परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - भगवान के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं (2)

April 2002

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(गताँक से आगे)

यह अध्यात्म सही नहीं

मित्रों! अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आदमी के व्यक्तित्व और स्तर ऊंचा उठा देता है। जो अध्यात्म आदमी के व्यक्तित्व और उसके स्तर को नीचे गिराता हो, मैं उसे अध्यात्म नहीं मानता। उसके पीछे मैं बहुत नाराज हूँ। इसलिए हर क्षेत्र में हम बगावत पैदा करते है। हम जहाँ अनैतिकता के विरुद्ध बगावत पैदा करते हैं, वही हम इस नकली अध्यात्म के विरुद्ध भी बगावत पैदा करते है। फिर तो आप कम्युनिस्ट हैं? कम्युनिस्ट तो नहीं है बेटे, पर हम कम्युनिस्टों की आवाज में आवाज लगाकर कह सकते हैं कि यह अवाँछनीय अध्यात्म जो आज हर जगह फैल गया है, अगर यह नष्ट होता है, तो आपको दुःख है? नहीं, मुझे प्रसन्नता है। आपका ये अखंड कीर्तन बंद हो जाए तो आपको नाराजगी है? नहीं मुझे कोई नाराजगी नहीं है, मुझे बहुत प्रसन्नता है। ये कौन से मंदिर, भिन्न-भिन्न देवियों के मंदिर गिर पड़े तो आपको नाराजगी है? नहीं बेटे, मुझे बहुत खुशी है। मनसा देवी, जो आपकी इच्छाओं को बिना कीमत चुकाए देना चाहती हैं, केवल पंद्रह पैसे का प्रसाद खा लीजिए और हमारी मनसा पूरी कर दीजिए। बेटे हम आपकी ऐसी मनसा देवी से बहुत नाराज हैं।

क्या कहते हैं आप? बेटे! मैं यह कहता हूँ कि आप अनैतिक आचरण पैदा करती हैं। आप लोगों को भिखमंगा बनाती हैं और आप लोगों को दरिद्र बनाती है और लोगों को ऐसे गंदे आश्वासन देती है जो आपको नहीं देने चाहिए। जो आपको शोभा नहीं देते और लेने वालों को भी शोभा नहीं देते, दोनों को शोभा नहीं देते, क्योंकि इंसानियत के लिए जो बेसिक सिद्धाँत है, फंडामेंटल सिद्धाँत हैं, आप उनको गलाती हैं, इसलिए आप भाग जाइए।

मित्रों! क्या करना चाहिए? मैं यह कह रहा था कि आध्यात्मिकता के मौलिक आधारों प्रतिपादन होना चाहिए, ताकि उससे हम वास्तविक फायदे उठा सकें, जैसे कि हमारे पूर्वजों ने उठाए थे। हमारे पूर्वजों ने आध्यात्मिकता से हर क्षेत्र में शानदार फायदे उठाये थे। उनके व्यक्तित्व बहुत शानदार होते थे। मैं आपको एक बात बताता हूँ कि जिन चीजों को आप चाहते हैं, जिन सुविधाओं को आप चाहते हैं, जो संपदाएं आप चाहते हैं, वे अच्छे व्यक्तित्व के पीछे-पीछे चलती है। रोशनी के पीछे छाया चलती है। आप रोशनी की तरफ मुँह करके चलिए छाया आपके पीछे चलेगी और आप छाया के पीछे चलिए, छाया की तरफ मुँह करके भागिए तो रोशनी भी हाथ से चली जाएगी और छाया भी पकड़ में नहीं आएगी। आप अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाइए।

वास्तविक अध्यात्म फिर क्या है?

