तीर्थसेवन का लाभ लें, जीवन साधनामय बनाएँ

August 2003

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तीर्थसेवन की शास्त्रों में बड़ी महिमा गाई गई है। सौभाग्यशाली ही होते हैं जो तीर्थ चेतना में स्नान कर पाते हैं। गायत्री तीर्थ शाँतिकुँज हरिद्वार एवं गायत्री तपोभूमि मथुरा आज के अपने समय के ऐसे दो तीर्थ हैं, जिनकी उपमा कल्पवृक्ष से दी जा सकती है। जहाँ, जिसकी छाँव में बैठने से मन की सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाएँ अथवा वे दिव्य कामनाओं में बदल जाएँ। परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं माता भगवती देवी के तपोमय पुरुषार्थ की एक बानगी है मथुरा की घीयामंडी में स्थापित अखण्ड ज्योति संस्थान, उनकी 1941 से 1971 की तीस वर्षीय अवधि की साक्षी पूजास्थली तथा 1953 से 1971 तक के उनके जीवंत कर्मयोग की साक्षी गायत्री तपोभूमि। मथुरा नगरी सप्तपुरियों में गिनी जाती है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है तथा आज भी लाखों तीर्थयात्री वहाँ आते व ब्रजक्षेत्र की परिक्रमा करते हैं, सभी धामों का दर्शन करते हैं।

1971 के बाद के दोनों ही महापुरुषों के जीवन के उत्तरार्द्ध एवं प्रचंड तप-पुरुषार्थ की बानगी देता है शाँतिकुँज गायत्रीतीर्थ, जो हरिद्वार नगरी के रेलवे स्टेशन से मात्र छह किलोमीटर दूरी पर ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर स्थित है, गंगा की सप्तधाराएँ, जिसके अति निकट से बहती हैं, पीछे हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान 1970 के रूप में विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की शोध करने वाली स्थापना एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय (22) हींडडडडडडड पर समीप ही आधे किलोमीटर की परिधि में स्थित है। प्रायः सवा सौ एकड़ में स्थापित यह पूरा विराट तंत्र परमपूज्य गुरुदेव की जाग्रत जीवंत काया के रूप में विराजमान है। प्रतिवर्ष यहाँ लाखों व्यक्ति आते व गायत्री चेतना से अखंड दीपक की ऊर्जा-आभा से लाभान्वित होकर जाते हैं।

मथुरा व हरिद्वार दोनों ही स्थानों पर नियमित सत्र चलते हैं। आज तो तीर्थाटन, पर्यटन मात्र होकर रह गया है, परंतु पूज्यवर ने इसे सही अर्थों में तीर्थसेवन-कल्पवास की उपमा दी। एक विधिवत प्रशिक्षण तंत्र खड़ा करके। हरिद्वार के शांतिकुंज में वर्षभर नियमित सत्र चलते हैं। इनमें पूर्वानुमति लेकर कोई भी भागीदारी कर सकता है एवं अपना जीवन धन्य बना सकता है। यहाँ भी अभी हम परिजनों-पाठकों-जिज्ञासुओं की सुविधा के लिए शांतिकुंज हरिद्वार की सत्र शृंखला का संक्षिप्त परिचय दे रहे है। विस्तार से पत्र लिखकर इसकी मार्गदर्शिका नियमावली मँगाई जा सकती है। यहाँ मुख्यतः दो प्रकार के सत्र चलते है-साधना प्रधान, प्रशिक्षण प्रधान। साधना प्रधान सत्रों में दो प्रकार के सत्र चल रहे है।

(1) नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्र- ये सत्र प्रतिमाह 1 से 9, 11 से 19 एवं 21 से 29 तारीखों में अनवरत चलते हैं। चौबीस हजार गायत्री मंत्र का अनुष्ठान इस अवधि में संपन्न हो जाता है। प्रातः ब्राह्ममुहूर्त (ठंड के दिनों में 4 बजे एवं गरमी में 3.30 बजे) में यहाँ की दिनचर्या आरंभ हो जाती है। प्रातः सायं प्रार्थना-आरती, योग साधना, ध्यान-त्रिकाल संध्या के अलावा दिन में तीन बार प्रवचन-उद्बोधनों से मार्गदर्शन-जीवनसाधना, जीवन जीने की कला के विषयों में दिया जाता है। एक दिन पूर्व आकर संध्या को संकल्प लिया जाता है एवं 9वें दिन विदाई हो जाती है। प्रस्तावित सत्र की तिथि से न्यूनतम दो माह पूर्व आवेदन करना होता है।

(2) अंतःऊर्जा जागरण साधना सत्र- ये पाँच दिवसीय मौन साधना सत्र आश्विन नवरात्रि के समापन से चैत्र नवरात्रि के पूर्व तक प्रतिमाह 1 से 5, 6 से 10, 11 से 15, 16 से 20, 21 से 25 एवं 26 से 30 की तारीखों में चलते हैं। इस वर्ष से सत्र छह अक्टूबर, 23 से आरंभ होकर 2 मार्च, 24 तक चलेंगे। वसंत पंचमी (26 जनवरी, 24) की अवधि वाला सत्र प्रभावित होता है, अतः एक या दो सत्र स्थापित करने होते है। इन सत्रों में भागीदारी हेतु छह माह पूर्व लिखना होता है। इन सत्रों में भागीदारी हेतु छह माह पूर्व लिखना होता है। चूँकि ये पूर्णतः मौन साधना सत्र है, इनमें उन्हीं को स्वीकृति दी जाती है जो पहले − दिवसीय, एकमासीय सत्र कर चुके हों एवं गायत्री परिवार की महत्त्वपूर्ण योजना में भागीदारी कर रहे हों। फार्म भरकर व पासपोर्ट साइज का चित्र भेजने पर ही मात्र साठ व्यक्तियों को एक सत्र में अनुमति दी जाती है।

प्रशिक्षण सत्रों के अंतर्गत कई प्रकार के सत्र है- एकमासीय युगशिल्पी सत्र, परिव्राजक सत्र, नौ दिवसीय रचनात्मक (ग्रामतीर्थ योजना, जलागाम प्रबंध, गो-उत्कर्ष) सत्र, पाँच दिवसीय व्यक्तित्व परिष्कार सत्र, नैतिक प्रशिक्षण सत्र तथा छह दिवसीय आर. सी. एच. स्वस्थ प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (आर. सी. एच.) के सत्र भी नियमित चलते हैं। विश्वविद्यालय के अंतर्गत कार्यशालाएँ, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा संगोष्ठियाँ व क्षेत्र के कार्यकर्त्ताओं के संगठन सत्र भी नियमित चलते है। उनके विषय में विस्तार से आगामी अंक में।


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