कब रुकेगा युद्धों का यह सिलसिला

May 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

युद्ध विध्वंस एवं विनाश का पर्याय है। मानव अपने अधिकार क्षेत्र के विस्तार के लिए युद्ध का सदैव से सहारा लेता रहा है। युद्ध आत्मरक्षा की भावना से प्रेरित होकर भी होता है। युद्ध में समय एवं परिस्थितियों के आधार पर परिवर्तन होता रहा है, परंतु इसके सिद्धाँत सदा स्थायी रहे है। प्रत्येक युद्ध विगत युद्ध से भयंकर एवं विप्लवकारी होता है। पाषाणयुगीन युद्ध ही यह यात्रा परमाणु युग में प्रवेश कर चुकी है। आज युद्ध की विभीषिका ने समस्त संसार को अपनी परिधि में समेट लिया है।

संसार के प्रसिद्ध युद्धों का विवेचन-विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि यह कितना भयंकर होता है। युद्ध के इतिहास में 5 ई. पूर्व महाभारत का युद्ध प्रथम एवं विशाल युद्ध माना जाता है। 18 दिन के इस युद्ध का वर्णन महाभारत के 415 अध्यायों एवं 22,177 श्लोकों में किया गया है। कुरुक्षेत्र में मैदान में पाँडवों की सात अक्षौहिणी तथा कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी सेना के बीच यह युद्ध हुआ था। एक अक्षौहिणी सेना में 21,87 हाथी, 2187 रथ, 65,61 घोड़े तथा 1,1,35 पैदल सैनिक होते थे। इस महासागर में धर्म पक्षधर पाँडवों को विजय प्राप्त हुई थी। यह संग्राम अपने आप में अनोखा एवं अद्भुत है। इस युद्ध में इतने सैनिक मारे गए कि खून की नदियाँ वह निकली। महाभारत के बाद ईरानी शासक डेरियस तथा ग्रीस के मध्य मैराथन का संग्राम 41 ई. पूर्व हुआ। ईरान ने भारी जहाजी सेना के आक्रमण द्वारा ग्रीस पर अधिकार करने का जोरदार प्रयास किया। मैराथन के मैदान में उसने अपनी सेना का पड़ाव लगा दिया। ईरानी सेना का मुकाबला करने के लिए प्लेटिका के ग्रीक लोगों को स्पार्टा का सहयोग मिला। स्पार्टा के सहयोग से तथा प्रतिभाशाली एवं साहसी मिल्टियाड्स के कुशल नेतृत्व में ग्रीक ने ईरान को पूर्णतया पराजित कर दिया। इसमें हजारों की संख्या में सैनिक मारे गए।

अरबेला का युद्ध 331 ई. पूर्व हुआ। यह संग्राम सिकंदर और ईरानी शासक डेरियस के बीच लड़ा गया। इस भयंकर युद्ध में सिकंदर का कुशल नेतृत्व काम आया और उसे महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक सफलता प्राप्त हुई। झेलम का प्रसिद्ध युद्ध 326 ई. पूर्व सिकंदर तथा भारतीय सेनानायक पोरस के मध्य झेलम नदी के निकट लड़ा गया। पोरस की सेना परंपरागत ढंग से ‘चतुरंग बल’ पर संगठित थी, जबकि सिकंदर की सेना फैलेक्स पद्धति पर आधारित थी। डाथोडोरस के अनुसार इस संग्राम में 12, भारतीय सैनिक मारे गए तथा 1 बंदी बनाए गए। सिकंदर की सेना के 7 पैदल तथा 21 अश्वारोही सैनिक मारे गए। यह संख्या अतिशयोक्तिपूर्ण जान पड़ती है। सिकंदर को इस युद्ध में विजय तो मिली, परंतु वह आगे बढ़ने के बजाय पीछे लौट गया।

ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में भारत की राजनैतिक अवस्था बड़ी दयनीय थी। इसी कारण से गजनी के सुलतान महमूद ने 1 ई. से 126 ई. को देलवाडा (गुजरात) के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। इस संघर्ष में 5, हिंदू सैनिक मारे गए। मंदिर के पुजारी छत पर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे कि मंदिर से भगवान् शंकर स्वयं निकलकर अपने तीसरे नेत्र से इन अफ़गान आक्राँताओं को विनष्ट कर देंगे। परिणामतः महमूद मंदिर का समस्त धन एवं बहुमूल्य वस्तुएँ मंदिर के विशाल दरवाजे समेत लूटकर गजनी वापस लौट गया।

शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी भारत पर आक्रमण करने वाला तीसरा मुस्लिम शासक था। 111 में गोरी ने भटिंडा के किले पर आक्रमण करके इसे अपने अधिकार में कार्य लिया। परंतु पृथ्वीराज चौहान की सेना ने उसे कड़ी शिकस्त दी। तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। अंततः इस संग्राम में पृथ्वीराज चौहान की मौत हुई। इसके परिणामस्वरूप राजपूतों की सैन्य शक्ति का विनाश हो गया तथा भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। भारत में हुए युद्धों के इतिहास में पानीपत की पहली, दूसरी एवं तीसरी लड़ाइयों के साथ खानवा, हल्दीघाटी के युद्धों का भारी महत्व रहा। इन युद्धों ने तो जैसे राष्ट्र और समाज की आकृति के साथ प्रकृति भी बदल दी।

यह बदलाव भारत के साथ अन्य देशों में भी आया, तभी तो ट्राफलगर का सामुद्रिक संग्राम फ्राँस के सेनापति नेपोलियन तथा ब्रिटिश नौ सेना के एडमिरल के बीच 21 अक्टूबर 185 को भूमध्य सागर में जिब्राल्टर के निकट ट्राफलगर में लड़ा गया। इसमें नेपोलियन को पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में इंग्लैंड के 441 नौसैनिक मारे गए, जबकि फ्राँस की सेना के लगभग 14, नौसैनिक हताहत हुए।

लिपजिंग का संग्राम अक्टूबर 1813 ई. में नेपोलियन के नेतृत्व में फ्राँस द्वारा प्रशा, रूस तथा आस्ट्रिया आदि देशों के मध्य हुआ, जिसमें नेपोलियन को फिर एक बार पराजय का मुँह देखना पड़ा। इस संग्राम में नेपोलियन के लगभग 1,5, सैनिक मारे गए तथा तकरीबन 5, सैनिक बीमारी के शिकार हुए। वाटरलू का संग्राम नेपोलियन तथा अँग्रेज सेनानायक वेलिंग्टन के मध्य 18 जून 1815 ई. को लड़ा गया। इस संग्राम का विशेष महत्व है, क्योंकि जिस नेपोलियन का लगभग समस्त यूरोप पर अधिकार हो गया था, उसे इस संग्राम में अपनी ही भूल के कारण पराजित होना पड़ा।

लेकिन युद्धों का यह क्रम रुका नहीं, अनवरत चलता रहा। सन् 1104-05 में रूस एवं जापान के बीच युद्ध हुआ। 11 अगस्त 1104 के प्रथम आक्रमण अभियान में 3, रूसी तथा 15, जापानी सैनिक मारे गए। 25 अगस्त 1105 को एक अन्य अभियान में रूस के 16,5 तथा जापान के 32,615 सैनिक हताहत हुए। 23 फरवरी से 1 मार्च 115 के लंबे युद्ध में रूस के 6, सैनिक हताहत हुए तथा 25, सैनिक हताहत हुए। इस युद्ध में एक लाख से अधिक सैनिक मारे गए। एक संधि के साथ इस युद्ध का समापन हुआ। परंतु शायद यह चिंगारी बुझी नहीं और प्रथम विश्वयुद्ध सुलग उठा।

