भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के अंतिम समय में शिष्यों से कहा, “हे भिक्षुओं, जब तक तुम संयमी रहोगे, मित्र भाव रखोगे, मिल बाँटकर खाओगे, सत्य और धर्म पर दृढ़ रहोगे, तब तक असीम विपत्तियाँ आने पर भी तुम्हारी पराजय नहीं होगी।
संगठन व सहकारिता, भक्ति भावना की दो ऐसी परिणतियाँ है, जो हर स्थिति में मनुष्य को धन्य बनाती है
एक बार कई पक्षी एक बहेलिये के जाल में फँस गए। पक्षियों ने सलाह की और एक साथ जाल लेकर उड़ गए। व्याध भी उनके पीछे दौड़ा। किसी साधु ने पूछा, “ भाई अब इनके पीछे दौड़ने से क्या लाभ?” व्याध बोला, “महाराज जब तक ये पक्षी एक विचार और संगठन में हैं, तभी तक जाल का बोझ उठा सकेंगे।” ऐसा ही हुआ। थोड़ी ही देर में ‘कहाँ उतरें?” के प्रश्न पर उनमें विवाद हो गया। किसी किसी ने ढील दे दी और परिणाम यह हुआ कि वे जाल समेत नीचे गिरे और मारे गए।
एक व्यक्ति आया, बोला, महाराज! आमदनी कम है, बच्चे भूखों मरते हैं। संत ने पूछा, बाल बच्चे क्या काम करते है? आगंतुक अकड़कर बोला, क्या वे किसी के नौकर हैं, जो काम करें। संत ने कहा, भाई घर का बोझ उठाने के लिए अपनी -अपनी स्थिति के अनुसार सभी को कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए। अकेले काम कैसे चलेगा? आदमी संतुष्ट होकर चला गया। कुछ दिन में फिर आया। इस बार काफी भेंट आदि भी लाया था। संत के चरणों में रखकर बोला, महाराज अब एक बच्चा जानवर चराता है, दूसरा खेती करता स्त्री भी हाथ बाँटती है। किसी तरह की कमी नहीं है। संत बोले - जिस घर के सब लोग हिल मिलकर परिश्रम करते हैं, उन्हें कभी भी तंगी नहीं आती।