मित्रों! आध्यात्मिकता का उद्देश्य था, आदमी के व्यक्तित्व को ऊँचा उठा देना, चिंतन को सही कर देना, आदमी के दृष्टिकोण को परिष्कृत कर देना। अगर कोई आदमी यह कर सके तो तब? तब मैं कहूँगा कि जीवन में वास्तविक अध्यात्म आ गया। वास्तविक अध्यात्म को प्राप्त करने के बाद में आप वो चीजें पाएंगे जो आपको मिलनी चाहिए। माँगने पर भी मिलेंगी, बिना माँगे भी मिलेंगी। महापुरुषों के नाम सुने नहीं आपने? आप उन महापुरुषों की हिस्ट्री तलाश कीजिए जनता ने जिनको निहाल कर दिया है। माँगने पर? माँगने पर नहीं, बिना माँगे निहाल कर दिया। कल मैं गाँधी जी का हवाला दे रहा था, बुद्ध का हवाला दे रहा था। जनता की बात कहूँ, हा जनता की बात कहूँगा और भगवान की बात? भगवान की बात भी कहूँगा, हरेक की बात कहूँगा। मैं कहूँगा कि अगर आपका व्यक्तित्व और आपका अंतर्मन सच्चे में, वास्तव में पात्र है, तो आपको तीनों ओर से सहायता मिलेगी। क्यों साहब, एक ओर से कि तीनों ओर से? आप एक ओर से आपको सहायता मिलेगी और इतनी अधिक सहायता मिलेगी, जिसको पाकर के आप निहाल हो जाएंगे।

साथियों! आप क्या चाहते हैं? हम ये चाहते हैं कि देवताओं की सहायता मिले। ये तो नहीं चाहते कि हमारे पड़ोसी से हमें सहायता मिलें? नहीं ये नहीं चाहते वो क्या सहायता देगा। पड़ोसी से तो लड़ाई है हमारी, वो हमें सहायता नहीं देगा और किससे माँगेंगे? पिताजी से। नहीं पिताजी भी हमसे नाखुश हैं, वा नहीं देंगे। तो भाई से माँग लीजिए। नहीं भाई ने भी मना कर दिया। तो फिर अपने साले से माँग लीजिए, कहिए हम आपके बहनोई हैं। साले से भी एक बार हमने कहा था कि हम पैसे की तंगी में हैं, हमें दो हजार रुपये दे दीजिए। साले ने कहा कि हम नहीं दे सकते, हम आपसे भी ज्यादा तंगी में है। हमारे पास नहीं है। किसी ने नहीं दिया। कोई और बाकी रह गया है? नहीं और कोई नहीं। हमें सबने इंकार कर दिया। एक भी आदमी हमारी सहायता करने के लिए रजामंद नहीं है। अब तो एक ही बाकी रह गया है और उसका नाम है ‘देवता’। इसे हम ट्राई करते हैं।

ट्राई कैसे करते हैं, अनुष्ठान करते हैं। अहा.........ये अनुष्ठान से पकड़ में आएंगे। सच-सच बताना, इसी का नाम अनुष्ठान है ना-देवताओं से ट्राई करना? क्या ट्राई करना? हमारा ट्राँसफर करा दीजिए। हमने वहाँ कहा-स्युपरिन्टेंडेंट से। उसने क्या कहा? उसने कहा कि 5 रुपये दे दीजिए, तो हम आपका ट्राँसफर करा देंगे। आपने फिर कमिश्नर से भी कोशिश की होगी, पर ट्राँसफर नहीं हुआ। अब कौन बाकी रह गया है? एक ही आदमी बाकी रह गया है, देवता। देवता ट्राँसफर कराता है? हाँ साहब! देवता के हाथ में सब कुछ है। तो क्यों देवता जी आपके पास क्या ट्राँसफर कराने का कोई डिपार्टमेन्ट है? नहीं साहब! हमारे हाथ में नहीं है ट्राँसफर। आप क्या काम करते है? हम डीलिंग में नहीं जाते है। ट्राँसफर में हमारी डीलिंग नहीं है।

ये देवी-देवता हमें क्या देंगे?

मित्रों! आप देवताओं से भी वो काम कराना चाहते हैं, जो देवता बेचारे नहीं कर सकते, जो उनके काबू में नहीं है, उनके पास भी नहीं है। क्या काबू में नहीं है? हनुमान जी से आप चाहते है कि हमारा ब्याह-शादी हो जाए और हमारे लड़के के बाल-बच्चे हो जाएं। एक बार हनुमान जी से हमने पूछा कि क्यों साहब! ये आपका डिपार्टमेन्ट है कि जब किसी की ब्याह-शादी नहीं होती तो आप जाकर ब्याह-शादी कराते है। फिर हमने दूसरी बात पूछी कि किसी के बच्चा न हो तो उसको बच्चा पैदा कराने का महकमा भी आपके पास है। हनुमान जी ने जवाब दिया कि आचार्य जी! आपको तो समझ है, आप तो पढ़े-लिखें आदमी हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि जिन कामों में हमारा कोई दखल नहीं है, कोई वश नहीं, उन्हें भला हम किस तरीके से कर सकते है। अगर ब्याह-शादी करने लायक हमारे अंदर शऊर होता तो हमारा भी ब्याह हो गया होता। हमारा ब्याह किसी ने नहीं कराया। नाई भी आए, पंडित भी आए। उन्होंने कहा, क्यों साहब आप हमारी लड़की के साथ शादी कर लीजिए। नहीं हम ब्याह नहीं करते।

