एक मनुष्य किसी गाँव को जा रहा था। धूप-प्यास का मारा वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने को लेट गया। पेड़ की ठंडी छाया में उसका मन बड़ा प्रसन्न हुआ। वह कल्पना करने लगा, “काश! यहाँ पीने के लिए पानी होता।” इतने में हो उसने देखा कि एक ठंडा पानी का झरना फूट पड़ा। उसने पानी पिया, प्यास बुझाई। फिर उसने सोचा, कुछ खाने को होता तो कैसा रहता। इतने में ही एक स्वादिष्ट पदार्थों से भरा हुआ थाल आ गया। उसने भोजन करके सोने के लिए-शैय्या की कल्पना की, तो एक पलंग वस्त्र बिछा हुआ दिखाई दिया। इन सब घटनाक्रमों से उसे भय हुआ कि कही यहाँ कोई मायावी राक्षस तो नहीं है। इतने में ही एक राक्षस सामने आ खड़ा हुआ। “यह मुझे खा न जाए” इस विचार के साथ ही वह राक्षस उस यात्री को खा गया। वस्तुतः वह वृक्ष कल्पवृक्ष था, जो मन की इच्छा के अनुसार फल देता था। मनुष्य का चिंतन एवं मनोबल एक प्रकार से कल्पवृक्ष ही है। उसका सदुपयोग करने वाला जीवनलक्ष्य की प्राप्ति का अभीष्ट उद्देश्य पूर्ण कर सकता है।