भावनाओं को अभिव्यक्त करती देहभाषा

August 2003

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बॉडी लैंग्वेज अर्थात् देहभाषा आन्तरिक भाव-विचारों की, देह के हावभाव एवं भाव-भंगिमाओं के रूप में अभिव्यक्ति है। गहरी भावना एवं सजल-संवेदना को प्रकट करने के लिए प्रायः शब्द एवं वाणी मूक एवं अक्षम प्रतीत होते हैं। वैसे में अशाब्दिक सम्प्रेषण का प्रयोग किया जाता है। नवजात शिशु के साथ मातृत्व की वाणी अशाब्दिक होती है। शिशु के हावभाव से ही उसका परिचय होता है। प्रेमभावना की पुलकन शब्दों से नहीं अशाब्दिक सम्प्रेषण से ही अभिव्यक्त होती है। जिसे कहने में शब्द असमर्थ होते हैं, उसे देह भाषा पल भर में समझा देती है। इसके द्वारा व्यक्ति की वृत्ति एवं आचरण का भी सहज रूप से आकलन किया जा सकता है।

बॉडी लैंग्वेज इक्कीसवीं सदी की अनुपम खोज है। हालाँकि इसकी व्याख्या और समझ अत्यन्त पुरातन है। मानवीय विकास के साथ ही देहभाषा का प्रादुर्भाव हुआ परन्तु इसका विधिवत् अध्ययन-अन्वेषण सन् 1960 के दशक से ही आरम्भ हुआ। इसका प्रथम परिचय सन् 1970 में जूलियस फास्ट की देहभाषा पर प्रकाशित एक पुस्तक से हुआ। यह अध्ययन व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों द्वारा अशाब्दिक संप्रेषण का आरम्भ था। परन्तु जहाँ तक देहभाषा की सूक्ष्म तकनीक का विषय है, बीसवीं सदी के पूर्व सन् 1872 की सबसे प्रभावी व प्रसिद्ध पुस्तक, चार्ल्स डार्विन कृत ‘द एक्सप्रेस ऑफ द इमोशन्स इन मैन एण्ड एनिमल्स’ में उल्लेख मिलता है। इसमें मुखमुद्रा की भावाभिव्यक्तियों और देहभाषा के आधुनिक अध्ययनों के बीज समाहित हैं। इस क्षेत्र के आधुनिक शोधकर्त्ताओं के लिए यह पथ-प्रदर्शक के समान है।

बॉडी लैंग्वेज के अन्वेषणकर्त्ताओं ने अब तक दस लाख अशाब्दिक संकेतों और लक्षणों की पहचान की है। अल्बर्ट मेहरेबियन ने अपने अध्ययन में स्पष्ट किया है कि किसी संदेश का प्रभाव केवल 7 प्रतिशत शाब्दिक होता है, जबकि वाणी का प्रभाव 38 प्रतिशत होता है। 55 प्रतिशत प्रभाव अशाब्दिक होता है। प्रोफेसर वर्ड व्हिसल ने भी इसकी पुष्टि की है। उनके प्रायोगिक निष्कर्ष से स्पष्ट होता है कि एक व्यक्ति एक दिन में शब्दों के माध्यम से लगभग दस से ग्यारह मिनट तक ही बोलता है। मेहरेवियन के समान इनकी भी मान्यता है कि वार्तालाप में शाब्दिक पहलू 35 प्रतिशत से भी कम होता है और सम्प्रेषण का 65 प्रतिशत से भी ज्यादा भाग अशाब्दिक होता है।

अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार शाब्दिक माध्यम का प्रयोग सामान्यतः सूचना सम्प्रेषित करने के लिए किया जाता है, जबकि अशाब्दिक माध्यम का प्रयोग व्यक्तिगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। कई अवसरों पर तो इसे शाब्दिक संदेशों के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। मुस्कराहट के माध्यम से अनकही बातों को कह दिया जाता है, समझा दिया जाता है। आन्तरिक भावावेगों को बताने के लिए शब्द की कम ही आवश्यकता पड़ती है। इस संदर्भ में महिलाएँ पुरुषों से अधिक अनुभूतिसक्षम होती हैं। उनमें अन्तर्बोध क्षमता भी अधिक होती है। महिलाएँ देहभाषा के क्षेत्र में दक्ष एवं प्रवीण होती हैं। यह अन्तर्बोध उन महिलाओं में अद्भुत होता है जिन्होंने शिशुओं की परवरिश की होती है। प्रारम्भ के कुछ वर्षों में उन्हें बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए अशाब्दिक माध्यम पर ही पूर्णरूपेण निर्भर रहना पड़ता है। सम्भवतः इन्हीं कारणों से महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं।

देहभाषा जन्मजात, आनुवाँशिक है या अर्जित है यह अनुसंधान का विषय है। इसमें काफी मतान्तर दृष्टिगोचर होते हैं। एक प्रयोग में पाया गया है कि दृष्टिहीन और बधिर व्यक्ति अशाब्दिक संकेतों को ध्वनि या दृष्टि के माध्यम से सीखने में असमर्थ होते हैं। जर्मन भाषाविज्ञानी एब्ल-एवेस्फेल्ट इसे जन्मजात मानते हुए कहते हैं कि बहरे एवं अन्धे बच्चों में मुस्कराहट देखी जा सकती है, जबकि वे इसे कभी देख एवं सीख नहीं पाते। प्राइमेट शिशुओं में चूमने की तात्कालिक क्षमता जन्मजात होती है। एकमेन, फेसन और सोरेन्सन ने जन्मजात मुद्राओं के बारे में डार्विन के कुछ सिद्धान्तों एवं सूत्रों का समर्थन एवं स्वीकार किया है।

