तप-साधना का ठीक यही है उचित मुहूर्त

April 2002

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चैत्र नवरात्रि तप-साधना का श्रेष्ठतम मुहूर्त है। यूँ तो साधना हरपल-हरक्षण शुभ होती है। किन्तु श्रेष्ठतम मुहूर्त में उचित रीति-नीति एवं विशेष विधान से की जाने वाली तप-साधना के परिणाम बहुत व्यापक और असरकारक होते हैं। ऐसे तप से कठिन प्रारब्ध के दुर्धर्ष दुर्योग कटते हैं और उज्ज्वल जीवन की प्रकाश किरणें अवतरित होती हैं। यह पूरी तरह से शास्त्र सम्मत एवं साधना विज्ञान के मर्मज्ञ महर्षियों द्वारा अनुभूत सत्य है कि चैत्र नवरात्रि की साधना के प्रभाव तीव्र एवं त्वरित होते हैं। बशर्ते कि साधना की रीति-नीति एवं अनुशासनों का ढंग से पालन किया गया हो। इन दिनों ग्रहों की गति, सौर मण्डल में सूर्य के चारों ओर भ्रमण कर रही पृथ्वी की स्थिति कुछ अलग ही होती है। इन दिनों समूची प्रकृति कुछ ऐसे सरंजाम जुटाती है, जो चर्म चक्षुओं से भली प्रकार नजर न आने के बावजूद साधकों की साधना के लिए विलक्षण होते हैं।

जो जाग्रत् हैं, जिन्हें ठीक-ठीक समझ है, वे इन दिनों जीवन के अन्य सभी कामों को कम करके साधना अनुष्ठान के लिए संकल्पित होते हैं। अपने देव परिवार के सदस्यों की गणना ऐसे ही समझदारों में होती है। गुरुदेव को समर्पित शायद ही ऐसा कोई शिष्य-साधक हो, जो नवरात्रि साधना से वंचित रहा हो। यदि किसी के जीवन में कभी ऐसे अवसर आए भी हैं, तो अवश्य उसकी कोई मजबूरी रही होगी। अन्यथा तपोमूर्ति गुरुदेव की सन्तानें तप साधना से कब पीछे हटने वाली हैं। और वह भी तब, जब श्रेष्ठतम मुहूर्त ने द्वार पर दस्तक दी हो। साधना के अभ्यासी अपने तपस्वी परिजनों से इस विशेष नवरात्रि में कुछ विशेष ही उम्मीदें रखी गयी हैं। उनके सम्मिलित तप के महास्त्र का उपयोग युगान्तरीय चेतना अपने उच्चस्तरीय प्रयोजन हेतु करने वाली है।

इस तरह इस बार की चैत्र नवरात्रि हर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। वैयक्तिक एवं वैश्विक दोनों ही दृष्टियों से इस अवसर पर किया जाने वाला तप संजीवनी औषधि की भाँति है। हमारी राष्ट्रमाता माँ भारती तो जैसे हमेशा ही अपनी तपस्वी सन्तानों को पुकारती रहती है। आज उसकी जो पीड़ा और छटपटाहट है, वह किसी भी हृदयवान को विकल कर देने के लिए पर्याप्त है। इससे छुटकारे के लिए तप का प्रचण्ड पराक्रम चाहिए। तप के महावज्र से ही माँ भारती को कष्ट देने वाले असुरों का संहार होगा। महातप की ऊर्जा का प्रबल वेग ही उन दुर्योगों को तहस-नहस करेगा, जिनमें हमारी राष्ट्रमाता कसी-जकड़ी, फंसी-बंधी है।

इस सच को जानकर भी महातपस्वी अगस्त्य के, अपने तप से नयी सृष्टि को जन्म देने वाले ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के वंशज तप में संलग्न न हों, भला यह कैसे सम्भव है? अपने समूचे जीवन तप की धधकती ज्वालाएँ बनकर जीने वाले परम पूज्य गुरुदेव की सन्तानों को तप ही शोभा देता है। नवरात्रि की शुभ घड़ी हमारे जीवन में तप की सुदीर्घ प्रक्रिया और परम्परा का शुभारम्भ करने आयी है। इन परम पावन दिनों में किए जाने वाले तप के स्वरूप से हम सभी परिचित हैं। पर हममें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किसी जल्दबाजी या भूलवश तप की प्रक्रिया को आधा-अधूरा ही करके सन्तुष्ट हो जाते हैं। पर इस बार किसी भी तरह ऐसे भूल या भ्रम की कोई गुँजाइश नहीं है।

तप साधना प्रखर एवं प्रचण्ड तभी बनती है, जब उसमें सम्यक् उपासना के साथ साधना और आराधना के कठोर अनुशासन जुड़ें हों। उपासना के क्रम में साधकों को पूरी भक्ति एवं श्रद्धा के साथ 24,000 का जप पूर्ण करना होता है। नवरात्रि के दिनों के हिसाब से प्रतिदिन की जप संख्या का निर्धारण होता है। 30 माला जप करने से जप संख्या का विधान भली-भाँति पूरा हो जाता है। परन्तु जैसे-तैसे जप पूरा कर लेना उपासना नहीं है। इसके लिए प्रतिदिन निश्चित संख्या, निश्चित समय एवं निश्चित स्थान के नियम का पालन करते हुए अपनी पूजा वेदी पर गुरु और ईष्ट के पूजन के साथ जप करना चाहिए। जो अंतर्मन में सद्गुरु एवं ईष्ट की एकता को अनुभव करते हैं। उनके लिए गुरु पूजा ही पर्याप्त है। तप के साथ सूर्यमण्डल में स्थित गुरुदेव या माँ गायत्री कर ध्यान अनिवार्य है। गायत्री महामंत्र का जप सूर्य चेतना के सन्दोहन का विशिष्ट विज्ञान है। इसलिए जप काल में ध्यान की प्रगाढ़ता कुछ ऐसी होनी चाहिए कि साधक को यह स्पष्ट अनुभूति हो कि वह स्वयं अनन्त किरणों वाले सूर्य की एक प्रकाश किरण बन गया है।

