एक राजा किसी संत के सामने अपनी शेखी बघार रहा था और कह रहा था, राज्यभर का पालन-पोषण करने की मैंने सुँदर व्यवस्था बना रखी है। संत ने उलटकर पूछा, अपने राज्य के पशु-पक्षी, मनुष्यों में सुखी-दुखी, स्वस्थ-रुग्णों की गणना करके बताओ। राजा सकपका गया। संत ने कहा, जब तुम्हें राज्य क्षेत्र में रहने वाले वर्गों की गणना तक नहीं मालूम, तब उनका उपयुक्त प्रबंध कैसे करते होंगे। राजा का गर्व गल गया और वह भगवान द्वारा विश्व-व्यवस्था चलने की बात कहने लगा।
जेन एडम्स के पिता सिनेटर और मिल मालिक थे। एकमात्र पुत्री के लिए उनने यह अपार संपदा सँजोकर रखी थी, पर उनने वह समय श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन में लगाया और पिता के मरते ही सारी संपत्ति बेचकर अमेरिका में एक डल हाउस ‘मानव सेवा-संस्थान’ बनाया। यों सस्ता भोजन, सस्ता निवास उसका प्रत्यक्ष कार्यक्रम था। पर इस बहाने जो हजारों व्यक्ति वहाँ आते, उन्हें लोकोपयोगी जीवन जीने की प्रेरणा मिलती। कार्य की महत्ता देखते हुए उनके लाखों सहयोगी बन गए।
उन्होंने महिलाओं, बच्चों, विकलांगों, रोगियों की सेवा-सहायता के लिए अनेकों संस्थाएँ चलाई। अंतर्राष्ट्रीय महिला लीग भी उन्हीं की स्थापना है। नोबुल पुरस्कार उन्हें मिला। वह राशि उन्होंने लीग को ही दान कर दी। एडमस आजीवन ब्रह्मचारिणी रहीं। उन्हें करुणा की मूर्ति, देहधारी देवी माना जाता था।