हनुमान जी ने कहा, ‘राम काज कीन्हे बिना मोहि कहाँ विश्राम।” रामकाज में लगा रहता हूँ। न कोई खेती-बेती है, न नौकरी है, न धंधा, न घर, न स्कूटर, कुछ भी नहीं है हमारे पास। अतः सब चले गए। एक ने भी ब्याह नहीं किया। गुरुजी! आपको तो मालूम ही है कि हमारा किसी ने ब्याह नहीं किया। हाँ हमको मालूम है कि आपका किसी ने ब्याह नहीं किया था। तो अब आप ही बताइए कि बिना ब्याह वालों की हम कैसे मदद कर सकते हैं? फिर हमने पूछा कि शादी-ब्याह नहीं हुआ तो बाल-बच्चों की ही मदद कीजिए, केंकिडडडडड ये कहता है कि हमारे तीन लड़कियाँ है, एक-दो लड़के और हो जाएं तो अच्छा है। आप उनकी कुछ सहायता कीजिए। हनुमान जी ने कहा कि ये हमारा काम नहीं है, आप हमें बेकार क्यों तंग करते हैं। हम लड़के पैदा कर लेते तो आपके भी कर देते। भगवान शिवजी के पास ट्राई करते हैं और कहते हैं, महादेव जी! हमारा पक्का मकान बना दें। महादेव जी तो वहाँ रहते हैं मरघट में। इनके पास अगर मकान बनाने लायक पैसे होते, तो अपने लिए क्यों नहीं बनवा लिया होता। कपड़े तो पहनने को है नहीं, फिर मकान कैसे बनवाएं।

अपनी योग्यता बढ़ाइए

मित्रों! बेसिलसिले की बातें, बेतुकी बातें आप करते रहेंगे और पीछे शिकायतें करते रहेंगे कि हमारी मनोकामना पूरी नहीं। मैं कल भी नाराज हो रहा था इसी बात पर। आपको निराशा तो होगी, पर इससे बाद में पूरे अध्यात्म विज्ञान पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। आदमी अध्यात्म विज्ञान के प्रति नफरत करते चले जाएंगे और इसके प्रति जनसाधारण में जो श्रद्धा थी वो खत्म हो जाएगी। क्यों? क्योंकि आपकी मनोकामना पूरी नहीं हो सकती। आपकी मनोकामना पूरी करने की दो शर्तें है। क्या दो शर्तें है? साथियों! भगवान ने, देवताओं ने, ऋषियों ने दुनिया में एक से एक बड़ी मनोकामनाएं पूरी की हैं पर उसकी दो शर्तें पूरी करनी पड़ी है। एक तो आदमी की योग्यता बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए। आपको क्या मिलता है? हम तो साहब प्राइमरी स्कूल के मास्टर हैं। तो आप कहाँ तक पढ़े हैं? हमने साहब मैट्रिक पास किया है और बी.टी.सी. पास की है। इसीलिए हमको 2500 रुपये मिलते हैं। तो अब आप क्या चाहते हैं? हमको बड़ी नौकरी मिल जाए। अच्छा तो आप एक काम कर लीजिए-आप बी.ए. कर लीजिए, बी.एड कर लीजिए। फिर हमारे पास आना तो हम कोशिश करेंगे, किसी से सिफारिश करेंगे और आपको नौकरी दिला देंगे। नहीं साहब, बी.ए., बी एड तो हम नहीं कर सकते, आप हमें 7500 रुपये की तनख्वाह दिला दीजिए। बेटे, हम कैसे दिला दें, जो कायदा-कानून नहीं है, नियम नहीं है, उसे कैसे करा देंगे।

