आयुर्वेद-6 - क्वाथ चिकित्सा द्वारा जटिल रोगों का सरल उपचार

August 2003

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क्वाथ या काढ़ा देखने-सुनने में अत्यंत साधारण एवं हल्का-फुल्का-सा योग प्रतीत होता है, किंतु परिणाम की दृष्टि से गहराई से देखने पर उसमें अनुभवी चिकित्सकों की अनुसंधानात्मक बुद्धि की विलक्षणता का परिचय मिलता है। काढ़ा बनाने में जिन घटक द्रव्यों का चुनाव किया गया है, वह रोग की जटिलता एवं रोगी की प्रकृति के अनुरूप चुने गए हैं। कई वर्षों के निरंतर प्रयोग-परीक्षण के उपराँत उन्हें अब जनसाधारण के सम्मुख उद्घाटित किया जा रहा है, ताकि इससे सभी लाभान्वित हो सकें। यहाँ दिए जा रहे सभी योग अनुभूत एवं परीक्षित हैं। पथ्य-परहेज के साथ इनका उपयोग करने पर बीमारियों से छुटकारा पाना सुनिश्चित है।

अखंड ज्योति के विगत अंकों में ‘क्वाथ-चिकित्सा द्वारा जीवन का कायाकल्प’ शीर्षक से ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के जो अनुसंधान-निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए हैं, उनमें क्वाथ निर्माण की विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की जा चुकी है। साथ ही नौ प्रकार के क्वाथ एवं उनकी निर्माण प्रक्रिया विस्तारपूर्वक बताई गई है। इनमें कालमेघ, सरस्वती पंचक, निर्गुंडी क्वाथ, कुटज क्वाथ, अशोक क्वाथ एवं काँचनार क्वाथ सम्मिलित है। यहाँ पर जिन क्वाथों का वर्णन किया जा रहा है, वे वस्तुतः रोग विशेष पर आधारित है। इस क्रम में उन रोगों या व्याधियों को प्रमुखता दी गई है, जो आज के वातावरण में सर्वव्यापी बन गई है और महामारी का रूप धारण करती जा रही है। अधिकाँश व्यक्ति इन रोगों के शिकार पाए जाते है।

यहाँ पर दो क्वाथों का उल्लेख किया जा रहा है-(1) वातरोग नाशक क्वाथ और (2) उच्च रक्तचाप नाशक क्वाथ।

(1) वातरोग नाशक क्वाथ-

इसमें निम्नलिखित औषधियाँ मिलाई जाती हैं-

(1) रास्ना पत्ती-2 ग्राम (2) वासा 5 ग्राम (3) एरण्डमूल 5 ग्राम (4) देवदार 5 ग्राम (5) नागरमोथा 5 ग्राम (6) पुनर्नवा मूल 5 ग्राम (7) गिलोय 5 ग्राम (8) शतावर 5 ग्राम (9) अमलतास का गूदा 5 ग्राम (10) अतीस 5 ग्राम (11) अश्वगंधा 5 ग्राम (12) गोक्षुर (छोटा) 5 ग्राम (13) विधारा 5 ग्राम (14) सौंफ 5 (15) पियाबाँसा (कटसरैया) 5 ग्राम (16) छोटी कटेलर 5 ग्राम (17) बड़ी कटेली 5 ग्राम (18) धनिया 5 ग्राम (19) छोटी पीपल 5 ग्राम (20) सोंठ 5 ग्राम (21) हरड़ 5 ग्राम (22) चव्य 5 ग्राम (23) बच 5 ग्राम (24) कचूर 5 ग्राम (25) बलामूल 5 ग्राम (26) धमासा 5 ग्राम (27) दशमूल 1 ग्राम (28) बृहत् बात चिंतामणि या योगेन्द्र रस-1 ग्राम (29) बृहत् शूतशेखर रस 1 ग्राम (30) मुक्तापिष्टी 2 ग्राम (31) प्रबाल पिष्टी 4 ग्राम।

वातरोग नाशक क्वाथ बनाने के लिए उपर्युक्त वनौषधियों को क्रमाँक (1) से क्रमाँक (28) तक उनकी निर्धारित मात्रा के अनुसार लेकर कूट-पीसकर उनका जौ-कुट पाउडर बना लेते हैं। उसमें से 5-6 चम्मच (30 ग्राम) पाउडर लेकर राम में स्टील के एक भगोने में आधा लीटर पानी में भिगो देते हैं और सुबह मंद आँच या सिमबर्नर पर उसे चढ़ा देते है। पकते-पकते चौथाई अंश रह जाने पर क्वाथ को चूल्हे से उतारकर ठंडा होने पर साफ-स्वच्छ कपड़े से छान लेते है। क्वाथ तैयार है। इसकी आधी मात्रा सुबह 8 से 10 बजे तक एवं आधी मात्रा शाम 4-5 बजे तक पी लेनी चाहिए।

