ऋषि प्रणीत सिद्धाँतों का वैज्ञानिक रूप - होलोग्राफी

May 2001

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सृजेता ने अपनी सृष्टि को बड़ा ही अद्भुत और आश्चर्यजनक बनाया है। इसका हरेक कण रहस्यों का पिटारा है। प्रत्येक कण में ब्रह्मांड की झलक-झाँकी देखी जा सकती है। इसलिए तो ऋषियों ने पिंड में ब्रह्माँड का सिद्धाँत प्रतिपादित किया है। जो अणु में है वह ब्रह्माँड में है और जो ब्रह्मांड में हैं, उसकी समस्त संरचना अणु के सूक्ष्म आकार में सिमटी हुई है। आज इस तथ्य को विज्ञान होलोग्राफी के नाम से प्रतिपादित करता है। अर्थात् किसी भी पदार्थ या वस्तु के एक छोटे से भाग का यदि होलोग्राफी चित्र लिया जाए, तो उस सूक्ष्म भाग में पदार्थ या वस्तु के संपूर्ण भाग को रेखाँकित किया जा सकता है। अब तो होलोग्राफ के आधुनिक अनुसंधानों ने ब्रेन होलोग्राम, काँस्मास होलोग्राम आदि का आविष्कार कर लिया है।

होलोग्राम एक ऐसी फिल्म है, जो किसी वस्तु या पदार्थ के सूक्ष्मतम भाग से उस वस्तु का संपूर्ण प्रतिबिंब उतार लेता है। होलोग्राम ग्रीक शब्द है। होलो (॥शद्यश) संपूर्ण तथा ग्राम (त्रह्ड्डद्व) अंकन अर्थात् संपूर्णता का अंकन। इससे स्पष्ट होता है कि वस्तु के एक छोटे से भाग में उसकी समस्त संरचना सन्निहित होती है। होलोग्राम के लिए लेजर किरणों का उपयोग किया जाता है। जब लेजर बीम को बिट स्प्लीटर में फेंका जाता है, तो यह दो भागों में बँट जाती है। लेजर का एक भाग वस्तु का चित्र खींचता है एवं दूसरी किरण परावर्तित किरण से टकराकर उस वस्तु का संपूर्ण चित्र बनाती है। यही होलोग्राम है।

कार्ल प्रिबम के अनुसार होलोग्राम त्रिआयामी चित्र होता है। यह ठोस, वास्तविक एवं पारदर्शी होता है। फोटोग्राफी एवं सिनेमेटोग्राफी में द्विआयामी चित्र होता है। जबकि होलोग्राफी (क्कड्डह्ड्डद्यद्यड्डफ् द्गद्धद्धद्गष्ह्ल) प्रदर्शित करता है। होलोग्राफी से वस्तु की वास्तविकता का पता चलता है। इससे अनंत आयामों एवं कोणों को परदे पर उतारा जा सकता है। डॉ. फिलीप आर वेस्टलैंड ने किसी वस्तु के वास्तविक एवं आभासी दो प्रतिबिंबों का वर्णन किया है। होलोग्राम में इन्हीं दो प्रतिबिंबों की पुनः संरचना होती है। फोटोग्राफी फिल्म में जहाँ पर वास्तविक प्रतिबिंब दिखता है। उस स्थान पर उस वस्तु के प्रतिबिंब का प्रकाश पड़ता है। होलोग्राम में उस स्थान पर किसी प्रकार के प्रकाश स्त्रोत न होने के बावजूद जो प्रतिबिंब बनता है, उसे आभासी प्रतिबिंब कहते हैं। होलोग्राम में इन्हीं दो आभासी एवं वास्तविक प्रतिबिंबों का गुण होता है। इससे प्राप्त प्रतिबिंब सिनेमा की तरह परदे पर प्राप्त नहीं होता है, बल्कि यह स्पेस में निर्मित होता है।