मित्रों! आदमी को अपनी मनोकामना पूरी करानी है तो उसे अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी। आप अपनी योग्यता बढ़ाइए। आदमी की जितनी योग्यता होती है, उतनी ही उसकी तरक्की होती, पैसा मिलता है और मिलता है मान-सम्मान। योग्यता आप बढ़ाते नहीं तो फिर किस तरह से आपकी सहायता करेंगे। दूसरी शर्त है-आप अपने में परिश्रम का माद्दा बढ़ाइए। आप में परिश्रम का माद्दा कम है। आपको जितना परिश्रम करना चाहिए, जिस स्तर का पुरुषार्थ करना चाहिए, उतना नहीं करते। मनोयोग और श्रम दोनों को मिलाकर परिश्रम की क्वालिटी बनती है। आप क्वालिटी क्यों नहीं बनाते? नहीं साहब! हम तो आठ घंटे काम करते हैं। आठ घंटे मनोयोग के साथ काम कीजिए तो वह दस घंटे के बराबर हो जाएगा, अट्ठाइस घंटे के बराबर होगा।

मित्रों! इफीशिएन्सी’ अर्थात् दक्षता का भी ध्यान रखिए। नहीं साहब! हम तो उसे ‘सीनिऑरिटि’ कहते हैं। बेटे, सीनिऑरिटि ही नहीं काम करती, ‘इफीशिएन्सी’ भी काम करती है। इफीशिएन्सी आप बढ़ाइए न, पुरुषार्थ बढ़ाइए न, फिर हम देखेंगे कि कौन है जो आपका रास्ता रोकता है। देखेंगे कौन आदमी आपकी तरक्की को रोकता है। आपकी तरक्की को कोई रोकता हो, तो आप इस्तीफा दे देना और हमारे पास आ जाना। हमारे पास जो लोग काम करते हैं, पूरे मन से करते हैं, हमको कहीं लगा दीजिए। क्या मिलता है आपको? 6500 रुपये मिलते हैं। अच्छा तो हम आपको 7500 रुपये दिलाएंगे और जगह दिला देंगे, परंतु आप तो परिश्रम की क्वालिटी नहीं बढ़ाते। अपनी योग्यता बढ़ाते नहीं हैं और मनोकामनाएं लिए फिरते है।

मित्रों! ये मनोकामनाएं अवैज्ञानिक हैं। अवैज्ञानिक बातें क्या निभेंगी कभी? अवैज्ञानिक बातें न कभी निभी थीं, न कभी निभेंगी। आप कया कह रहे थे? में यह कह रहा था कि आपको जो सबसे श्रेष्ठ धंधा, व्यवसाय बताया है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म का व्यवसाय इससे ज्यादा शानदार, इससे ज्यादा फायदेमंद, इससे ज्यादा कीर्ति दिलाने वाला अर्थात् तीन तरह के फायदे या धंधा? और कोई धंधा नहीं है। जिसको आप व्यवसाय कहते हैं वह केवल एक ही फायदा कराता है। हम क्या कराते हैं? हम बेटे, ये धंधा जो पैसे वाला है, ये तो गौण है, बाहर वाला है। इसके अलावा हम तीन फायदे करा सकते है। उस अध्यात्म के बारे में बता रहे हैं जिसको सिखाने के लिए हमने आपको यहाँ बुलाया हैं जिसके लिए हम आपको अनुष्ठान कराते हैं। हमारे इस अध्यात्म को आप समझ लें तो फिर आपकी गाड़ी आगे बढ़ाऊँ। आप क्या सिखाना चाहते हैं? आप समझिए तो सही। आप तो नहीं रहते है। कहाँ? हमारी मनोकामना, भजन और माला। बेटे, ये तो गलत है।

