राम अनंत, अनंत गुण, अमित कथा विस्तार

April 2002

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श्री रामनवमी की गहन अनुभूति श्री राम कथा है। इसमें श्री राम भक्ति की अनगिन उमंगे एवं अनन्त उछाह है। यही वह सच्ची अयोध्या है, जहाँ प्रभु श्री राम एवं उनके अनन्त गुण प्रकटे एवं प्रकाशित हुए। श्री राम कथा के अवगाहन एवं अनुशीलन से आज भी राम भक्तों को अपने प्रभु और उनकी कृपा का दरस-परस बड़ी ही सहज रीति से मिल जाता है। श्री राम कथा के प्राकट्य में ही प्रभु श्री राम के प्राकट्य का रहस्य है। जैसे प्रभु स्वयं हैं, ठीक वैसी ही उनकी कथा है। तभी तो भक्त शिरोमणि बाबा बुलसी ने कहा है-

राम अनन्त, अनन्त गुण, अमित कथा विस्तार।

ऐसी परम पावन श्री राम कथा के अरुणोदय का पहला स्थान महर्षि वाल्मीकि का मानस लोक है। महर्षि वाल्मीकि ने स्वरचित रामायण के चौबीस हजार श्लोकों के पाँच सौ सर्गों से युक्त सात काण्डों में प्रभु श्री राम के दिव्य चरित्र का वर्णन किया। इस आदिकाव्य में वर्णित राम चरित्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। यथा-

‘चतुवर्गप्रदं नित्यं चरितं राघवस्य तु।’ (वा. रामा. उत्तर. 111/23)

महर्षि वाल्मीकि की ही भाँति महर्षि व्यास ने भी श्री राम कथा का गान किया। महर्षि व्यास प्रभु लीला-चिन्तन के अप्रतिम एवं परम मर्मज्ञ आचार्य थे। उन्होंने अपने ब्रह्मज्ञान के मन्दराचल से अध्यात्म सागर का मन्थन कर भगवद् रसामृत की प्राप्ति ही नहीं की, उसका प्रीतिपूर्ण वितरण भी किया।

महर्षि व्यास रचित प्रायः सभी पुराणों में भगवान् राम की लीला और महत्ता का चिन्तन है। हाँ, यह कहीं संक्षिप्त रूप में है, तो कहीं विशद् रूप में। महाभारत के वनपर्व में भी भगवान् राम का चरित संक्षिप्त रूप में उनके द्वारा वर्णित है। महर्षि वाल्मीकि के बाद भगवान राम के कथाकार रूप में महर्षि व्यास ही सर्वोपरि हैं। अग्नि पुराण के पाँचवें से ग्यारहवें अध्याय में श्रीरामावतार के वर्णन के प्रसंग में उन्होंने सात काण्ठों में वर्णित श्री रामायण की कथा का संक्षिप्त रूप निरूपित किया है। कूर्मपुराण के पूर्वार्ध के इक्कीसवें अध्याय में भगवान् राम के चरित का बड़ा ही युक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। पद्मपुराण एवं स्कन्द पुराण में भी रामकथा पढ़ने को मिलती है। श्रीमद्भागवत पुराण के नवें स्कन्ध के दसवें और ग्यारहवें अध्यायों में महर्षि व्यास ने अत्यन्त प्रेरणाप्रद रीति से श्रीराम की लीला का चिन्तन किया है। इसी तरह श्री देवी भागवत पुराण में भी उन्होंने तीसरे स्कन्ध के 28वें से 30वें अध्यायों में श्रीराम के चरित्र का बड़ी श्रद्धा और भक्ति से चित्रण किया है।

भारतीय इतिहास में स्वर्णयुग में जन्म लेने वाले कविकुल शिरोमणि महाकवि कालिदास ने भी श्रीराम कथा गायी है। उन्होंने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ में रामकथा को विस्तार दिया है। महाकवि कालिदास ने नवजात शिशु रूप में प्रभु श्री राम की एक अत्यन्त सुन्दर झलक प्रस्तुत की है। उनका यह अनोखा वर्णन तब से अब तक समस्त काव्य जगत् में स्पृहा की वस्तु है। वह कहते हैं-

शम्यागतेन रामेण माता शातोदरी बभौ। सैकताम्भोजबलिना जाह्नवीव शरत्कृशा॥ (रघुवंश 10/69)

अर्थात्- गर्भ में बालक को जन्म देने के परिणाम स्वरूप दुबली हुई माता कौशल्या नन्हें से राम को लिए हुए पलंग पर लेटी हुई ऐसी सुन्दर जान पड़ती थीं, मानों शरद् ऋतु में पतली धारा वाली गंगा जी के तट पर किसी के द्वारा नीला कमल पूजा की सामग्री के रूप में रख दिया हो।

महाकवि भवभूति का अत्यन्त प्रसिद्ध ग्रन्थ है- उत्तर रामचरित ‘नाटक’। इसमें श्री रामकथा के उत्तरवर्ती भाग को बड़े ही करुण रीति से प्रस्तुत किया गया है। उत्तर रामचरित नाटक के अन्त में महाकवि भवभूति श्री रामकथा की महिमा इन शब्दों में कहते हैं-

