शक्ति का सदुपयोग (kavita)

May 2001

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बिखरावों से दूर रहें हम यूँ सच्चे साधक बन जाएँ। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

केवल साधक ही जीवन में तप बल का संचय कर पाते, साधक ही अपनी क्षमताएँ सीमित से अक्षय कर पाते,

अर्जित शक्ति और क्षमता का जनहित में सुनियोजन कर लें, यूँ हम महाकाल के अनुदानों से अपनी झोली भर लें,

हम विभीषिकाओं में रहकर भी दैवी संरक्षण पाएँ। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

जो भी मंत्र हमें आता हो मिल-जुलकर उसका जप कर लें अपने हित सर्वदा किया श्रम अब औरों के हित तप कर लें,

सब पाएं सद्बुद्धि यही जप में हमने कामना करी हो, जन-जन के उज्ज्वल भविष्य की ही मन में भावना भरी हो,

संयम सेवा स्वाध्याय के निज जीवन का अंग बनाएँ। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

सामूहिक प्रार्थना इबारत से प्रभु कृपा सहज मिल जाती, ज्यों सावनी फुहारों में उपवन की कली-कली खिज जाती,

सामूहिक साधना विश्व-संकट का समाधान है भारी, विघ्नों में भी विजयी होगी इससे ही मानवता सारी

समय और सामर्थ्य जरा भी आज प्रदर्शन में न गंवाए। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

युग-परिवर्तन की वेला में मूल्य समय का हम पहचानें, जाग्रत रहकर महाकाल के सकता को समझ जान,

हर वसंत से पहले पीले पत्तों को झरना पड़ता है, वर्षा से पहले अंबर को मेघों से घिरना पड़ता है,

इसीलिए हम अवरोधों को देख न बिलकुल भी घबराएँ। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

समय धूप का है, पगडंडी बहुत सँकरी है राहों की है न समझदारी ऐसे में इच्छा सुविधाओं छाहों की

एक साथ चलकर ही केवल हमें सफलता मिल पाएगी कुछ पल का ही कोलाहल है फिर सुख-शांति यहाँ छाएगी

ऐसों में जो दिखे अलग-सा हम उसको फिर से समझाएँ। क्षमताओं का संचय करके जन-मंगल के लिए लगाएँ।

-शचीन्द्र भटनागर

*समाप्त*


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