पहले साधना तो हो

माला ओर मनोकामना का भी सिद्धाँत है और सही होता है तो फिर मैं एक चीज और शामिल करना चाहूँगा। क्या चाहेंगे? माला-एक। माला से व्यक्तित्व का विकास। व्यक्तित्व के विकास के फलस्वरूप साधना दो। यों है बेटे इसका चक्र। आप समझ गए, यह एक चक्र है। कौन-सा? इसमें तीन चीजें शामिल है, साधना एक। साधना सफल है, सही है या गलत है, इससे व्यक्तित्व का विकास जुड़ा हुआ है। व्यक्तित्व के विकास के बाद में वो करना, जिसको हम ऋद्धियाँ कहते है, सिद्धियाँ कहते है, सफलता कहते हैं। नहीं साहब! भजन करने से सिद्धियाँ मिलनी चाहिए। नहीं बेटे, आप गलत बात कहते हैं। भजन करने से सिद्धियाँ नहीं मिल जाती। नहीं साहब! हम तो यही ख्याल करते हैं। आप गलत ख्याल करते हैं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस गलत ख्याल को निकाल दें। नहीं साहब हम तो नहीं निकाल सकते। जप करने से पैसा मिलता है। नहीं बेटे, जब करने से पैसा मिलता तो मंदिरों में- जो हिंदुस्तान में एक लाख से ऊपर मंदिर ऐसे हैं जहाँ पुजारी-नौकर रहते हैं, वे मालामाल हो गए होते। आप एक लाख पुजारियों का आयोग बैठा दीजिए। सर्वे कीजिए और रिपोर्ट मंगाइए इसकी। फिर देखिए क्या हाल है, इन पुजारियों में से हर आदमी मामूली मजदूर की अपेक्षा, एल.डी.सी क्लर्क की अपेक्षा, प्राइमरी स्कूल के मास्टर की अपेक्षा गई-बीती हैसियत में है।

मित्रों! जो व्यक्ति सारे दिन पल्लेदारी ढोते हैं और रिक्शा चलाते हैं, उनको एक तराजू में रखिए और पुजारी जी को एक तराजू में रखिए। देखिए साहब, क्या बात है? आप सिनेमा भी देखते हैं, सिगरेट भी पीते हैं, दिन में छह कप चाय भी पी जाते है। आप कौन हैं? आप रिक्शे वाले हैं और आप? पुजारी जी हैं। अरे सिनेमा देखते हैं? नहीं साहब सिनेमा हमारे भाग्य में कहाँ से आया। जाने का मन होता है? मन तो होता है, पर हम कैसे जा सकते हैं। आपकी ये बात वो बात सब तराजू में तौलते हैं, तो मालूम पड़ता है न रिक्शे वाला फायदे में है ओर न ये पुजारी जी। क्या बात है? आप समझते नहीं क्या? गलतफहमी को क्यों दबाए बैठे हैं। गलतफहमी को आप हटा दीजिए। मैं आपसे प्रार्थना करूंगा कि अगर आपके मन में यह गलतफहमी है कि भजन और माला के फलस्वरूप सिद्धि मिल जाएगी तो आप इसे निकाल दीजिए।

तो क्या करें? इसमें एक चीज आप और शामिल कर लें तो बात सही हो जाएगी। क्या शामिल कर लें? स्कूल में पढ़ाई करें और पढ़ाई के बाद नौकरी करें। नहीं साहब पढ़ाई के साथ ही नौकरी मिल जाए तो अच्छा है। अच्छा बेटे तू स्कूल जाएगा? हाँ साहब, लेकिन पढ़ाई करनी पड़ेगी। गुरुजी! मुझे यह नहीं पता था। अच्छा तो अब हम बता देते हैं कलम पकड़ और पी-एच.डी. हो जा। लेकिन एक कमी है। क्या? पकड़ने के साथ-साथ पढ़ाई भी करनी पड़ेगी। गुरुजी! हम तो यह जानते थे कि जिसके हाथ में कलम होती है, वही पी-एच.डी. हो जाता है। बेटे, कलम से पी-एच.डी. होती है, तेरी यह बात सही है, पर हमारी भी एक बात क्यों शामिल नहीं करता कि कलम के साथ-साथ में अध्ययन भी करना और तब लिखना चाहिए। थीसिस लिखने की कीमत होती है और होनी भी चाहिए।

