सुख-शांति की संभावनाएँ (kahani)

May 2000

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विधाता ने अपने सेवकों को बुलाकर धरती से एक -एक उपहार लाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा-”जिसका उपहार सर्वश्रेष्ठ होगा, उसी को प्रधान सेवक के पद नियुक्त किया जायगा।” आज्ञा मिलने की देर थी, सभी सेवक अच्छे उपहारों की तलाश में पृथ्वी की ओर दौड़ने लगे। एक-से बहुमूल्य उपहार सेवकों ने लाकर सामने रखे, पर विधाता के चेहरे पर कहीं प्रसन्नता और संतोष की रेखा तक न थी। हिसाब लगाया गया, तो एक सेवक का आना शेष था। उसकी प्रतीक्षा बड़ी आतुरता से की जा रही थी।

आखिर प्रतीक्षा की घड़ियाँ पूरी हुई और वह सेवक भी आ गया। वह कागज की एक पुड़िया विधाता को देकर नीचे डरते-डरते बैठ गया। विधाता ने पुड़िया खोली, “अरे, यह क्या इस पुड़िया में मिट्टी बाँध लाए।” सेवक ने हाथ जोड़कर कहा, “हाँ भगवान मैंने पृथ्वी का चप्पा-चप्पा छान मारा । शायद ही कोई स्थान रह गया हो, जहाँ मैं नहीं गया। मैंने इस बात की बड़ी कोशिश की कि ऐसा उपहार ले चलूँ, जो आपको पसंद आ जाए। प्रभु है तो यह मिट्टी ही, पर किसी साधारण स्थान की नहीं है। यह वह मिट्टी है, जहाँ के लोगों ने संस्कृति और मानवता की रक्षा के लिए खुशी-खुशी अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।”

विधाता ने वह मिट्टी बड़ी श्रद्धा से अपने मस्तक पर लगाई और कहा, “सेवकों जब तक पृथ्वी पर ऐसे संत और सज्जन पुरुष बने रहेंगे, तब तक धरती पर सुख-शांति की संभावनाएँ की कम न होंगी।”


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