यह प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 ई. के बीच हुआ। इस युद्ध में यूरोप के दो प्रमुख गुट भाल ले रहे थे, जिन्हें केंद्रीय शक्ति तथा मित्र राष्ट्रों के गुट के नाम से जाना जाता है। केंद्रीय शक्ति के रूप में आस्ट्रिया, हंगरी और जर्मनी, तुर्की, बुल्गारिया तथा मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्राँस तथा रूस सम्मिलित थे। बाद में मित्र राष्ट्रों के साथ सर्बिया, जापान एवं अमेरिका भी शामिल हो गए। 4 वर्ष तथा 15 सप्ताह के इस भीषण युद्ध में एक करोड़ तीस लाख लोग काल कवलित हुए तथा प्रति 3 सैनिक घायल हुआ। 11 नवंबर 1918 को यह युद्ध शाँति में बदल गया। पर यह शाँति अस्थायी ही रही, क्योंकि कुछ ही वर्षों बाद द्वितीय महायुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गई।

द्वितीय महायुद्ध 1931 से 1945 ई. तक चला। एक सितंबर 1931 में एडाल्फ हिटलर के द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के साथ ही युद्ध के बारूद में चिंगारी लग गई। ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी की उस कार्यवाही के कारण उसके विरुद्ध विधिवत युद्ध की घोषणा कर दी। 6 अगस्त 1945 को अमेरिका के बमवर्षक वायुयान ने जापान के हिरोशिमा शहर में तथा 1 अगस्त 1945 को नागासाकी शहर पर परमाणु बम गिराए। इस भीषण विनाश से जापान ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व की मानवता चीख पड़ी थी। 14 अगस्त 1945 को जापान के आत्मसमर्पण ही घोषणा के साथ ही इस महायुद्ध की समाप्ति हो गई। इस युद्ध ने मानवता के विनाश का सबसे अधिक आंकड़ा तैयार कर दिया था, जिसमें लगभग पाँच करोड़ लोग काल के गाल में समा गए थे। इसके अलावा रेडियोधर्मी विकिरणों ने समस्त संबंधित क्षेत्र को दूषित करके रख दिया।

युद्धों की इस शृंखला में अगला नाम पाकिस्तान ने लिखाया। पाकिस्तान राष्ट्र की बुनियाद की झूठ, फरेब और ईर्ष्या पर स्थित है। पाकिस्तान ने अलग होने के तुरंत बाद ही भारत को भीषण आघात पहुँचाने के लिए 1947-48 में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। पाक के इस नापाक इरादे का जवाब भारतीय सेना ने डटकर दिया और पाक के मंसूबों पर पानी फिर गया।

पर 2 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत के उत्तर पश्चिम लद्दाख के चिपचैप से लेकर उत्तर पूर्व सीमाँत एजेंसी (नेफा) अथवा वर्तमान अरुणाचल प्रदेश के खिंजमान व ढालों चौकी के बीच अनेक भारतीय चौकियों पर आकस्मिक धावा बोल दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण से भारत को भारी हानि उठानी पड़ी। इस युद्ध में चीन ने भारत के लगभग 12,5 वर्ग मील भू-क्षेत्र को हड़प लिया। चीन के सैनिक भारतीय भू-क्षेत्र के काफी अंदर बढ़ते आ गए थे, परंतु अचानक वापस क्यों मुड़ गए, यह युद्ध के इतिहास में अब तक रहस्य बना हुआ हैं।

पाकिस्तान अपने ओछी हरकतों से कभी बाज न आया। उसकी गिद्ध दृष्टि सदैव कश्मीर पर लगी रही है। 1 अप्रैल 1965 को पाकिस्तान की 71 वीं ब्रिगेड ने कच्छ की सीमा पर हमला कर दिया। भारत ने उसका मुंहतोड़ जवाब दिया। कच्छ की पराजय के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच भयंकर सीमा युद्ध हुआ, जिसमें भारतीय सेना लाहौर के निकट पहुँच गई थी। अतंतः ताशकंद समझौते के अनुसार भारत पाकिस्तान में संधि हुई। इस युद्ध में पाकिस्तान एवं भारत के क्रमशः 47 एवं 2226 सैनिक मारे गए। भारत के 787 जवान घायल हुए। भारत ने पाकिस्तान के 475 टैंक एवं 74 वायुयान नष्ट कर डाले, जबकि अपने 123 टैंक तथा 35 वायुयान नहीं नष्ट हुए।

