मझधार में डूबना नहीं पड़ा (kahani)

May 2001

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जो बीत गया, वह यदि अनुपयुक्त रहा हो, तो भी इतनी गुंजाइश अभी भी है कि शेष का सदुपयोग करके, बन पड़े अनर्थ का परिमार्जन किया जा सके। सूर, तुलसी, अंबपाली, अंगुलिमाल, अजामिल, अशोक आदि आरंभ से ही वैसे न थे, जैसे कि विवेक का उदय होने पर पीछे हो गए। नए सिरे से अपनाई गई श्रेष्ठता इतनी समर्थ होती है कि उसके दबाव से पिछले दिनों बरती गई अवाँछनीयता को दबाया-दबोचा जा सके। ऊर्ध्वगमन का निश्चय बन पड़ने पर देवता लंबे हाथ पसारते और डूबते को उबारने में कुछ भी कोर-कसर नहीं रखते हैं। ऊर्ध्वगामियों को भगवान् ने सहारा दिया है। दिव्य जीवन जीने के लिए संकल्प उभारने, साहस करने और ऊँची छलाँग लगाने के लिए उद्धत-समर्पित लोगों में से किसी को भी मझधार में डूबना नहीं पड़ा है।

-वाङ्मय 28, पृष्ठ 7.42


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