इंग्लैंड के प्रधानमंत्रियों में चर्चिल का नाम आत्म विश्वास और सूझ बूझ के प्रतिनिधि के रूप में लिया जाता है। उन दिनों जर्मनी इंग्लैंड को हर दृष्टि से बरबाद करने पर तुला था। तत्कालीन प्रधानमंत्री चेंबर लेन हद दरजे तक झुक जाने पर भी हिटलर की दोस्ती प्राप्त न कर सके। तब साहसी और सूझ बूझ वाले व्यक्ति को सत्ता सौंपने की बात सामने आई। इस दृष्टि से चर्चिल को उपयुक्त पाया गया और उन्हें आग्रहपूर्वक सत्ता संभालने के लिए बुलाया गया। वे शारीरिक दृष्टि से वयोवृद्ध हो चुके थे, पर मनोबल में रत्तीभर भी कमी न हुई थी। उन्हें राजनैतिक दांव पेंचों का अनुभव था।
पहले युद्धों में भी उनका जौहर देखा जा चुका था। इस बार भी सत्ता हाथ में लेते ही उन्होंने जनता का पूरी तरह साथ दिया और संभावित विपत्तियों में किसे क्या करता है, इसे योजनाबद्ध रूप से समझाया। छाई हुई घबराहट को हिम्मत और संघर्ष की मनःस्थिति में बदल दिया। अपने साहस और व्यक्तित्व के बल पर वे अपने देश की आड़े समय में भारी सेवा कर सके।