मात्र क्रिया से परिणाम नहीं मिलता

गुरुजी! ये तो बड़ा झमेला पड़ गया है। हाँ बेटे, झगड़ा तो था ही। तू क्या समझता था? हम तो यह समझते थे कि ये सब प्रारंभिक वस्तुएँ है और उनसे ही सफलता मिल जाती है। मसलन आपके हाथ में छेनी और हथौड़ी दे दें और कहें कि इस पत्थर के टुकड़े को ले जाइए और इसमें से आप एक मूर्ति बना दीजिए। मूर्ति कितने रुपये की होती है? बहुत कीमती होती है। हमने जयपुर से एक मूर्ति मँगाई है, वह तीन हजार रुपये में आई है। इसमें कितने रुपये का पत्थर लगा होगा? मैं सोचता हूँ कोई पचास रुपये का पत्थर होगा। आप पचास रुपये का पत्थर ले लीजिए और छेनी, हथौड़ी ले जाइए, घिसने के लिए रेती ले जाइए और मूर्ति बनाकर लाइए। आपको तो पत्थर ही नहीं दिखाई पड़ा और ऊपर से छेनी और हथौड़ी भी तोड़ डाली और अपनी अँगुली पर भी पट्टी बाँध रहे हैं। आपने तो बताया था कि हम मूर्ति बनाएँगे तो क्या बन गई आपकी मूर्ति? कहाँ बनी गुरुजी! छेनी टूट गई, हथौड़ी टूट गई और देखिए हमारी अँगुली में चोट भी लग गई। बेटे, मूर्ति कहाँ गई? उसका क्या हुआ? तीन हजार की मूर्ति तो मिली नहीं? मिलती भी कैसे, मूर्तिकला का जो अभ्यास है, वह अलग है।

मित्रों! यह क्या है? यह एक टेक्नीक है। मूर्तिकला छेनी-हथौड़े की सहायता से विकसित तो की जाती है, पर इसके पीछे अभ्यास होता है, तब कहीं मूर्ति बनाना आता है। तब आदमी हजार रुपये महीने कमाता है। इससे कम में कमाए, इससे कम में नहीं कमा सकता। चित्रकार चित्र बनाते हैं। कितने का बिका ये चित्र? बहुत दाम का बिका। हम अखण्ड ज्योति के कवरपेज की डिजाइन बनवाते हैं। उसके लिए हमें पाँच सौ रुपये देने पड़ते है। चित्रकार दो दिन में बना देता है। गुरुजी! यह तो अच्छा धंधा है। एक दिन में एक चित्र बनाने के ढाई सौ रुपया रोज कमाता है। इससे महीने में कितना कमा लेगा और साल भर में कितना कमा लेगा? गुरुजी! मैं तो वही धंधा करूंगा, बेटे कर ले। इसके लिए क्या-क्या चीज चाहिए? कागज, ब्रश, रंग। लीजिए बनाइए चित्र। किसके लिए बनाएँ? हमारी अखण्ड ज्योति के लिए बनाइए। गुरुजी! आप तो पाँच सौ रुपये तो वैसे ही दे देंगे, देखिए चित्र बनाकर लाया हूँ। बेटे! ये तूने क्या बनाया? हमारा कागज भी बरबाद कर दिया और रंग भी खराब कर दिया और ऐसे ही लकीरें बना लाया। नहीं बेटे, लकीर नहीं बनानी चाहिए।

मित्रों! कागज काम तो आता है, पर यह भी ध्यान रखिए कि क्या चीज चाहिए। यहाँ एक और शब्द लगा हुआ है। ‘पर’ यह इसलिए लगा हुआ है कि चित्रकला का अभ्यास होना चाहिए। जो समयसाध्य और श्रमसाध्य है। नहीं साहब! हम तो इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे। तो क्या करेंगे? हम यह करेंगे कि क्रिया के माध्यम से परिणाम पाना चाहेंगे। बेटे, यह तो संभव नहीं, असंभव बात है, जो आपने कल्पना बना रखी है। आप इस असंभव के पीछे भागेंगे तो आपको हैरानी कि सिवाय, परेशानी के सिवाय, खीझने के सिवाय, निराशा के सिवाय और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा। अब तक आप निराश हैं तो आगे भविष्य में अगर आपका यही सिद्धान्त रहा, तो मैं आपको शाप देता हूँ कि भविष्य में आपको हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी और कभी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।

