नारद जी के परामर्श पर स्वायंभुव मनु अपनी दूसरी पुत्री देवहूति कर्दम ऋषि को अर्पित करने के लिए पहुँचे। कर्दम बोले, मेरी शर्त सुन लें। मुझे कामपत्नी नहीं, धर्मपत्नी चाहिए। दाँपत्य काम विकार के लिए नहीं, काम को मर्यादित करने के लिए होता है। मैं एक सत्पुत्र की प्राप्ति के बाद संन्यास धर्म का पालन करूंगा। आपकी पुत्री को यह स्वीकार हो तो ही संबंध होगा।
मनु जी ने कहा, बेटी, यह तो विवाह के पूर्व ही संन्यास की बात करने लगे, किंतु देवहुति भी कम न थी। बोली, कामाँध होकर संसार-सागर में डूबने के लिए गृहस्थाश्रम नहीं है। मैं भी कोई संयमी-जितेंद्रिय पति ही चाहती हूँ।
विवाह हो गया। दोनों के तपस्वी जीवन के प्रतिफल के रूप में कपिल जी उत्पन्न हुए, जो 24 अवतारों में से एक माने गए।