एक व्यक्ति को कुछ रुपयों की जरूरत थी। साहूकार ने कहा, “तुम संत एकनाथ को क्रुद्ध करके दिखा दो, तो माँगी हुई राशि तुम्हें पुरस्कार रूप में मिल जाएगी।” वह उद्दण्ड संत के पास जा पहुँचा। वे भोजन कर रहे थे। उनकी गोदी में जा चढ़ा। संत ने उसे बाल भगवान समझा और सिर पर हाथ फेरते हुए अपने साथ उसे भी भोजन कराने लगे। यहाँ वह बाजी हार गया तो उसने दूसरी चाल चली। एकनाथ की पत्नी की पीठ पर उनका कंधा पकड़कर लटक गया। धर्मपत्नी ने पीछे को हाथ करके, उसे संभलकर पकड़ लिया और कहा, “मेरा बच्चा भी तो इसी तरह खेलता है। उसे हाथ का सहारा देकर पकड़े रहती हूँ तो तुम्हें उसी तरह क्यों न सँभालूँगी, अपरिचित हो तो क्या?” दोनों चालें बेकार हो जाने पर वह वापस लौटा। कारण मालूम होने पर संत उसके साथ प्रेमवार्ता करते हुए साहूकार के घर तक चले गए और वहाँ पहुँचकर क्रोध का अभिनय करने लगे। शर्त जीतने पर जब रुपये मिल गए तो वे हंसते हुए घर वापस लौट गए।