सेवा में जुट गए (Kahani)

April 2002

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वासवदश्रा अपने समय की श्रावस्ती को अनिंद्य सुंदरी नगरवधू थी। सारा कुलीन समुदाय उसे पाने की भौंरे की तरह मँडराता। भिक्षु उपगुप्त उन दिनों महान तपस्वी ही नहीं सौंदर्य और सौष्ठव की प्रतिभूति भी थे, वासवदश्रा केवल उन्हें चाहती थी किंतु आत्मा के उपासक उपगुप्त पर उसका कुछ भी प्रभाव न पड़ा। जीवन के उत्तरकाल में वृद्धा वासवदश्रा बीमार हो गई। तब एक दिन उपगुप्त उधर पहुँचे। वासवदश्रा उन्हें देखकर बोली-तात! आप अब आए हैं, जब मेरे पास आपके लिए कुछ बचा नहीं।

आत्मज्ञानी उपगुप्त की आँखें उमड़ा पड़ी। उन्होंने अत्यन्त आदर और स्नेहपूर्वक वासवदश्रा से कहा- भद्र सौंदर्यता आत्मा की होती है और वह अविनाशी है। यह कहकर वे उसकी सेवा में जुट गए।


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