सर्वप्रथम डेनिश गेबर ने सन 1947 में होलोग्राम पर एक सूत्र दिया था। इसके पश्चात 1957 में प्रिबम का सिद्धाँत आया। डेनिशस गेबर का सूत्र गणितीय ढंग से था, जो अठारहवीं शताब्दी के फ्रेंच गणितज्ञ बीजे फूरीयर द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इसके अनुसार कोई भी तरंग अपने वास्तविक प्रतिबिंब को दर्शा सकती है। जिस प्रकार टीवी कैमरा प्रतिबिंब को इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ्रीक्वेंसी में और टीवी सेट इसे पुनः वास्तविक प्रतिबिंब में बदल देता है, ठीक उसी प्रकार तरंग से प्रतिबिंब का परिवर्तन एवं पुनर्परिवर्तन संभव हैं इसे ही फुरीयर परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। गेबर ने इसी सिद्धाँत के तहत वस्तु के किसी एक भाग में उसकी संपूर्ण संरचना का होलोग्राम तैयार किया। प्रिबम ने 1967 के दशक में दृश्य इंद्रियों को आवृत्ति विश्लेषक मानते हुए मस्तिष्क को भी समाविष्ट किया।

उन्होंने इस तथ्य का अपने शोध ग्रंथ ‘ लेंग्वुएज ऑफ द ब्रेन’ में उल्लेख करते हुए कहा है कि होलोग्राफी की एक घनसेमी में तकरीबन दस अरब सूचनाओं (क्चद्बह्लह्य) का संग्रह किया जा सकता है। इसकी दो सबसे बड़ी विशेषताएँ हैं, प्रथम, होलोग्राफी चित्र होलोग्राम से दूर बनता है, दूसरी है इसकी आश्चर्यजनक संग्रहण क्षमता। विभिन्न प्रकार की आकृतियों के अनेकों चित्र एक ही प्लेट में अंकित हो सकते हैं। होलोग्राफी में किसी वस्तु के एक भाग को फोकस कर उसके संपूर्ण भाग का चित्र लिया जा सकता है। इस होलोग्राम के प्रत्येक बिंदु पर वस्तु की संपूर्ण जानकारी को क्रमबद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार होलोग्राम के प्रत्येक बिंदु में वस्तु की समग्रता का दिग्दर्शन होता है। इससे सिद्ध होता है कि पदार्थ के सूक्ष्मतम भाग में उसकी संपूर्ण संरचना सन्निहित होती है। यह सिद्धांत अणु में विभु एवं सूक्ष्म में विराट सत्य को प्रतिपादित करता है ।

प्रिबम ने मस्तिष्क को भी होलोग्राम माना है। मस्तिष्क में दो तरह के कार्य होते हैं, न्यूरोसाइकोलॉजिकल एवं न्यूरोफिजियोलॉजिकल। न्यूरोफिजियोलॉजिकल के तहत मानव शरीर में क्रिया प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इसकी वृत्ति पदार्थ की ओर उन्मुख होती है, न्यूरोसाइकोलॉजी में व्यक्ति न केवल जगत् की ओर देखता है, बल्कि अपने अंदर भी झाँकने का प्रयास करता है। यह अंतर्मुखी वृत्ति है। मारिश पोंटी ने कुछ सीमा तक इसे स्वीकार किया है। डॉ. कार्ल प्रिबम के अनुसार क्रिया प्रतिक्रिया मॉडल नर्वस सिस्टम के अंतर्गत आने वाली क्रियाओं एवं उसकी गतिविधियों का अंतर नहीं कर सकता। इस प्रकार संवेदक को व्यक्ति के व्यवहार में प्रयुक्त आँतरिक प्रतिनिधि के समान स्वीकार किया गया। इसके पूर्व होलोग्राफी सिद्धाँत को प्रायोगिक एवं अनुभव विज्ञान के रूप में लिया जाता था। यह मनुष्य की क्रिया प्रतिक्रिया का सिद्धांत माना जाता था, जिसके जन्मदाता माँरिश मेली पोंटी थें कार्ल प्रिबम ने इसके आगे अपना मत प्रस्तुत किया। इन्होंने इसके लिए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में किसी वस्तु के प्रतिक्षण परिवर्तन की ओर संकेत किया है।

