मनुष्य खोज रहा हूँ (Kahani)

April 2002

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एक फकीर प्रतिदिन सुबह के समय हाथों में दो मशालें लेकर बाजार में जाता। हर दुकान के सामने थोड़ी देर ठहरता और आगे बढ़ जाता।

एक व्यक्ति ने पूछा- “बाबा तुम दिन के समय मशालें लेकर क्या देखते फिरते हो? क्या ढूँढ़ते हो?”

फकीर ने उत्तर दिया- “मैं मनुष्य खोज रहा हूँ। इतनी भीड़ में हमें अभी तक कोई मनुष्य नहीं मिला।”

उस व्यक्ति द्वारा मनुष्य की परिभाषा पूछने पर फकीर बोला-”मैं उसको मनुष्य कहता हूँ, जिसमें काम की वासना और क्रोध की अग्नि न हो, जो इंद्रियों का दास न होकर उनका स्वामी हो और क्रोध के आवेश में आकर अपने लिए और दूसरों के लिए आग की लपटें उभारने का यत्न नहीं करता हो।”


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