पाप्यभ्यश्च पुनाति वर्धयति च श्रेयाँसि सेयं कथा। मंगल्या च मनोहारा च जगतो मातेव गंगेव च॥ (उत्तर रामचरित 7/21)

गंगा और जननी की तरह मंगलविधायिनी यह मनोहर राम कथा पाप का नाश करके संसार के कल्याण की वृद्धि करने वाली है।

ग्यारहवीं शताब्दी में कश्मीर में जन्म लेने वाले महाकवि क्षेमेन्द्र राम कथा के अनूठे गायक के रूप में विख्यात हुए हैं। उन्होंने 1037 ई. में श्री वाल्मीकि रामायण को संक्षिप्त किया। 1066 ई. में उन्होंने दशावतार चरित की रचना की। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने लगभग तीन सौ छन्दों में श्री रामकथा का वर्णन किया है। रामायण मञ्जरी भी उनकी सुमनोहर रचना है। रामकथा साहित्य में इसे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।

देवभाषा संस्कृत के अलावा भारतीय भाषाओं के अन्य कवियों ने भी श्री रामकथा गायी है। हिन्दी के आदिकवि चन्दबरदायी ने अपने प्रसिद्ध ऐतिहासिक प्रबन्ध काव्य पृथ्वीराज रासो के द्वितीय समय के प्रारम्भ में श्री राम के चरित्र का गान-बखान किया है। वे हिन्दी में प्रभु श्री राम के यश का गान करने वाले पहले कवि थे। रामायण कथा के परम रसिक एवं मर्मज्ञ गोनबुद्ध ने सन् 1380 ई. में तेलगू भाषा में श्री रामकथा का गान किया। श्री गोनबुद्ध बुदपुर-बोत्थान नगर के आस-पास राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजा विट्ठल के पुत्र थे। उनके द्वारा रचित इस ‘रंगनाथ रामायण’ में श्री रामकथा छः काण्डों में है।

उड़ीसा के प्रसिद्ध रामकथाकार सिद्धेश्वर परिड़ा ने उड़िया भाषा में रामकथा कही। अपनी ईष्ट देवी ‘शारला’ के नाम पर उन्होंने अपना नाम ‘शारलादास’ रख लिया था। ईसा की तेरहवीं शती में लिखी हुई उनकी रामायण शारलादास की रामायण के नाम से विख्यात है। अपनी इस अनूठी रामकथा में उन्होंने योग साधना के रहस्यों का अद्भुत रीति से उद्घाटन किया है।

16 वीं सदी में रामकथा कहने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी तो जगत् विख्यात हैं। उनके द्वारा लिखा गया महाकाव्य रामचरित मानस हिन्दी भाषा भाषियों के लिए वेद से कम श्रद्धास्पद नहीं है। इसके दोहे-चौपाइयाँ श्रद्धालु जन जब-तब मन ही मन गुनगुनाते-गाते रहते हैं। महाराष्ट्र के सन्त एकनाथ ने लगभग इसी समय में अपनी ‘भावार्थ रामायण’ लिखी। मराठी भाषा के ही महाकवि मोरोपन्त ने रामकथा का गायन अपनी ‘मंत्र रामायण’ में किया। मोरोपन्त कोरे कवि ही नहीं भावुक भक्त भी थे। रामकथा उनके जीवन का प्राण थी।

रामकथा का गान करने वाले कवियों में महाकवि केशवदास का स्थान अनुपम है। उनके द्वारा हिन्दी भाषा में रचित ‘रामचन्द्रिका’ में रामकथा का काव्यात्मक सौंदर्य प्रकट हुआ है। मलयालम भाषा के महान् संतकवि रामानुजन् एषुत्तच्छन रामकथा के गम्भीर रसिक थे। संस्कृत भाषा में रचित ‘अध्यात्म रामायण’ के आधार पर उन्होंने मलयाली भाषा में ‘अध्यात्म रामायण’ की रचना की। उनकी यह रचना केरल के घर-घर में श्रद्धा और आदर से पढ़ी जाती है। महाकवि बत्तलेश्वर ने कन्नड़ भाषा में रामकथा का गान किया। 16वीं सदी में लिखी गयी उनकी यह कृति ‘तोरवे-रामायण’ के नाम से जानी जाती है। और रामकथा गान करने के कारण महाकवि बत्तलेश्वर को कुमार वाल्मीकि भी कहा जाता है।

16वीं शती में जन्में रहीम खानखाना ने बड़ी भक्तिपूर्वक रामकथा को गाया और अपनाया। रहीम मुसलमान थे, परन्तु प्रभु श्रीराम पर उनकी अटल श्रद्धा थी। वह कहा करते थे-

रहिमन धोखे भाव से, मुख तें निकसे राम। पावन पूरन परम गति, कामादिक को धाम॥

उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘संसार सागर से पार उतरने का एक मात्र उपाय ही श्री राम प्रभु की शरणागति ही है। वे कृपामय प्रभु जगत् की विषय-वासना से प्राणी को मुक्त कर उसे अपनी भक्ति प्रदान कर निर्भय कर देते हैं।’ उनका कथन है-