क्वाथ पीने के साथ ही साथ क्रमाँक (28) से लेकर क्रमाँक (31) तक की चीजों को निर्धारित मात्रा में लेकर एक साथ खरल करके उनकी बराबर 15 पुड़िया बना लेते हैं और एक पुड़िया सुबह एवं एक पुड़िया शाम को शहद के साथ नित्य खिलाते रहते हैं। क्वाथ के साथ इसका सेवन करने से रोगी नित्य खिलाते रहते हैं। क्वाथ के साथ इसका सेवन करने से रोगी व्यक्ति को अधिक लाभ होता है। पुड़िया समाप्त होने पर उसी अनुपात में चारों चीजें लेकर दुबारा खरल करके पुड़िया बनाकर प्रयुक्त करनी चाहिए। प्रायः देख गया है कि साइटिका रोग एवं कटिशूल से पीड़ित व्यक्ति यदि काढ़ा पीने के साथ ही हरसिंगार (पारिजात) की 21 हरी पत्तियों की चटनी बनाकर नित्य लेते रहें तो कुछ ही दिनों में वे रोगमुक्त हो जाते है। कमर के निचले भाग में वात प्रकोप होने पर क्वाथ में कैस्टर ऑयल (एरंडतैल) मिलाकर पिलाना चाहिए अथवा जिन्हें क्वाथ के साथ यह रुचिकर न लगे, उन्हें सायटिका आदि में कैस्टर ऑयल 1 चम्मच से आरंभ कर 5 चम्मच तक बढ़ाकर तब तक देना चाहिए, जब तक कि दस्त न होने लगें। इसे रात को सोते समय गरम दूध या कुनकुने जल में मिलाकर देना चाहिए। पीने में यह सुविधाजनक रहता है।

यह क्वाथ सभी प्रकार के वात रोगों विशेषकर आमवात, वातज विकार, कफज विकार, पक्षाघात, मुँह का लकवा, साइटिका, जाँघों की पीड़ा, कटिशूल-कमर की जकड़न, पसली-छाती की वातज व आमवातज पीड़ा, सर्वाग कंप, अपबाहुक, अपतंत्रका, अस्थिपीड़ा, संधिवात, मज्जावात, मूत्रविकार एवं महिलाओं के रोग डिस्मेनोरिया अर्थात् अनार्तव या कष्टार्त्तव आदि में बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ है। वातरोग में आमप्रकोप एवं रक्त में विषवृद्धि भी कारण होते हैं, इसलिए इस क्वाथ में रास्ना के साथ सहायक रूप में दीपन, पाचन, आमशोषक, मूत्रक एवं कफघ्न औषधियाँ मिलाई जाती हैं। रोग की प्रकृति के अनुसार इस क्वाथ में अजमोदादि चूर्ण या सोंठ या पीपल का चूर्ण मिलाकर भी सेवन कराया जाता है।

(2) उच्चरक्तचाप नाशक क्वाथ-

हाई ब्लडप्रेशर अर्थात् उच्च रक्तचाप आज एक आम बीमारी है। खान-पान रहन-सहन, वातावरण सभी ने मिलकर आपाधापी भरे वर्तमान समय में प्रायः अधिकाँश व्यक्तियों को इस महामारी के आगोश में धकेल दिया है। यदि इस पर नियंत्रण न किया जाए तो व्यक्ति ब्रेनस्ट्रोक, हृदयाघात जैसी आकस्मिक प्राणहानि करने या जीवनभर इसका अभिशाप ढोने को विवश होता है। रोग नियंत्रक एलोपैथी दवाओं का निरंतर सेवन तात्कालिक राहत तो पहुँचाता है, किंतु कालाँतर में इसके दुष्प्रभाव भी नजर आने लगते हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद की ‘क्वाथ-चिकित्सा’ बहुत कारगर सिद्ध हुई है। इस संदर्भ में ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के चिकित्साविज्ञानियों ने जो सूत्र विकसित किए है, उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए वरदान सिद्ध हुए हैं। क्वाथ चिकित्सा ने आशातीत सत्परिणाम प्रस्तुत किए हैं-