युद्धों की इस शृंखला में 3 से 17 दिसंबर 1971 तक लड़ जाने वाले 14 दिनों तक का भारत-पाक युद्ध भी बड़ा महत्वपूर्ण हैं। इस युद्ध के फलस्वरूप बंगलादेश का उदय ही गया और पाकिस्तान का यह हिस्सा सदा के लिए अलग हो गया। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में 73, सैनिकों ने भारतीय पूर्वी क्षेत्र के कमाँडर लेफ्टिनेंट जगजीत सिंह अरोरा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण की यह घटना भी आश्चर्यजनक हैं। इस युद्ध के संदर्भ में मेजर जनरल डी के पालित का कथन है, "विश्व के लंबे इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि इतने थोड़े दिनों में किसी ने साढ़े सात करोड़ लोगों को आजाद किया।"

युद्धों का यह क्रम रुका नहीं, खाड़ी में ईरान एवं ईराक के बीच जो भीषण एवं लंबी अवधि तक संघर्ष हुआ, उससे मानव सभ्यता एवं अर्थव्यवस्था की भारी आघात पहुँचा। यह 21 सितंबर 1970 से आरंभ होकर जुलाई 1988 में समाप्त हुआ। इस संग्राम में लाखों की संख्या में दोनों देशों के सैनिक एवं नागरिक काल-कवलित हो गए। इस युद्ध में सैनिक ठिकानों के साथ ही आर्थिक स्रोतों को भी अपना लक्ष्य बनाया गया।

खाड़ी युद्ध 1990-91 में लड़ा गया। 17 जनवरी 1990 को अमेरिकी नेतृत्व वाली बहुराष्ट्रीय सेनाओं के अति आधुनिक लड़ाकू विमानों के द्वारा बगदाद पर आक्रमण किया गया। यह विनाशकारी युद्ध 42 दिनों तक चला। इस युद्ध में स्कड, पेट्रियाट जैसे प्रक्षेपास्त्रों का उपयोग हुआ। बहुराष्ट्रीय सेनाओं ने लाखों हवाई उड़ानें भरी तथा लार टन विस्फोटक पदार्थों का उपयोग किया गया। इससे लाख की संख्या में सैनिक मारे गए होंगे। हांलाकि उसका सुनिश्चित आँकड़ा प्राप्त नहीं हो पाया है।

संसार के इन विश्वप्रसिद्ध युद्धों के अलावा भी बोस्निया-हरजोगॉविनीया का रक्तरंजित पृष्ठ, रूस का चेचन्या पर धावा, नाटो का यूगोस्लाविया के ऊपर आक्रमण आदि घटनाएँ भी हो चुकी है। पाकिस्तान की बदनिय कारगिल के रूप में फिर एक बार सामने आई। फिर उसे मार भगाया गया। आज भी समस्त विश्व युद्ध रूपों ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा है, जहाँ एक चिंगारी विनाश के लिए पर्याप्त है।

युद्ध जितना विनाशकारी होता है, उसका परिणाम और भी घातक एवं भयावह होता है। युद्ध केवल विध्वंस होता है। आज विश्व को युद्ध नहीं शांति चाहिए। सृजनशीलता का प्रतीक है। शांति में ही सुख, समृद्धि विकास की संभावनाएँ सन्निहित हैं। यह बात समझी जा सके, तो 21 वीं सदी विश्व में शांति और सृजन का बन सकती हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118