उपासना काल में जिस ऊर्जा का अवतरण होता है, उसके धारण करने की प्रक्रिया साधना कही जाती है। छलनी में अमृत की धार भी गिरे तो भी वह टिकेगी नहीं। उपासना में प्राप्त तप शक्ति का अमृतत्त्व टिक सके इसके लिए साधना का समुचित पात्र चाहिए। साधना का अर्थ है कठोर संयम, शरीर ही नहीं मन पर भी नियंत्रण रखना। उन सभी शारीरिक एवं मानसिक गतिविधियों को वर्जित समझना जो हमारी जीवनी शक्ति को नष्ट करती हैं, हमारी चिन्तन शक्ति को विकृत एवं बर्बाद करती हैं। यदि व्यावहारिक रूप से कतिपय साधना सूत्रों को अपनाना हो तो तप के विशेष समय में शारीरिक तल पर 1. ब्रह्मचर्य, 2. अस्वाद, 3. किसी से सेवा न लेना, 4. कठोर बिछौने पर शयन करना एवं 5. दिनचर्या को पूर्णतया नियमित एवं अनुशासित रखना जैसे सूत्रों को अपनाया जा सकता है।

मानसिक तल पर साधना के व्यावहारिक तल पर 1. किसी भी तरह के ईर्ष्या, द्वेष से बचना, 2. पर चर्चा, पर निन्दा से हर तरह से बचना, 3. विपरीत परिस्थितियों में भी क्रोध न करना, शान्त रहना, 4. परेशानी आने पर भी आदि शक्ति जगज्जननी माँ गायत्री एवं परम कृपालु गुरुदेव की कृपा पर विश्वास करके प्रसन्न रहना, एवं 5. नियमित स्वाध्याय करना जैसे सूत्रों को अपनाया जाना चाहिए। शारीरिक और मानसिक तल पर इन सभी अनुशासन सूत्रों को अपनाने वाला अपने आप ही सुपात्र, सत्पात्र बन जाता है। उसमें उपासना द्वारा प्राप्त शक्ति केबल पर ब्रह्मतेज चमकने, छलकने लगता है। यदि उपासना और साधना का ऐसा सुयोग कुछ वर्षों तक नियमित रूप से रह सके तो फिर उसके संकल्प मिथ्या नहीं होते। उसके द्वारा सोचे गए कार्य अनायास ही होने लगते हैं। दुर्धर्ष दुर्योगों के चक्रव्यूह अपने आप ही ध्वस्त होते हैं। साधक पर माँ आदिशक्ति की कृपा कुछ ऐसी होती है कि कुटिल काल भी अपनी चाल बदलने पर मजबूर होता है।

तप साधना का तीसरा महत्त्वपूर्ण आयाम है आराधना। यह दरअसल तप से उत्पन्न ज्ञान है। तप साधना की चरम परिणति है ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ की प्रबल भावानुभूति है। तपस्वी यदि सच्चा है तो वह आराध्य के बगैर नहीं रह सकता। वह अपने तप के सुपरिणामों, सत्परिणामों का वितरण करता चला जाता है। आराधना तप की सुगन्ध है, तप का ज्योतिर्मय प्रकाश है, तप की ऊर्जा का अनुभूतिपूर्ण विस्तार है। यह स्वयं की आत्म चेतना का व्यापक विस्तार है। नवरात्रि के विशेष दिनों में यदि इसके व्यावहारिक सूत्रों पर चर्चा करनी हो तो 1.सबसे बिना किसी भेदभाव के प्रेमपूर्ण व्यवहार, 2. परिवेश-परिकर के अन्य जनों को साधना के लिए प्रेरित करना, 3. विचार क्रान्ति के सत्साहित्य को औरों को पढ़ाना, 4. छोटे स्तर पर ही सही किसी सुपात्र की सहायता करना एवं 5. सृष्टि के सभी प्राणी जगन्माता गायत्री की सन्तानें हैं, सबमें माँ ही समायी है, ऐसी भावानुभूति में जीना।

उपासना, साधना एवं आराधना के ये सभी सूत्र मिलकर तप की उच्चस्तरीय प्रयोग भूमि विनिर्मित करते हैं। इसके परिणाम कैसे और कितने प्रभावकारी है, यह कहने-सुनने की बात नहीं है। नवरात्रि के दिनों में इन्हें अपनाने वाले की अनुभूति अपने आप ही इसकी सत्यता बखान कर देगी। प्रयोग के अन्तिम दिन साधक को पूर्णाहुति के रूप में हवन का विशेष उपक्रम करना चाहिए। हवन की प्रत्येक आहुति के साथ यह भाव रखा जाना चाहिए। कि अपने देव परिवार के सदस्यों की सम्मिलित तप ऊर्जा से राष्ट्रीय आपदाएँ ध्वस्त हो रही हैं। माँ गायत्री की कृपा से समूचे राष्ट्र में उज्ज्वल भविष्य की सुखद सम्भावनाएँ साकार हो रही हैं। चैत्र नवरात्रि के विशेष अवसर पर गायत्री साधकों का सम्मिलित तप प्रयोग ऐसे सुखद और आश्चर्यकारी परिणाम उत्पन्न करेगा, जिससे दूसरे भी चकित एवं चमत्कृत हुए बिना न रह सकेंगे।


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