उच्चरक्तचाप क्वाथ में निम्नलिखित चीजें मिलाई जाती हैं-

(1) ब्राह्म 100 ग्राम (2) शंखपुष्पी 100 ग्राम (3) जटामाँसी 200 ग्राम (4) विजया 200 ग्राम (5) काली जीरी 200 ग्राम (6) अजमोद 50 ग्राम (7) सर्पगंधा 200 ग्राम (8) काला नमक 50 ग्राम (9) अजवायन 50 ग्राम (10) आकपत्ता (अर्क या मदार) 5 ग्राम (11) अर्जुन 100 ग्राम (12) पुनर्नवा 100 ग्राम (13) सज्जीखार 25 ग्राम (14) मुक्तापिष्टी 1 ग्राम (15) प्रर्बाल पिष्टी 2 ग्राम (16) चाँदी भस्म 1 ग्राम (17) प्रबाल पिष्टी 2 ग्राम (18) शंख भस्म 2 ग्राम (19) नौसादर आधा ग्राम (20) कामदुधा रस 2 ग्राम।

उपयुक्त घटक द्रव्यों में से क्रमाँक (1) से क्रमाँक (13) तक उनको निर्धारित मात्रा में लेकर जौकुट पाउडर बनाकर एक सुरक्षित डिब्बे में रख लेते हैं और प्रतिदिन उसमें से 4-5 चम्मच पाउडर का क्वाथ आधा लीटर पानी में बनाकर रोगी व्यक्ति को पिलाते है। इसके साथ ही क्रमाँक (14) से क्रमाँक (20) तक की चीजों में से मुक्तापिष्टी 1 ग्राम, मुक्ताशक्ति 2 ग्राम, प्रर्बाल पिष्टी 2 ग्राम, भस्म 1 ग्राम, शंख भस्म 2 ग्राम, नौसादर आधा ग्राम एवं कामदुधा रस 2 ग्राम सबको एक साथ खरल करके उसकी बराबर मात्रा की 12 पुड़िया बना लेते हैं। यह मुख्यतः एसीडिटी रोकने की दवा है। अतः इसकी एक पुड़िया एकदम सुबह एवं एक गुड़िया तीन बजे शाम को जल के साथ लेनी चाहिए, क्योंकि प्रायः पेट में अम्लीयता का उफान उसी समय आता है। जल के साथ एक पुड़िया ले लेने से एसीडिटी का प्रकोप शाँत हो जाता है।

क्वाथ पीते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रातःकाल की खुराक भोजन करने के तीन घंटे ले एवं रात्रि में भोजन के दो घंटे भर बाद पुड़िया लें। रात्रि में केवल क्वाथ भर पीना है। उच्चरक्तचाप वालों को भोजनोपराँत ‘महाशंखवटी’ की दो गोलियाँ सुबह एवं शाम को जल के साथ लेते रहने से पाचन तंत्र भी ठीक रहता और पेट में बनने वाली गैस से भी छुटकारा मिलता है। हाई ब्लडप्रेशर के मरीज को शाम का भोजन सदैव आधा पेट ही लेना चाहिए, रात्रि में चावल बिलकुल ही नहीं खाना चाहिए।

कितने ही व्यक्तियों को काढ़ा बनाने व पीने में झंझट महसूस होता है अथवा उन्हें इतना अवकाश या अवसर नहीं मिलता कि यह सब खटपट कर सकें। ऐसी स्थिति में सबसे सरल व निरापद उपाय यह है कि उपर्युक्त सभी बीस द्रव्यों को अच्छी तरह घोट-पीसकर महीन कपड़े से कपड़छन कर बारीक चूर्ण कर लें। घृतकुमारी के गूदे का रस बनाकर इस पाउडर में मिलाकर आटे की तरह गूंथ लें। अच्छी प्रकार से गुँथ जाने पर 1-1 रत्ती की गोली बनाकर उसे सुखा लें। उच्चरक्तचाप नाशक गोली तैयारी है। इसकी एक गोली सुबह एवं एक गोली शाम को जल के साथ लें, भोजनोपराँत महाशंखवटी का सेवन यथावत चलता रहेगा। काढ़ा एवं पुड़िया नहीं लेनी पड़ेगी।

यहाँ इस बात का अवश्य ध्यान रखना होगा कि पुड़िया वाले घटक मिलाकर जो छह दिन की 12 खुराक बनाते हैं, वह समाप्त होती ही अगली खुराक दुबारा बनानी पड़ती है, किंतु गोली बनाते समय यह समस्या नहीं रहती। उसमें सभी घटक द्रव्य अनुपात क्रम में बनाते समय ही बढ़ा लिए जाते है।


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