महर्षि कश्यप की दो पत्नियाँ थीं, कद्रु और विनता। उन्होंने उन्हें अपने-अपने उत्तराधिकारियों के निमित्त वर माँगने को कहा। कद्रु ने 1 शक्तिशाली पुत्र माँगे। उसका विचार था कि बड़ी संख्या में शक्तिशाली पुत्र उसे विनता से अधिक सम्मान और यश दिला सकेंगे। विनता ने तेजस्वी, सुसंस्कारी मात्र दो पुत्र माँगे।
कद्रु के नाग हुए एक हजार। थोड़े समय के लिए उसका दबदबा बन भी गया, पर जब विनता के अरुण और गरुड़ का पराक्रम प्रकट हुआ, तो संख्या के ऊपर श्रेष्ठता का महत्व स्पष्ट हो गया। अरुण बने सूर्य भगवान के सारथी और गरुड़ बने भगवान विष्णु के वाहन। उन्होंने चंद्रलोक से अमृतकलश लाकर कद्रु के बंधनों से माँ विनता को मुक्त कराया। नाग उनके भय से थर-थर काँपते रहे।