महान वैज्ञानिक प्रिबम ने अपने प्रयोगों से यह प्रमाणित किया कि मस्तिष्क एक अद्भुत होलोग्राफ है। इस आश्चर्यजनक जादुई पिटारे के बारे में प्रतिष्ठित भौतिकविद् एवं गणिता जान वान न्यूमेन ने उल्लेख किया है कि मनुष्य का मस्तिष्क अपने जीवन काल में 2.8 ग 12 सूचनाओं का संग्रहण करता है। यह तो गणित की दृश्य गणना है। जबकि वास्तविकता इससे अनंत गुना अधिक सामर्थ्यशाली है। पीटर वान हीडैन ने आप्टीकल होलोग्राफी में संकेत दिया है कि एक वर्ग इंच की होलोग्राफी फिल्म में 5 बाइबिल समा सकती है। मस्तिष्क में होलोग्राफी मेमोरी को यदि अनावृत किया जाए, तो उसमें समाहित अनंत स्मृति ग्रंथों के पृष्ठों को अपने सामने रखे कंप्यूटर के परदे के समान स्पष्ट पढ़ा जा सकता है। यह स्मृति प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने वाले विशेषज्ञ जैसे संगीतकार, चित्रकार, इंजीनियर, पायलट, प्रोफेसर आदि सभी को इतना ही स्पष्ट एवं साफ संकेत प्रदान कर सकती है। मस्तिष्क में भरी स्मृति कार्य के संचालन के साथ ही अपनी संगृहीत सूचनाओं को सक्रिय कर उसे उद्देश्य विशेष के लिए भेजना प्रारंभ कर देती है। और उस क्षेत्र का विशेषज्ञ इस क्रियाविधि से अत्यंत मेधावी एवं दक्ष हो जाता है। यही मस्तिष्क का आँतरिक होलोग्राम कहलाता है।

प्रिबम के मस्तिष्कीय होलोग्राम के पश्चात डेविड बोहम ने संपूर्ण ब्रह्मांड को एक विराट होलोग्राम कहा। बोहम का यह सिद्धाँत ऋषियों के ‘पिंड में ब्रह्माँड’ मत की पुष्टि करता है। इसके अनुसार, एक सूक्ष्मतम परमाणु के परिकर में संपूर्ण ब्रह्मांड की झलक झाँकी देखी जा सकती है। आज का भौतिक वान क्वाँटा को सबसे सूक्ष्मतम कण के रूप में निरूपित करता है। ब्रह्मांड का निर्माण इन्हीं क्वाँटा कणों से माना जाता है। क्वाँटा क्वाँटम का बहुवचन है। एक इलेक्ट्रॉन को क्वाँटम कहते हैं तथा इलेक्ट्रॉन के समूह को क्वाँटा कहते हैं।

बोहम के अनुसार प्लाज्मा एक ऐसी गैसीय अवस्था है, जिसमें उच्च घनत्व के इलेक्ट्रॉन तथा धनात्मक आयन होते हैं, यहाँ परमाणु धनात्मक विभव प्रदर्शित करता है। इस स्थिति में इलेक्ट्रॉन संपूर्ण प्लाज्मा के सूक्ष्मतम प्रतिनिधि के समान व्यवहार करता है। बोहम ने अपने एक विशेष प्रयोग द्वारा प्लाज्मा में इलेक्ट्रॉन की इस इंटरफरेंसर (ढ्ढठ्ठह्लद्गह्द्धद्गह्द्गठ्ठष्द्गह्) प्रक्रिया को होलोग्राफी चित्र के रूप में प्रदर्शित किया है। बोहम ने सन् 1110 में अपने ‘होलनेस एंड द इंपलीकेट ऑर्डर’ नामक शोध ग्रंथ में इसे और भी स्पष्ट करते हुए लिखा है कि संपूर्ण ब्रह्माँड एक अद्भुत एवं आश्चर्यजनक होलोग्राम है।

