परिशोधन का अर्थ है, मन की पवित्रता तथा अंतःकरण को दुर्भावनाओं से रहित करना। इसी लक्ष्य के लिए विविध साधनात्मक स्थूल उपचार किए जाते हैं। भीतरी पवित्रता का उद्देश्य यदि पूरा न हुआ तो बाह्य कर्मकांडों का कुछ विशेष लाभ नहीं मिल पाता।