद्यमान आर.एन.ए. स्मृति के स्वरूप के आधार पर आदेश देता है। इस रासायनिक परिवर्तन के कारण मस्तिष्क में घटनाएँ टाइप की तरह स्थायी रूप से लिख जाती है। वही प्रसंग पुनः आने पर वे घटनाएँ याद आती जाती हैं।

विस्मृति को स्मृति में बदलने के लिए सम्मोहन प्रक्रिया द्वारा मदद ली जा सकती है। मूर्द्धन्य मनोविज्ञानी इंवाँस ने एक घटना का अपने संस्मरणों में वर्णन किया है। पीट्सवर्ग में एक धनपति ने घर की दीवार में खजाना गाड़ने का एक रात स्थान बनवाया। संपत्ति रखकर दीवार चिन दी गई। बाद में सेठ की मृत्यु हो गई धन की आवश्यकता पड़ने पर पुत्र ने उस मिस्त्री को बुलवाया, जिसने वह गुप्त स्थान बनाया था। उससे वह स्थान बताने को कहा। दुर्भाग्यवश लाख कोशिश करने पर भी मिस्त्री विस्मृति के कारण वह बता सका। अंत में एक विशेषज्ञ के माध्यम से उसे सम्मोहित किया गया। वर्षों पूर्व की वह घटना उसे याद हो आई एवं उसी स्थिति में अनायास ही वह उस स्थान पर पहुँचकर इशारा करने लगा। खोदने पर वहाँ खजाना मिल गया।

प्रयोगों द्वारा पाया गया है कि 35 वर्ष की आयु के बाद मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं का पुनर्निर्माण नहीं होता। आयु बढ़ने के साथ मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने वाली नलिकाएँ भी कड़ी होती चली जाती है, जिससे स्नायुकोष रक्त कम ही पाते हैं। उसी कारण वृद्धों को पुरानी संचित बातें तो ज्यों की त्यों याद रहती हैं, लेकिन वे तुरंत की बात को उसी समय भूल जाते हैं। ऑक्सीजन उपचार के माध्यम से कइयों को तुरंत की स्मृति को ठीक करने में सहायता मिली है, लेकिन प्राणवायु का प्रभाव समाप्त होते ही स्थिति पूर्ववत हो गई।

आधुनिक मनोविज्ञान ने सम्मोहन विद्या, इलेक्ट्रोडों द्वारा विद्युत प्रवाह, ऑक्सीजन उपचार के तीन उपाय सुझाए है और कहा है कि यदि इस दिशा में आवश्यक अनुसंधान और प्रयत्न किए जाएँ, तो मनुष्य जाति का अपार हित साधन हो सकता है और वह भूमि में गड़ा खजाना मिलने पर मालदार बन जाने वालों की तरह ज्ञान क्षेत्र में देखते जितनी विद्या पढ़ी थी, वह इस जनम में बिना अधिक परिश्रम किए देखते-देखते उपलब्ध हो सकती है और मंद बुद्धि समझे जाने वालो के लिए भी कालीदास जैसा विद्वान बन सकना संभव हो सकता है।

पुरातन मनोविज्ञान में समाधि, साधना, योगनिद्रा का उच्चस्तरीय प्रयोग होता रहा है। उसका छोटा रूप आधुनिक सम्मोहन विज्ञान है। इलेक्ट्रोडों द्वारा प्रसुप्त को जगाने के लिए जो झटके दिए जाते हैं, वह प्रयोजन ध्यान धारणा के सहारे प्रसुप्त संस्थानों को पुनर्जीवित करके भलीप्रकार पूरा हो सकता है। प्राणायाम में ऑक्सीजन उपचार के सुविस्तृत विज्ञान का समावेश है। इन उपचारों के सहयोग सामान्य मनुष्य का अनेक दृष्टियों से असामान्य बन सकना संभव है। विस्मृति के गर्त से निकलकर स्मृति का वाद पाया जा सकता है, इस प्रकार भूतकाल की संचित संपदा के सहारे, बिना नया उपार्जन किए, भविष्य को समुन्नत और सुसंपन्न बनाया जा सकता है।


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