साधना कोई शॉर्टकट नहीं

साहब! आप शाप क्यों देते हैं। इसलिए देते है कि आप उस सिद्धाँत को समझते नहीं, जिस सिद्धाँत पर चल करके आप वहाँ पहुँच सकते है। उस सिद्धाँत को स्वीकार भी नहीं करते। बेटे, ये ‘नेशनल हाइवे’ है, राजमार्ग है। साधना कोई शॉर्टकट नहीं है। किसी भी क्षेत्र में कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है। आप एम.ए. पास होने का शॉर्टकट बताइए। बेटे, हमें तो मालूम नहीं है। हमने तो जिनको देखा है, वे पढ़ते है और नंबर बाई नंबर, कक्षा दर कक्षा फीस देते हैं। अच्छा बंबई जाने का शॉर्टकट बताइए? बंबई जाने का शॉर्टकट यही है बेटे कि उधर से कोटा से होकर निकल जाए या भोपाल से होकर निकल जाए। कितना किराया लगता है? यही कोई लगता होगा सौ-डेढ़ सौ रुपये का टिकट। नहीं साहब! कोई शॉर्टकट रास्ता बताइए। जिससे कि इतना सफर भी न करना पड़े और पैसा भी खरच नहीं करना पड़े और मैं बंबई भी पहुँच जाऊँ। नहीं बेटे, ऐसा कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है।

मित्रों! आपने अध्यात्म माने शॉर्टकट समझ रखना है। आप चाहते हैं, “हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आवे।” बेटे तू क्या चाहता है कि बंबई पहुँच जाऊँ। हाँ गुरुजी। ऐसा चमत्कार दिखाइए, जादू दिखाइए कि हम पाँच मिनट में बंबई पहुँच जाएँ ओर पैसा भी न खरच करना पड़े। आंखें बंद करते ही बंबई आ जाए। बताइए आपको ऐसा चमत्कार आता है। हाँ हमें आता है। अच्छा तो आप कितनी देर में पहुँचा देंगे? तू कितनी देर में पहुँचना चाहता है। हम तो तुझे पाँच मिनट में पहुँचा देंगे बंबई। अच्छा पाँच मिनट में आप इतने बड़े योगी हैं? तू पहले खड़ा तो हो जा, फिर देख पहुँचता है कि नहीं पाँच मिनट में। अच्छा एक काम कर आँख पर एक पट्टी बाँध ले। अगर पट्टी नहीं तो आँख पर हाथ रख ले, ताकि रास्ते का सफर तुझे दिखाई न पड़े। और देख जब मैं कहूँ तब एक पैर उठाना, फिर दूसरा पैर उठाना। जब मैं तो यहीं खड़ा हूँ। अरे देख यह लिखा हुआ है बंबई। गुरुजी आप तो हमारे साथ मजाक करते हैं।

मित्रों! आप भी तो अध्यात्म के साथ क्या करते हैं? मजाक और मखौल करते हैं। कौन-सी वाली? जो आप लिए फिरते हैं कि अमुक मंत्र का जब करेंगे और पैसा कमाएंगे। आप भगवान के साथ मखौल करते हैं सिद्धाँतों, आदर्शों के साथ मखौल करते हैं और प्राचीनकाल की ऋषि परंपरा के साथ मखौल करते हैं। आपको किसने बताया था यह सब? साहब! एक बाबाजी ने बताया था। मारा नहीं उस बाबाजी को? नहीं साहब! अच्छा अब की बार आए तो उसके कान पकड़ लेना और कहना कि गलत बात बता रहा है। मित्रों! क्या बताना चाहिए था? वह बताना चाहिए था, जिस शानदार अध्यात्म के लिए मैंने आपको बुलाया है। जिसके लिए मैं आपको अनुष्ठान कराना चाहता हूँ। जिसके लिए मैं चाहता हूँ कि आप उन सिद्धाँतों के जानकार हो जाएँ। आप सिद्धाँतों के जानकार हो जाएंगे तो फिर विधि बताने में मुझे देर नहीं लगेगी। विधि तो बहुत सरल है। जिस तरह ऑपरेशन करना बहुत सरल है। मोतियाबिंद का ऑपरेशन कितने मिनट लेता है। मुश्किल से एक मिनट लेता है। एक मिनट में डॉक्टर सुन्न करके खट् झिल्ली काट करके अलग कर देता है। क्यों साहब! आप एक मिनट में ऑपरेशन करना सिखा देंगे। लेकिन पहले सात साल तक मेडिकल की पूरी पढ़ाई करने के साथ-साथ तुझे प्रैक्टिस भी करनी होगी। तब हम तुझे बताएँगे।

अगले अंक में जारी


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