पारदर्शी वस्तुओं में होकर ही सूर्य की किरणें प्रवेश करती और पार जाती हैं। भगवान का प्रकाश और प्रेम उन्हें ही मिलता है, जिनका हृदय निर्मल है।
हमारा जीवन लक्ष्य
अध्यात्म दर्शन का सार-निष्कर्ष इतना भर है कि अपने को जानो-’आत्मानं विद्वि’। अपने को विकसित करो और ऐसी राह पर चलो, जो कहीं ऊँचे लक्ष्य तक पहुंचाती हो। यह शिक्षा अपने आप के लिए है। इसे स्वीकार-अंगीकार करने के उपराँत ही वह प्रयोजन सधता है, जिसमें दूसरों से कुछ समर्थन, सहायता, अनुदान पाने की आशा की जाए। देवता भी तपस्वियों को ही वरदान देते हैं, बाकी तो फूल-प्रसाद के दोने लिए, देवस्थानों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते रहते हैं। भिखारी कितना कुछ कमा पाते हैं, इसे सभी जानते हैं। उन्हें जीवन भर अभावों की उपेक्षा की शिकायत ही बनी रहती है।
(वाड्यम 17, पृ. 2.16)