गहि सरनागति राम की, भवसागर की नाव। रहिमन जगत उधार कर और न कछू उपाय॥

दक्षिण भारत के कोचीन शहर में जन्मे महाकवि रामपारशय ने भी रामकथा गायी है। उनके द्वारा 550 श्लोकों में रचित ‘श्रीराम पञ्चशती’ रामकथा का अद्भुत ग्रन्थ है। उनका यह काव्य सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण में वर्णित रामचरित प्रधान घटनाओं का संक्षिप्त रूप है। महाकवि रामपारशव ने अपनी रामपञ्चशती रचना में श्रीराम की भक्ति का सरस निरूपण किया है। उनका समूचा जीवन रामभजन का प्रतीक था।

भगवान राम का गुणगान करने वालों में महाकवि सेनापति हिन्दी काव्य जगत् की शोभा हैं। मध्यकालीन हिन्दी काव्य में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। भक्ति सिद्धान्त की दृष्टि से वे रामभक्त कवि थे। उनके दो ग्रन्थ ’काव्यकल्पद्रुम’ और ‘कवित्त रत्नाकर’ हैं। कवित्त रत्नासकर में ही उन्होंने रामायण और राम रसायन के शीर्षक के अंतर्गत रामकथा और भगवान् श्री राम के यश का वर्णन किया है। उन्होंने अपनी रामकथा की उपमा गंगा जी की धारा से दी है-

तीरथ सरण सिरोमनि सेनापति जानी, राम की कहानी गंगाधर सी बखानी है। (कवित्त. 4/76)

हिन्दी-साहित्य के मध्यकाल के तीसरे चरण की कविता में महाकवि पद्माकर को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनके काव्य में महाकवि देव के शब्द सौंदर्य, महाकवि मतिराम के भाव माधुर्य और महाकवि सेनापति के अलंकार संयोजन नैपुण्य का एक ही साथ दर्शन होता है। उन्होंने अपने काव्य जगद्विनोद, पद्माभरण में प्रभु श्री राम का यश-स्मरण किया है। उनके द्वारा रचित ‘राम रसायन’ काव्य तो भक्ति गीत ही है। ‘प्रबोध पचासा’ में तो उन्होंने जैसे अपनी काव्य साधना सफल कर ली। इसमें उनके शब्द हैं-

ध्यायो राम रुप तब ध्याइबो रह्यो न कछु, गायो राम नाम, तब गाइबो कहा रह्यो॥ (प्रबोध पचासा- 10)

रामकथा के रसिकों में महाकवि भानुभक्त का स्थान अत्यन्त महिमापूर्ण है। उन्होंने भगवान् राम की भक्ति के सौंदर्य और माधुर्य से नेपाली साहित्य का शृंगार किया। वे काठमाण्डू से लगभग सौ मील पश्चिम में नेपाल के तनहूँ गाँव में जन्में भानुभक्त परिपूर्ण रामभक्त थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में रचित अध्यात्म रामायण का नेपाली भाषा में सरस काव्य रूपांतर प्रस्तुत किया। उनके द्वारा रचित यह रामायण भानुभक्त के रामायण के नाम से जानी जाती है। और उन्हें नेपाली साहित्य का तुलसीदास कहा जाता है।

रामकथा के अनूठे माधुर्य और सौंदर्य से गुजराती भाषा भी कम समृद्ध नहीं है। समग्र गुजराती भाषा-भाषी गुजरात प्रदेश में महाकवि गिरधर कृत रामायण के प्रति लोगों की बड़ी पूज्य भावना है। उन्होंने विक्रमी सं. की उन्नीसवीं शती के अन्तिम चरण में ‘गिरधर रामायण’ की रचना की। उनकी यह रामकथा सात काण्डों में पूरी हुई है। गिरिधर की यह रामकथा भक्तिरस का समुद्र है। इसके एक कण का भी स्पर्श जीव को तीनों तापों से मुक्ति दिलाने के लिए पर्याप्त है। रामकथा का गिरिधर जी ने रामायण के रूप में वर्णन कर अपनी कीर्ति प्रभु भक्त के रूप में अमर कर ली। उनकी उक्ति है-

ए राम कथा शुद्ध भाव थकी जे सुणे मणे नर-नारी। आ लोक मधे ते भोग भोगवे अंते हरिपद सार जी॥ (गिरिधर रामा. उत्तर. 1/2/5)

‘इस रामकथा को जो स्त्री-पुरुष पवित्र भाव एवं श्रद्धा से श्रवण-प्रवचन करेंगे, उनको इस लोक में इष्ट भोग सुख की प्राप्ति होगी तथा अन्त समय में श्रीराम के पद में स्थान मिलेगा।’ महाकवि गिरधर का यह कथन सत्य है। रामकथा के अवगाहन से ही श्रीराम के आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है। और जब जीवन में श्री राम के आदर्श समाहित हों गए हों, तो फिर भक्त-भगवान् का मिलन सहज संभव है।


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