अपनों से अपनी बात-2 - आगामी वसंत से पूर्व वरिष्ठ नियोजकों के विशिष्ट प्रशिक्षण

August 2003

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गायत्री परिवार एक सुव्यवस्थित संगठन है, जिसका नेटवर्क सारे देश के अगणित देशों में फैला है। जो बीज एकाकी रूप में 1926 में अखंड दीप प्रज्वल ; वसंत पंचमी से आरंभ होकर इतना विराट वटवृक्ष बन गया, उसकी मूल धुरी है तप, कठोर तप, जीवन साधना एवं आत्मीयता का विस्तार।

शाँतिकुँज सप्तसरोवर क्षेत्र में बहने वाली वात धाराओं, नील गंगा से इतना जल इस अवधि में बहा है, उसने डडडडड से डडडडड के बीस वर्षों में सौ वर्ष का कार्य होते देखा है। वह आध्यात्मिक पुरुषार्थ जिसे इक्कीसवीं सदी में भारत के विश्व नेतृत्व सँभालने, उज्ज्वल भविष्य को लाकर दिखाने का कार्य करना था। वह कार्य पूज्यवर ने एवं परमवंदनीया माताजी ने अपने महाप्रयाण ; क्रमशः 2 जून डडडडड एवं 19 सितंबर डडडडड तक चलाया। एक इतिहास पुनः सौ साल बाद लिखा गया।

कलि की चाल भी बड़ी विलक्षण है। सब कुछ ठाकुर कर रहे हैं, गुरुदेव कर रहे हैं, फिर भी हमें अपने स्तर पर अपने व्यक्तित्व का परिमार्जन परिष्कार, जीवन-साधना में प्रगति का पुरुषार्थ तो स्वयं ही करना है, यह सामान्य ज्ञान तो सभी को है। पूज्यवर कहते रहे कि यह दैवी संकल्पना है, भगवान का मिशन है, स्रष्टा का निर्धारण है। कोई भी युगपरिवर्तन रोक नहीं सकता। तुम लोग काम न भी करो तो असंख्यों उच्चस्तरीय आत्माओं से मैं यह कार्य करा लूँगा, जो प्रतीक्षा सूची में पड़ी हैं, बुलावे का इंतजार कर रही हैं।

अब पूज्यवर के लौकिक लीला संदोह के सिमटने के 13 वर्ष बाद हम सभी को यह सोच-विचार करना चाहिए कि हमारी जीवन-साधना में, आत्मप्रशिक्षण में, कार्यकर्त्ता के रूप में तैयारी में कोई कमी तो नहीं रह गई। यदि है तो पहुँचें गायत्रीतीर्थ एवं पुनः उस कषाय-कल्मष को बुहारकर सक्रियता के साथ गति पकड़ लें। समय बहुत कम रह गया है। अब मात्र 8 से 9 वर्ष का समय बाकी है। नवरात्रि के नौ दिनों की तरह पूज्यवर की जन्मशताब्दी ; डडडडड-डडडडड से पूर्व की अवधि का यह पहला दिन ; पहला वर्ष चल रहा है। यदि हम एक दिन को एक वर्ष मानें। इस अवधि में ढेरों प्रशिक्षक, सक्रिय सहयोगी, समीक्षक, नेतृत्व सँभालने वाले जोनल प्रभारी हमें तैयार कर उन्हें आँदोलन की बागडोर सँभला देनी है। सातों आँदोलन सारे राष्ट्र में एवं सप्तसूत्री कार्यक्रम विदेश में गतिशील हो गए तो डडडडड-डडडडड के बाद का समय अद्भुत-अति विलक्षण-भारतीय संस्कृति के, हिंदुत्व के जागरण का समय होगा। उन सबका श्रेय गायत्री परिवार एवं उसके साथ-साथ इस दिशा में कार्य कर रहें ढेर सारे संगठनों को जाएगा।

शाँतिकुँज-गायत्रीतीर्थ में इस वर्ष के अगस्त-सितंबर एवं नवंबर 23 से बीस जनवरी 24 तक की एक नई रणनीति नौ दिवसीय संगठनात्मक रिफ्रेशर सत्रों की बनाई गई है। क्ष़ेत्रडडडडड में ढेरों ऐसे परिजन हैं जिनमें अनंत सामर्थ्य मौजूद है, प्रतिभाशील हैं एवं प्रचार, प्रशिक्षण, प्रबुद्धों की समस्याएं सुलझाने, युवाशक्ति को मार्गदर्शन देने जैसे कार्य करने की शक्ति उनमें है। कभी-कभी वे संकोच की स्थिति में रहते हैं। हम इतने वरिष्ठ पर समयाभाव के कारण केंद्र कैसे व कब पहुँचें। हमने एक समाधान निकाला है। ऐसे परिजन जो समर्थ हों, कोई भी प्रोजेक्ट लेने की सोचते हैं, परस्पर विचार-विमर्श कर अपनी एक सूची जोनल-सब जोनल स्तर पर बनाकर शाँतिकुँज के नौ दिवसीय सत्र में एक साथ स्वीकृति ले लें। एक जोन के ऐसी रुचि रखने वाले व्यक्ति भी साथ-साथ आ सकते हैं। प्रातः उठने से 12 बजे तक उनका अनुष्ठान साधनापरक रुटीन रहेगा, फिर उसके बाद रात्रि 1 बजे तक उनका सघन रिफ्रेशर प्रशिक्षण चलेगा। आठ दिन में इतनी काम की बातें हो जाएंगी, वे निश्चित ही स्पष्ट कार्ययोजना बनाकर जा सकेंगे। प्रवक्तागण-चिकित्सक-रचनात्मक कार्यों में रुचि रखने वाले अपने-अपने समूह बनाकर आ सकते हैं। यहाँ से जाने के बाद वे कार्यक्षेत्र में जाकर प्रशिक्षण दे सकेंगे। एक सहयोगी हम उन्हें देंगे। आपसी चर्चा करके समूह बनाकर आएं, न्यूनतम 40-45 का ग्रुप हो तो ही ऐसे कोर्स की सार्थकता है। अभी से परिजन परस्पर विचार-विमर्श कर जिस सत्र में आना हो, उसके लिए लिख भेजें। अनुमति मिलते ही सब आ जाएं। हम भी अनुमति पूरे समूह को सोच समझकर ही देंगे। अभी से ताना-बाना बुनें तो ही हम भावी वसंत तक के समय ही हम भावी वसंत तक के समय का सही उपयोग कर सकेंगे।


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