मूलभूत सम्प्रेषण विश्व भर में अधिकतर एक सा होता है। खुशी एवं आनन्द की अभिव्यक्ति मुस्कराहट के रूप में होती है। दुःखी व क्रोध की अवस्था में भृकुटियाँ चढ़ जाती हैं, नाक फूल जाती है। सर्वत्र सिर को ऊपर से नीचे की ओर हिलाने का तात्पर्य ‘हाँ’ एवं सकारात्मक होता है। ठीक इसी प्रकार लगभग प्रत्येक संस्कृति में सिर को एक ओर से दूसरी ओर हिलाने का अर्थ ‘नहीं’ एवं नकारात्मक होता है। अधिकतर पुरुष कोट, शर्ट या कुर्ता पहनते समय पहले अपने दायाँ हाथ अन्दर डालते हैं, जबकि ज्यादातर महिलाएँ अपना बायाँ हाथ का प्रयोग करती हैं। कंधा झटकने का मतलब है कि समझायी जा रही बात समझ में नहीं आ रही है।

शाब्दिक भाषा अलग-अलग संस्कृति-सभ्यताओं में भिन्न-भिन्न होती है। इसी तरह अशाब्दिक भाषा के संदर्भ में भी भिन्नता देखी जाती है। सामान्यतः तीन सामान्य हस्त मुद्राओं, अंगूठी मुद्रा, अंगूठा दिखाना और ‘V’ (वी) संकेत के साँस्कृतिक अर्थों में अन्तर होता है। अंगूठी या ‘OK’ मुद्रा उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में अमेरिका में लोकप्रिय हुई थी। ह्रय़डडडड का अर्थ सभी अंग्रेजी भाषी देशों में एक समान है। हालाँकि इसका अर्थ यूरोप और एशिया में तेजी के साथ प्रचलित हो गया है। परन्तु कुछ विशिष्ट स्थानों पर इसके अर्थों में विभिन्नता पायी गयी है। फ्राँस में इसका अर्थ ‘शून्य’ या ‘कुछ नहीं’ है। जापानवासी इसका आशय ‘धन’ से करते हैं। कुछ भूमध्यसागरीय देशों में यह एक छेद का संकेत है।

ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में अंगूठे की मुद्रा का आशय सामान्यतः सहयोग (लिफ्ट) लेने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब अंगूठे को कोण से ऊपर की ओर झटका दिया जाता है तो यह एक अपमान का संकेत बन जाता है। ग्रीस में इसका मुख्य अर्थ है ‘ठूँस लो’। इटलीवासी एक से पाँच तक गिनते हैं तो वे इस संकेत का प्रयोग ‘एक’ के अर्थ में करते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन व आस्ट्रेलिया में अंगूठा पाँच का प्रतिनिधित्व करता है। अंगूठे का प्रयोग दूसरी मुद्राओं के साथ शक्ति और श्रेष्ठता के संकेत के रूप में किया जाता है। ‘V’ का संकेत समूचे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड और ब्रिटेन में प्रसिद्ध है। इसका तात्पर्य होता है ‘आपके अन्दर’। दूसरे विश्वयुद्ध में इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने ‘V’ को विजय चिन्ह के रूप में लोकप्रिय बनाया था।

अन्य भाषा के समान देहभाषा में भी शब्द वाक्य और विराम चिन्ह होते हैं। हर मुद्रा एकाकी शब्द के सदृश्य होती है और उसके कई अर्थ होते हैं। मुद्राएँ ‘वाक्यों’ में भी प्रयोग होती हैं और व्यक्ति की आन्तरिक भावनाओं एवं दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं। आलोचना की मुख्य मुद्रा है चेहरे पर हाथ रखना, जिसमें तर्जनी गाल के ऊपर की ओर संकेत करती है और दूसरी उंगली मुँह को ढँक लेती है तथा अंगूठा ठुड्डी को सहारा देता है। भौंहों का उठना आश्चर्य की निशानी है। होठों को दांतों से काटने का मतलब, काफी परेशानी का होना है। होंठ से होंठ दबाना असमंजस का सूचक है। आँखें नीची कर मुस्कराना कृतज्ञता एवं सम्मान प्रकट करना है। नाक-भौं सिकोड़ने से यह समझा जा सकता है कि व्यक्ति थकावट अनुभव कर रहा है, या किसी चीज को पसन्द नहीं कर रहा है। बार-बार बाँहों को हिलाना डरने का द्योतक है। उंगलियों को बारम्बार चटकाने का आशय है अधीर होना। पैर पर पैर चढ़ाकर बैठने वाले व्यक्ति नेतृत्व क्षमता से सराबोर होते हैं।

देहभाषा भावनाओं की अभिव्यक्ति में सहायक होती है। अतः इसकी महत्ता एवं विशेषता भी अधिक होती है। गहरी साँत्वना एवं संवेदना व्यक्त करने के लिए शब्द छोटे पड़ जाते हैं। ऐसे में एक अपनत्व भरी मुस्कराहट एवं प्यार भरी छुअन से वह सब कुछ कह दिया जाता है जिसे कह पाने में शब्द नाकाफी होते हैं। इसलिए बॉडी लैंग्वेज के विशेषज्ञ जान कार्ले कहते हैं कि देहभाषा अभिव्यक्ति का सुन्दर व सरल-सहज तरीका है। एक संकेत या भाव हजार शब्दों से भी अधिक ताकतवर एवं भारी होता है। अतः आवश्यकता है भावों को अभिव्यक्त करने के लिए एक भावपूर्ण हृदय एवं प्रेमप्रवण दृष्टिकोण की। हृदय को उदार कर एवं मन को परिष्कृत करके देहभाषा के व्यावहारिक जगत् में प्रवीण हुआ जा सकता है।


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