उन्होंने जीवन एवं दैनंदिन घटनाओं को ही होलोग्राफिक बिंब के सदृश्य आभासी एवं काल्पनिक (इल्युजन) माना है। संसार का प्रत्येक कण जहाँ अपना अलग एक अस्तित्व रखता है वही सभी के बीच एक सामंजस्य एवं तारतम्य भी स्थापित करता है। यही होलोग्राफी फिल्म का निर्माण होता है। इसी के क्रमशः ढ्ढठ्ठद्धशद्यस्रद्गस्र शह्स्रद्गह् तथा ठ्ठद्धशद्यस्रद्गस्र शह्स्रद्गह् कहा जाता है। समस्त ब्रह्माँड इन्हीं दो क्रमों के बीच का परिणाम है। अतः एक इलेक्ट्रॉन मात्र कण ही नहीं वरन् समस्त ब्रह्माँड भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार वस्तुतः कोई भी कण विनष्ट नहीं होता, बल्कि वह अपने मूल अस्तित्व की ओर लौट जाता है, जहाँ से उसकी उत्पत्ति हुई थी। होलोग्राफी फिल्म भी इन्हीं दो क्रमों के बीच बनती है। क्वाँटम सिद्धाँत के अनुसार तरंग और कण के बीच के परिवर्तन को भी इसी प्रकार समझा जा सकता है। इस तरह वैज्ञानिकों ने ब्रह्माँड को होलोग्राम के बजाय ‘होलोमूवमेंट’ कहना ज्यादा सार्थक समझा है।

आधुनिकतम वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार प्रत्येक तरंग में ऊर्जा की अनंत मात्रा भरी होती है। भौतिकविदों के अनुसार आकाश के एक घन से. मी. पोले भाग में विद्यमान ऊर्जा ब्रह्माँड के समस्त कणों की समन्वित ऊर्जा से भी अधिक होती है। यह ऊर्जा एक ट्रीलियन परमाणु बम के बराबर मानी जा सकती है। वैज्ञानिकों ने इस गुप्त एवं अनंत ऊर्जा से ही ब्रह्माँडीय होलोग्राम का प्रमाण प्रतिपादित किया है। ऊर्जा के अनंत सागर में सर्वत्र एक समान सृष्टि नहीं है। परंतु ये सभी अनंत विभिन्नता एवं विषमता में बावजूद एक सूत्र में बँधे है, जो एक में अनेक एवं अनेक में एक का मत प्रस्तुत करते हैं। वैदिक ऋषियों ने भी सृष्टि का मूल चेतना को माना है। वैज्ञानिकों ने इसे तरंग एवं कण के तहत निरूपित किया है। अतएव जब चेतना का गुणधर्म एक है, तो अंततः उसका निर्मित परिणाम एवं गुणधर्म भी उससे अवश्य सामंजस्य रखेगा। हीलोग्राफी के मतानुसार भी यही प्रमाण प्राप्त होता है। इस प्रकार क्वासर से महान् वैज्ञानिक स्टीफन हाँकिंग के मस्तिष्क तक तथा डी एन. ए. से आकाशगंगा तक सभी के मूल में यही चेतना तत्व विद्यमान है। विज्ञान ने इसे ही होलोग्राफी के रूप में निरूपित किया है।

ब्लैक होल के आधुनिक सिद्धाँत के जनक रोजर पेनरोज, क्वाँटम थ्योरी के विशेषज्ञ बर्नाड डी. एस्पेरनेट दोनों ही बोहम के यूनीवर्स होलोग्राफी को स्वीकारते हैं। उनके अनुसार यह भविष्य में सृष्टि के अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने में सहायता प्रदान करेगा। सन् 1973 के नोबुल पुरस्कार विजेता केंब्रीज के ब्रायन जोसेप्सर ने बताया है कि यह सिद्धाँत आगामी समय में धर्म और विज्ञान का सही समन्वय प्रस्तुत कर सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में अँग्रेजी के महाकवि विलियम ब्लैक की दो पंक्तियाँ सही उतरती है कि बालू के कण में सृष्टि की झलक एवं जंगली गुलाब में स्वर्ग का अनुपम नजारा दिखता है।

सचमुच यह सुखद आश्चर्य है कि प्राचीन वैदिक ऋषियों के निष्कर्ष आधुनिक विज्ञान के शोध-निष्कर्ष बनते जा रहे है। होलोग्राफी भी ऋषियों के सूत्रों एवं सिद्धाँतों का एक वैज्ञानिक निरूपण है। जो यह स्पष्ट करता है पिंड में ब्रह्माँड की भाँति आत्मा व परमात्मा का भी अपूर्ण संयोग है। आत्मा परमात्मा का ही अविनाशी अंश है। अतः मनुष्य को सदा अपने इस गौरव का अहसास करते हुए अपने जीवन को उत्तरोत्तर दिव्य बनाते जाना चाहिए, ताकि हर पल उसमें परमात्मा की स्पष्ट झलक देखी जा सके।


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